सोमवार, 5 अक्तूबर 2009

आरटीआइ सम्मान समारोह का दीप जलायेगी नेत्रहीन रंजू
विष्णु राजगढ़िया
रांची : जमशेदपुर की रंजू कुमारी के लिए नेत्रहीनता कोई बाधा नहीं। प्रतिभावान रंजू भी सारे सामान्य काम आसानी से कर लेती है। रंजू कुमारी जेपीएससी की वर्ष 2007 में द्वितीय मुख्य परीक्षा में शामिल थीं। लेकिन नेत्रहीन होने के कारण उन्हें साक्षात्कार में बैठने नहीं दिया गया। उनकी ओर से राजेंद्र प्रसाद से सूचना मांगी कि नियमानुसार एक प्रतिशत पद पर दृष्टिहीन प्रत्याषियों का चयन क्यों नहीं यिा गया। सूचना नहीं मिलने पर मामला सूचना आयोग में गया. सूचना आयुक्त बैजनाथ मिश्र ने पाया कि जन सूचना अधिकारी ने संतोषजनक सूचना नहीं दी है. दृष्टिहीन अभ्यर्थियों के नाम और पते की सूचना के संबंध में जन सूचना पदाधिकारी ने तर्क दिया कि चयन प्रक्रिया की गोपनीयता बरकरार रखने के लिए यह सूचना नहीं दी जा सकती. उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यह सूचना तीसरे व्यक्ति से संबंधित है जो सूचना कानून के तहत देय नहीं है. आवेदक ने किसी दृष्टिहीन का चयन नहीं किये जाने संबंधी कारण की सूचना मांगी थी. इस संबंध में जन सूचना अधिकारी द्वारा दी गयी सूचना को आयोग ने प्रामाणिक नहीं माना. अपने आदेश में सूचना आयुक्त ने लिखा कि जन सूचना अधिकारी द्वारा कहा गया है कि किसी दृष्टिहीन का चयन इसलिए नहीं हो सका क्योंकि साक्षात्कार के समय गठित मेडिकल बोर्ड के अनुसार दृष्टिहीन अभ्यर्थी का उपसमाहर्ता पद के लिए चयन नहीं किया जा सकता. लेकिन जन सूचना पदाधिकारी ने अपने इस जवाब के समर्थन में न तो मेडिकल बोर्ड को निर्णय की प्रतिलिपि उपलब्ध करायी और न ही जेपीएससी अथवा झारखंड सरकार का ऐसा कोई सरकुलर संलग्न किया जिसमें यह कहा गया हो कि किसी दृष्टिहीन व्यक्ति को उपसमाहर्ता पद पर चयनित नहीं किया जा सकता. सूचना आयोग ने यह भी पाया कि एक प्रतिशत आरक्षण के संबंध में दी गयी सूचना भी गोलमटोल है। इस प्रक्रिया में बाध्य होकर जेपीएससी ने रंजू नामक उस अभ्यर्थी को साक्षात्कार के लिए आमंत्रित किया, जिसे पूर्व में दृष्टिहीन होने के नाम पर इस अवसर से वंचित रखा गया था. जेपीएससी ने विकलांग कोटि के परीक्षाफल जारी कर दिये। इसमें रंजू कुमारी सहित पांच विकलांग अभ्यर्थियों का चयन अंतिम रुप से कर लिया गया। साथ ही, विकलांगों को हक देने के लिए सरकार ने नीति भी बनायी।फिलहाल रंजू कुमारी जमषेदपुर में वाणिज्यकर अधिकारी हैं। उनका चयन आरटीआइ सिटीजन अवार्ड के लिए किया गया है। इतना ही नहीं, दस अक्तूबर को होटल चिनार मे ंआयोजित सम्मान समारोह का दीप भी रंजू ही जलायेंगी। जिस समारोह में कई पूर्व सांसद, पूर्व मंत्री व विधायक हों, वहां रंजू की ऐसी वीआइपी हैसियत सूचनाधिकार की सफलता को बयान करती है।

सोमवार, 28 सितंबर 2009


बंगाल पुलिस ने मीडिया के नाम पर विश्वासघात किया
आनलाइन हस्ताक्षर द्वारा विरोध अवश्य करें

पश्चिम बंगाल की सीआइडी पुलिस ने मीडिया के नाम पर विश्वासघात किया है। लालगढ़ आंदोलन के चर्चित नेता छत्रधर महतो को पकड़ने के लिए पुलिस ने पत्रकार का वेश बनाकर 26 सितंबर को ऐसा किया।
यह मीडिया के प्रति लोगों के भरोसे की हत्या है। यह मीडिया की स्वायत्तता का अतिक्रमण है। यह बेहद शर्मनाक, आपत्तिजनक एवं अक्षम्य अपराध है। इसका पुरजोर विरोध होना चाहिए। इस संबंध में तत्काल एक स्पष्ट कानून बनना चाहिए।
कृपया अपना विरोध दर्ज कराने के लिए यहां क्लिक करके प्रधानमंत्री के नाम पत्र पर आनलाइन हस्ताक्षर करें
http://www.petitiononline.com/wbmisuse/petition.html
पूरी स्टोरी

सोमवार, 7 सितंबर 2009

स्मिता और डिसूजा के सच की दुनिया
विष्णु राजगढ़िया

कोई खुद अपना सच सार्वजनिक करना चाहता है। इसमें दूसरों को कोई आपत्ति नहीं। फिलहाल तो अपन ऑल्विन डिसूजा और स्मिता मथाई के लिए चिंतित हैं कि सच का सामना के बाद उनकी दुनिया क्या होगी।
पहले एपिसोड में स्मिता मथाई ने सच का सामना किया। यह मध्यवर्गीय शिक्षिका को अपना घर चलाने के लिए डिब्बाबंद भोजन की भी आपूर्ति करनी पड़ती है। पति शराबी जो ठहरा। एपिसोड में पति महोदय के सामने स्मिता मथाई मानती है कि सिर्फ बच्चों के कारण वह पति के साथ है। यहां तक कि वह अपने पति की हत्या करने और उसे धोखा देने तक की सोचती है।
अगला सवाल था- अगर आपके पति को पता नहीं चले तो क्या आप किसी गैर-मर्द के साथ हमबिस्तर होंगी? स्मिता मथाई का जवाब था- नहीं। लेकिन पोलिग्राफ मशीन कहती है कि स्मिता मथाई झूठ बोल रही है। इस वक्त तक पांच लाख रुपये कमा चुकी स्मिता मथाई को खाली हाथ लौटना पड़ा।
पांचवें एपिसोड में ऑल्विन डिसूजा ने अपने सारे पाप कबूल लिये। अपनी मां, बहन, सास और पत्नी के सामने। चोरी-छिपे लेडिज टॉयलेट में घुसने और काम के बहाने दोस्तों के साथ मौज-मस्ती करने की बात उसने गर्व के साथ स्वीकारी। उसने माना कि अगर बीबी को पता नहीं चले तो वह किसी अन्य लड़की के साथ शारीरिक संबंध बना सकता है, लेकिन अगर बीबी धोखा देगी तो बर्दाश्त नहीं। वह पत्नी के साथ अंतरंग पलों में दूसरी के सपने भी देखता है। वह जोरू का गुलाम है। वह सोचता है कि उसकी बीबी कोई और होती।
सामने बैठी पत्नी उर्वशी ने हर सच के 'सच होने पर खुशी से तालियां बजायीं। ऑल्विन डिसूजा ने सारा सच मुसकुराते हुए स्वीकारा। लेकिन उसने यह नहीं माना कि क्रूज शिप में नौकरी के दौरान यात्री के सामान चुराये। पोलिग्राफ मशीन ने इसे डिसूजा का झूठ माना। उस वक्त तक जीते हुए दस लाख गंवाकर वह खाली हाथ लौटा।
स्मिता ने पति और ऑल्विन ने पत्नी के सामने ऐसी बातें मानीं जो शेष जीवन में जहर घोल सकती हैं। लेकिन प्रतियोगी और परिजन, सब सहज प्रसन्न्ता के साथ तालियां बजा रहे थे। दरअसल उन्हें एक करोड़ रुपये दिख रहे थे। सच कबूलने के इतने पैसे मिलें तो सब पाप माफ। लेकिन खाली हाथ लौटे प्रतियोगी के पाप को कौन अपनायेगा? स्मिता ने तो मान लिया कि वह ग्राहकों को बासी खाना परोसती है। कौन लेगा उससे टिफिन? कार्यस्थल पर यात्री का सामान चुराने वाले के लिए भला किस कंपनी में जगह? चोरी का कोई पुराना केस भी खुल जाये तो क्या कहना!

रविवार, 30 अगस्त 2009

कॉमनवेल्थ गेम के लिए बिजली मिलना मुश्किल
विष्णु राजगढ़िया
रांची : दिल्ली में कामनवेल्थ गेम्स 2010 के लिए बिजली मिलने की राह मुश्किल होती जा रही है। गेम के लिए 2500 मेगावाट बिजली देने का दायित्व डीवीसी पर है। इसके लिए डीवीसी कई नयी विद्युत परियोजनाओं पर बरसों से काम कर रहा है। लेकिन डीवीसी के अध्यक्ष की कुरसी खाली होने के कारण सभी परियोजनाएं लगातार पिछड़ती जा रही है। समझा जाता है कि कामनवेल्थ गेम के समय तक डीवी अपनी परियोजनाएं पूरी नहीं कर सकेगा। ऐसे में कामनवेल्थ गेम के ऐन मौके पर बिजली के लिए तरसना पड़ सकता है। ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स एसोसिशन के अध्यक्ष पद्मजीत सिंह ने आज प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में इन तथ्यों की विस्तृत जानकारी दी है। पत्र के अनुसार चंद्रपुरा की सात नंबर यूनिट को 31 अगस्त 2009 तक 250 मेगावाट बिजली के उत्पादन का लक्ष्य दिया गया था, लेकिन वहां अब भी काम अधूरा होने के कारण यह लक्ष्य पूरा नहीं हो पायेगा। मालूम हो कि चंद्रपुरा यूनिट नंबर सात एवं आठ को जनवरी 2007 में ही 250-250 मेगावाट बिजली उत्पादन करना था। लेकिन उर्जा मंत्रालय उसे बार-बार अवधि विस्तार देता आया है। हर बार उसे असफलता हासिल लगी। इस बार फिर अवधि बढ़ाने की नौबत आ गयी है। पत्र में पद्मजीत सिंह ने लिखा है कि चंद्रपुरा बिजली परियोजना में हुआ विलंब महज इस बात का संकेत है कि अन्य परियोजनाओं का क्या हश्र होने जा रहा है। पत्र के अनुसार डीवीसी की रघुनाथपुर, कोडरमा, मेजिया-2 तथा दुर्गापुर परियोजनाएं भी काफी पिछड़ गयी हैं।डीवीसी में अध्यक्ष का पद दिसंबर 2008 से खाली है। जून 2009 में नये अध्यक्ष के बतौर श्रीमत पांडेय का चयन हुआ था। वह राजस्थान में मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव हैं। राजस्थान सरकार द्वारा विमुक्त नहीं किये जाने के कारण वह डीवीसी में कार्यभार नहीं संभाल पाये हैं। अध्यक्ष की अनुपस्थिति में डीवीसी की सारी परियोजनाएं पिछड़ गयी हैं। इस संबंध में डीवीसी इंजीनियर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष एके जैन ने दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को भी पत्र भेजा है। श्री जैन ने अध्यक्ष के अभाव में कामनवेल्थ गेम के लिए बिजली मिलना मुश्किल होने की सूचना देते हुए श्रीमती दीक्षित से इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप का आग्रह किया है। श्री जैन के अनुसार अगर अध्यक्ष की नियुक्ति के लिए नये सिरे से प्रक्रिया शुरू की गयी तो और छह महीने लग जायेंगे तथा सारी परियोजना काफी पीछे चली जायेंगी।

गुरुवार, 20 अगस्त 2009

पचास नागरिकों को मिलेगा आरटीआइ सिटिजन अवार्ड
रांची: सूचना कानून की चैथी वर्षगांठ पर झारखंड के पचास नागरिकों को आरटीआइ सिटिजन अवार्ड दिया जायेगा। झारखंड आरटीआइ फोरम और सिटिजन क्लब ने यह आयोजन किया है। इसके लिए नामांकन 15 सितंबर तक आमंत्रित हैं। झारखंड का कोई नागरिक स्वयं अपने लिए अथवा किसी अन्य के लिए नामांकन भेज सकता है। इसके लिए सूचना कानून के तहत किये गये कार्यों, सफलता के विवरण एवं संबंधित दस्तावेजों की फोटो कापी के साथ अपना पूरा पता, फोन नंबर, ईमेल पता इत्यादि भेजना होगा। यह घोषणा झारखंड आरटीआइ फोरम के अध्यक्ष बलराम एवं सचिव विष्णु राजगढ़िया ने की है।
नामांकन भेजने का पता है-
झारखंड आरटीआइ फोरम, 4-सी, घराना पैलेस, संध्या टावर, पुरलिया रोड, रांची।
विशेष जानकारी आरएन सिंह से 9430246440 नंबर पर मिलेगी।
rtistory.blogspot.com तथा rti.net.in पर भी जानकारी मिलेगी।
ई-मेल पता है- rtistory@gmail.com

सोमवार, 3 अगस्त 2009

नेता-अफसर-व्यवसायी व बिचौलिया गठजोड़ का नमूना है चारा घोटाला
राणा को सजा से राजद का संकट बढ़ा
विष्णु राजगढ़िया
रांची : देश का सबसे बड़ा चारा घोटाला एक बार फिर चर्चा में आ गया है। रांची में सीबीआइ विशेष अदालत ने 14 लोगों को सजा सुनायी है। इनमें राजनेता, अधिकारी, व्यवसायी और बिचौलिये शामिल हैं। इस फैसले ने पिछले दो दशकों में विकास राशि की लूट में इस चौकड़ी की भूमिका को उजागर कर दिया है।
पंद्रह साल पहले बिहार में 950 करोड़ का यह घोटाला पकड़ में आया था। इस मामले की जांच कर रही सीबीआइ के आरोपपत्रों, गवाहों के बयानों एवं अदालत के आदेशों से यह बात स्पष्ट तौर पर सामने आयी है कि पशुपालन विभाग के कतिपय अधिकारियों ने कुछ आपूर्तिकर्ताओं के साथ गंठजोड़ करके लंबे अरसे तक बेजुबान पशुओं के हक पर डाका डाला।
इसमें कुछ बिचौलियों की अहम भूमिका रही जिन्होंने घोटालेबाजों को राजनीतिक संरक्षण दिलाकर घोटाले का आकार और विस्तार बढ़ा दिया। यहां तक कि डॉ आरके राणा जैसे बड़े बिचौलिये बाद में खुद राजनेता बन बैठे। चारा घोटाले की मेहरबानी से लालू प्रसाद ने उन्हें पहले विधायक, फिर सांसद बनने का नायाब अवसर दिया।
दूसरी ओर, लालू यादव के खास करीबी एवं राजद के पूर्व सांसद डॉ आरके राणा को दोषी करार दिये जाने के साथ ही राजद का संकट बढ़ गया है। इसका गहरा असर झारखंड में आगामी विधानसभा चुनावों पर पड़ने की संभावना जतायी जा रही है। झारखंड में कांग्रेस, झामुमो और वाम दलों ने पहले ही राजद को अलग-थलग कर रखा है। हाल के दिनों में झाविमो ने राजद की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया है। लेकिन पशुपालन घोटाला एक बार फिर चर्चा में आ जाने तथा लालू-जगन्न्ाथ से जुड़े तीन मामलों में गवाही तेज हो जाने के कारण राजद को राजनीतिक अलगाव के खतरे से जूझना पड़ सकता है।
पहली बार किसी राजनेता को पशुपालन घोटाले में दोषी करार दिये जाने के बाद लालू यादव और डॉ जगन्न्ाथ मिश्र के राजनीतिक भविष्य को लेकर आकलन किये जा रहे हैं।
भारत के सबसे बड़े पशुपालन घोटाले के 32 मामलों में 740 अभियुक्तों को सजा सुनायी जा चुकी है। लालू यादव एवं जगन्न्ाथ मिश्र से जुड़े पांच मामलों की सीबीआइ अदालत में सुनवाई चल रही है। इन पर पशुपालन अधिकारियों एवं आपूर्तिकर्त्ताओं के साथ मिलीभगत करके दुमका, देवघर, चाइबासा एवं डोरंडा स्थित कोषागारों से लगभग 250 करोड़ रुपयों की अवैध निकासी का आरोप है।
फिलहाल डॉ राणा को सजा सुनाये जाने के साथ ही सबकी नजर लालू-जगन्न्ाथ से जुड़े पांचों मामलों पर है। इनमें से किसी एक मामले पर भी सजा सुनाये के साथ ही राजद का राजनीतिक संकट काफी गहरा हो जायेगा। इस आशंका ने झारखंड राजद के नेताओं और विधायकों को चिंता में डाल दिया है। हालांकि इस मामले पर टिप्पणी करने से सब बच रहे हैं।
Fodder Scam / Vishnu Rajgadia / Nai Dunia / 03-08-2009
भूख के खिलाफ एक कानून
विष्णु राजगढ़िया
भारतीय संविधान के 21 वें अनुच्छेद में हर नागरिक को जीने का अधिकार मिला हुआ है। लेकिन जिस व्यक्ति के पास जीने के लिए जरूरी साधन न हो और जो भूख से मरने के लिए मजबूर हो, उसके बारे में अब तक कोई स्पष्ट कानून नहीं है। भूख से मौत की जटिल परिभाषा के कारण बड़ी संख्या में ऐसी ज्यादातर मौतें रिकॉर्ड में नहीं आ पातीं। अब खाद्य सुरक्षा कानून के रूप में पहली बार भारत सरकार हर इंसान को जिंदा रहने के लिए जरूरी खाद्यान्न् उपलब्ध कराने का दायित्व स्वीकारने जा रही है। यह कोई योजना नहीं, बल्कि एक कानून होगा। इस लिहाज से इसे सामाजिक कल्याण के एक बड़े कदम के बतौर देखा जा रहा है।
कांग्रेस ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में खाद्य सुरक्षा कानून बनाने का वादा किया था। पहली पारी में मनमोहन सरकार ने नरेगा और सूचना का अधिकार कानून बनाकर एक प्रगतिशील छवि बनाने में जबरदस्त सफलता पाई थी। कांगेस की सफलता के पीछे इन दोनों कानूनों का बड़ा हाथ माना जा रहा है। अब दूसरी पारी में मनमोहन सरकार खाद्य सुरक्षा कानून लाकर एक बड़ी लकीर खींचना चाहती है। इसे सौ दिनों के अंदर किये जाने वाले कार्यों की सूची में रखा गया है। केंद्रीय बजट में भी इसका प्रावधान देखा गया।
हालांकि भारत में खाद्य सुरक्षा संबंधी मौजूदा सुविधाओं और प्रावधानों का श्रेय किसी राजनीतिक दल को नहीं जाता। पीयूसीएल की राजस्थान इकाई ने वर्ष 2001 में भोजन के अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। उस वक्त देश के गोदामों में भरपूर अनाज होने के बावजूद देश के विभिन्न् हिससों से भूख से मौत की खबरें आ रही थीं। इस याचिका के साथ ही भोजन के अधिकार को लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं की पहल पर हाल के वर्षों में सर्वोच्च न्यायालय ने महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किये। आज भी सुप्रीम कोर्ट के प्रत्यक्ष देख-रेख में भी खाद्य सुरक्षा संबंधी सीमित व्यवस्था लागू है। इसमें बच्चों के लिए स्कूल में दोपहर का भोजन, आईसीडीसी और आंगनबाड़ी में मिलनेवाली खाद्य सामग्री प्रमुख है।
फिलहाल खाद्य सुरक्षा कानून के स्वरूप को लेकर विचार-विमर्श जारी है। इस दिशा में सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि इस कानून के निर्माण की प्रक्रिया पर सिविल सोसाइटी को तीक्ष्ण नजर रखते हुए ठोस हस्तक्षेप करना चाहिए ताकि एक मुकम्मल कानून बन सके। इस कानून की मूल भावना भारत में रहने वाले हर व्यक्ति के लिए सम्मानपूर्वक एक सक्रिय एवं स्वस्थ जीवन जीने के लिए उपयुक्त खाद्य आवश्यकता उपलब्ध कराना बताई जाती है। इन खाद्य जरूरतों को पर्याप्त मात्रा में तथा पोष्टिक और सांस्कृतिक तौर पर अनुकूल होने और भौतिक, आर्थिक एवं सामाजिक तौर पर इसकी उपलब्धता सुनिश्चित करना आवश्यक बताया जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा मध्याह्न भोजन के लिए नियुक्त किये गये कमिश्नर के सलाहकार बलराम के अनुसार मौजूदा सभी योजनाओं का लाभ इस कानून में अवश्य शामिल किया जाना चाहिए। साथ ही, इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के सभी आदेशों के अनुकूल प्रावधान भी शामिल किये जाने चाहिए। इसके अंतर्गत सभी सरकारी एवं वित्त प्रदत्त स्कूलों में पकाया हुआ गर्म एवं पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने, छह साल तक बच्चों को आइसीडीएस की सुविधाएं और प्राथमिकता वाले समूहों को अंत्योदय की सुविधाएं उपलब्ध कराना शामिल है। जो सामाजिक समूह अब तक किसी योजना में शामिल नहीं हैं, उनके लिए भी खाद्यान्न् सुनिश्चित करने का प्रावधान किये जाने की मांग की जा रही है। जैसे, शहरी गरीब और स्कूल नहीं जाने वाले बच्चे। भूख से मौत की ओर उन्मुख आबादी की खाद्य सुरक्षा के लिए सरकार से सक्रिय होने की इस कानून में अपेक्षा की जा रही है। इसमें धनी वर्ग को छोड़कर देश में रहने वाले सभी लोगों को जनवितरण प्रणाली के तहत प्रति परिवार 35 किलो अनाज प्रति माह तीन स्र्पये की दर से करने का प्रावधान होने की संभावना है। कमजोर समूहों को अनुदानित दर पर तेल एवं दाल, घी उपलब्ध कराने की मांग की जा रही है।
कुछ लोगों ने खाद्यान्न् के बदले गरीबों और बच्चों को नगद राशि देने का सुझाव दिया है। लेकिन सामाजिक कार्यकर्ता इनसे सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि खाद्यान्न् का विकल्प खाद्यान्न् ही हो सकता है, नगद नहीं। फिर, नगद पर पुस्र्षों का अधिकार होता है, जबकि अनाज पर महिलाओं का अधिकार होता है। इस कानून में खाद्यान्न् से संबंधित मामलों में महिलाओं को घर का मुखिया मानने का प्रावधान करने का सुझाव दिया जा रहा है।
हमारे देश में विभिन्न् सामाजिक कल्याण संबंधी योजनाओं में कॉरपोरेट घरानों और ठेकेदारों की घुसपैठ होती रही है। इस कानून में इसे रोकने के सख्त उपाय की मांग की जा रही है। साथ ही, शिकायतों पर कार्रवाई की सुदृढ़ व्यवस्था, कानून की अवहेलना करने वाले अधिकारियों को दंड और इसके कारण वंचित लोगों को समुचित मुआवजा देना भी कानून का अनिवार्य अंग होना चाहिए। इस कानून में खाद्यान्न् उत्पादन को बढ़ावा देने तथा सभी क्षेत्रों में खाद्यान्न्ों में प्राप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने संबंधी स्पष्ट प्रावधान हो।खाद्य सुरक्षा कानून में कई अन्य जटिलताओं को ध्यान में रखना जरूरी है। एक बड़ी जटिलता गरीबी रेखा से नीचे के लोगों को चिह्नित करना, इनकी मुकम्मल सूची तैयार करना और समय-समय पर इसका संशोधन करना है। बीपीएल सूची के लिए नये मापदंड बनाने की जरूरत महसूस की गई है। फिर, इस संख्या के अनुपात में राशि का आवंटन करना भी एक बड़ी चुनौती होगी। इसके अलावा वितरण की समस्या को सबसे बड़ी चुनौती के रूप में देखा जा रहा है। अब तक का अनुभव बताता है कि केंद्रीय योजनाओं का लाभ नीचे तक नहीं पहुंच पाता तथा योजनाओं के बावजूद लोगों की जिंदगी पर कोई स्पष्ट दिखने वाला फर्क नजर नहीं आता। अब तक चल रही जन वितरण प्रणाली का हाल किसी से छुपा नहीं है।
ऐसे में खाद्य सुरक्षा कानून के लिए बड़ी चुनौती इसका लाभ वास्तविक लोगों तक पहुंचाने के लिए मुकम्मल वितरण व्यवस्था तैयार करनी होगी। यही कारण है कि कृषि राज्य मंत्री केवी थॉमस ने इस कानून को नरेगा से भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण करार दिया है। इस कानून के मसविदा दस्तावेज में बीपीएल के अलावा कई अन्य लाभुक समूहों को तीन स्र्पये की दर से प्रतिमाह 35 किलो अनाज उपलब्ध कराने की बात कही गयी है। इसमें अकेली महिला, लेप्रोसी पीड़ित लोग, एचआइवी या मानसिक रोग ग्रस्त लोग, बंधुआ मजदूर, भूमि हीन कृषि मजदूर, स्वपेशा दस्तकार, कचड़ा चुनने वाले, निर्माण उद्योग से जुड़े मजदूर, फुथपाथ विक्रेता, रिक्शाचालक, घरेलू नौकर इत्यादि शामिल हैं। प्राकृतिक आपदा या सांप्रदायिक दंगे के शिकार लोगों को भी इसका लाभ मिल सकता है। ऐसे बीपीएल परिवारों को दोगुना राशन मिल सकता है, जिनमें छह साल से छोटे बच्चे, किशोरी, गर्भवती स्त्री या बच्चें को दूध पिलाने वाली मां हो। कानून के प्रारूप में हर पांच साल पर सर्वेक्षण करके लाभुकों को पहचान पत्र निर्गत करने की बात कही गई है। वृद्ध लोगों, अकेली महिला तथा विकलांगों को आइसीडीएस केंद्र या स्कूल में मध्याह्न भोजन उपलब्ध कराने की बात कही गई है। मसविदा विधेयक में राज्य सरकार पर जन वितरण प्रणाली द्वारा अनाज की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करने का दायित्व सौंपा गया है। दुकानदारों के चयन में स्थानीय निकाय प्रतिनिधियों की भूमिका होगी तथा इन प्रतिनिधियों के साथ हर तीन महीने पर बैठक के जरीय निगरानी रखी जायेगी। राज्य सरकारों को पूरी जनवितरण प्रणाली दो साल के भीतर कंप्यूटरीकृत कर लेनी होगी। शिकायतें दर्ज कराने के लिए नि: शुल्क टेलीफोन नंबर तथा वेबसाइट की व्यवस्था करनी होगी। सभी शिकायतों का 39 दिनों में निपटारा करके इसे सार्वजनिक रूप से घोषित करना जरूरी होगा। इस कानून का पालन नहीं करने वाले अधिकारियों पर एक महीने पांच साल तक के वेतन लग सकता है। लापरवाह अधिकारियों को भूख से मौत या गंभीर रोगजन्य स्थितियों के लिए छह माह से पांच साल तक जेल की सजा भी दी जा सकती है।
भारत में आज भी भूख और कुपोषण आज बड़ी समस्या है। अटल बिहारी वाजपेयी जब पहली बार प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने कालाहांडी को खाद्यान्न् का कटोरा बनाने का वादा किया था। लेकिन वह कोई ठोस कदम नहीं उठा सके। अब मनमोहन सरकार ने खाद्य सुरक्षा कानून के रूप में एक बड़ी पहल की है। आज भारत में भुखमरी के शिकार लोगों की संख्या 32 करोड़ बताई जाती है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स ने भुखमरी के शिकार 119 देशों की सूची जारी की थी, जिसमें भारत का नाम शामिल है। झारखंड और छत्तीसगढ़ को सबसे ज्यादा खाद्य असुरक्षित राज्य माना जाता है। इनके बाद मध्यप्रदेश, बिहार और गुजरात का नाम आता है। फरवरी 2009 में विश्व खाद्य कार्यक्रम तथा एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन ने ग्रामीण भारत में खाद्य असुरक्षा संबंधी एक रिपोर्ट जारी की थी। इसमें बताया गया कि भारत में कुपोषित लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। खाद्य उत्पादन के जिम्मे विकास, बढ़ती बेरोजगारी तथा गरीबांे की घटती क्रयशक्ति को इसका प्रमुख कारण बताया गया।
बहरहाल, भूख के खिलाफ एक कानून का सबको इंतजार है। कांग्रेस इसे सन सत्तर के गरीबी हटाओ के नारे तथा नरेगा की अगली कड़ी के बतौर देख रही है। भाजपा व अन्य विपक्षी इसे लोकलुभावन और सस्ता प्रयास बताकर इसकी मंशा और व्यावहारिकता पर अनगिनत सवाल खड़े कर रहे हैं। इतना तो तय है कि भूख से संरक्षण को कानून बनाने और हर आदमी की खाद्य सुरक्षा को राज्य का दायित्व स्वीकारने के बाद हमारा देश एक वास्तविक लोककल्याण राज्य बनने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ रहा होगा।
Food Security / Vishnu Rajgadia / Nai Dunia- Edit page 03-08-09

शनिवार, 1 अगस्त 2009

लालू के करीबी डॉ राणा को पांच साल जेल
विष्णु राजगढ़िया
रांची : लालू यादव के खास करीबी डॉ आरके राणा को चारा घोटाले में पांच साल कैद की सजा मिली है। राजद के पूर्व सांसद डॉ राणा पहले ऐसे राजनेता हैं, जिन पर दोष साबित हुआ है। लगभग एक हजार करोड़ के इस चारा घोटाले के अन्य पांच मामलों में बिहार के दो पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद एवं डॉ जगन्न्ाथ मिश्र भी अभियुक्त हैं। उनमें से तीन मामलों की सुनवाई भी तेज हो जाने से लालू प्रसाद व राजद का राजनीतिक संकट गहरा होता जा रहा है।
सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश बीके झा 'प्रवीर ने आरसी 22 ए/96 मामले के 12 अभियुक्तों को आज सजा सुनायी। डॉ राणा को पांच साल कैद के अलावा चार लाख का जुर्माने की सजा सुनायी गयी है। आपूर्तिकर्ता त्रिपुरारी मोहन प्रसाद एवं बजट अधिकारी ब्रजभूषण प्रसाद को पांच साल कैद और 4.90 लाख जुर्माने की सजा मिली है। गोड्डा के तत्कालीन डीवीओ डॉ शशि कुमार सिन्हा को साढ़े चार साल की कैद और दो लाख रुपये जुर्माने की सजा मिली है। गोड्डा के दो तत्कालीन ट्रेजरी अधिकारियों उमेश प्रसाद सिंह एवं कृष्णदेव प्रसाद सिन्हा को चार साल की कैद और 55 हजार रुपये जुर्माने की सजा मिली है। पूर्व ट्रेजरी क्लर्क सतीशचंद्र झा एवं भानुकर दुबे को चार साल की कैद और 50 हजार रुपये जुर्माने की सजा मिली है। आपूर्तिकर्ता दयानंद कश्यप को साढ़े चार साल की कैद और 4.10 लाख जुर्माना, आपूर्तिकर्ता सुनील कुमार सिन्हा को चार साल कैद और पांच लाख जुर्माना, आपूर्तिकर्ता सुशील कुमार सिन्हा को साढ़े तीन साल कैद और 4.10 लाख का जुर्माना तथा आपूर्तिकर्ता संजय शंकर को साढ़े तीन साल कैद और 40 हजार रुपये जुर्माना की सजा मिली है।
इससे पहले कल आपूर्तिकर्ता सरस्वती चंद्रा को दो साल कैद और 20 हजार तथा फूल सिंह को ढाई साल कैद और 30 हजार रुपये जुर्माना की सजा सुनायी गयी थी।
अदालत ने फैसले में कहा है कि इन अभियुक्तों ने साजिश करके फरजी निकासी की। इस मामले में सीबीआइ ने पूर्व सांसद डॉ आरके राणा पर अपने राजनीतिक संबंधों का लाभ उठाकर घोटालेबाजों को संरक्षण देने तथा स्थानांतरण और पदस्थापन कराने का आरोप लगाया था। यह मामला 1992 में गोड्डा जिला कोषागार से 28.26 लाख रुपये की अवैध निकासी का है। इस मामले में कुल 20 अभियुक्त दोषी थे। इनमें चार अभियुक्तों डॉ श्याम बिहारी सिन्हा, श्यामचंद्र झा, डॉ जगदीश नारायण प्रसाद, डॉ शेषमुनि राम का निधन हो चुका है। दो अभियुक्त महेंद्र प्रसाद, सुशील झा अपना अपराध कबूल कर सरकारी गवाह बन गये हैं। इस मामले में 28.02.1996 को प्राथमिकी दर्ज की गयी थी तथा सीबीआइ ने 26.02.1999 को इस मामले में चार्जशीट दायर किया था। इस मामले में 17.08.2004 को आरोप गठन हुआ था।
डॉ आरके राणा जब पटना के वेटनरी कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे, उसी दौरान उनका लालू प्रसाद से गहरा रिश्ता बन गया था। बाद में डॉ राणा उसी वेटनरी कॉलेज में पोल्ट्री फार्म के प्रभारी बन गये। वहीं आवास भी ले लिया। राजनीतिक शुरूआत के दौरान डॉ राणा के यहां लालू का ठिकाना था। बाद में जब लालू प्रसाद मुख्यमंत्री बने तो पशुपालन विभाग में आपूर्ति से लेकर स्थानांतरण और पदस्थापन में डॉ राणा की महत्वपूर्ण भूमिका हो गयी। सीबीआइ के एक गवाह ने अदालत को दिये गये बयान में डॉ राणा पर चालीस करोड़ से भी ज्यादा राशि वसूलने का आरोप लगाया था। 1996 में सीबीआइ ने चारा घोटाले की जांच के दौरान डॉ राणा के ठिकानों से आठ करोड़ की संपत्ति जब्त की थी। चारा घोटाले में गंभीर आरोपों के बावजूद लालू प्रसाद ने उन्हें 1995 के विधानसभा चुनाव में गोपालपुर से टिकट देकर विधायक बनाया। बाद में वह खगड़िया से सांसद बने। 2009 के लोकसभा चुनाव में वह हार गये।
Nai Dunia 02-08-2009

मंगलवार, 28 जुलाई 2009

चारा घोटाला : लालू-जगन्नाथ के मामलों में तेजी आयी
-डॉ मिश्र को झारखंड हाईकोर्ट से नहीं मिली राहत
-डॉ आरके राणा समेत 14 पर फैसला 31 को
-चारा घोटाले में पहली बार किसी राजनेता पर

विष्णु राजगढ़िया
रांची : पशुपालन घोटाले में लालू यादव एवं डॉ जगन्नाथ मिश्र से जुड़े पांच में से तीन मामलों की सुनवाई तेज हो गयी है। दूसरी ओर झारखंड उच्च न्यायालय ने एक मामले में डॉ मिश्र को राहत देने से इंकार कर दिया है। पशुपालन घोटाले संबंधी एक अन्य मामले में लालू यादव के खास करीबी एवं राजद के पूर्व सांसद डॉ आरके राणा सहित 14 लोगों के संबंध में फैसला 31 जुलाई को सुनाया जायेगा। इस घोटाले में पहली बार किसी प्रमुख राजनीतिक के मामले में फैसला होने वाला है।

बिहार के दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों के खिलाफ रांची सीबीआइ की विशेष अदालत में चल रहे पांच मामलों में 410 अभियुक्त हैं। इन पर पशुपालन अधिकारियों एवं आपूर्तिकर्त्ताओं के साथ मिलीभगत करके दुमका, देवघर, चाइबासा एवं डोरंडा स्थित कोषागारों से लगभग 250 करोड़ रुपयों की अवैध निकासी का आरोप है। पशुपालन घोटाले की जांच कर रहे सीबीआइ के आरक्षी अधीक्षक आरसी चौधरी के अनुसार दो मामलों आरसी-20ए/96 तथा 68ए/96 की सुनवाई फिलहाल जज के अभाव में स्थगित है। श्री चौधरी के अनुसार शेष तीन मामलों आरसी 38ए/96, आरसी 47ए/96 तथा आरसी 64ए/96 में गवाही चल रही है


इन मामलों पर सुनवाई जल्द पूरी होने की उम्मीद है। कांड संख्या आरसी 47ए/96 को पशुपालन घोटाले का सबसे बड़ा मामला माना जाता है। इसमें रांची के डोरंडा स्थित कोषागार से 182 करोड़ रुपये अवैध निकासी का आरोप है। आरसी 38ए/96 दुमका कोषागार से 31.34 करोड़ की अवैध निवासी का मामला है। कांड संख्या आरसी 64ए/96 देवघर कोषागार से पांच करोड़ रुपयों की अवैध निकासी से संबंधित है।

इस बीच बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ जगन्नाथ मिश्र को झारखंड हाईकोर्ट से निराशा हाथ लगी है। उन्होंने चारा घोटाला कांड संख्या आरसी 20 ए/96 से अपना नाम हटाने का अनुरोध किया था। डॉ मिश्र के अधिवक्ता राणाप्रताप सिंह ने अनुसार इस कांड में सीबीआइ ने उनके खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति गलत ढंग से ली थी। अभियोजन के लिए कैबिनेट से सहमति मिलने के बाद राज्यपाल द्वारा इसकी स्वीकृति दी जानी चाहिए थी। अधिवक्ता के अनुसार इस प्रक्रिया का पालन नहीं किये जाने के कारण उनका नाम इस कांड से हटाया जाना चाहिए। श्री सिंह ने अदालत में अपना पक्ष रखा कि अभियोजन के वक्त डॉ मिश्र राज्यसभा सदस्य थे, इसलिए राज्यसभा के स्पीकर से इसकी स्वीकृति ली जानी चाहिए थी।

दूसरी ओर, सीबीआइ की ओर से अधिवक्ता राजेश कुमार ने अदालत में कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा-19 व सीआरपीसी की धारा 197 के तहत डॉ मिश्र के खिलाफ अभियोजन के लिए स्वीकृति लेने की आवश्यकता नहीं। साथ ही, डॉ मिश्र पर नेता विपक्ष के बतौर कार्यकाल से संबंधित आरोप होने के कारण राज्यसभा स्पीकर से अनुमति की भी आवश्यकता नहीं थी। झारखंड हाईकोर्ट में जस्टिस अमरेश्वर सहाय एवं जस्टिस आरआर प्रसाद की खंडपीठ ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद सोमवार को डॉ मिश्र की अपील याचिका खारिज कर दी। इससे पहले डॉ मिश्र ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके कहा था कि उन्हें इस मामले में अपना पक्ष रखने का अवसर नहीं दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड उच्च न्यायालय को दोनों पक्षों कर फिर से सुनने का निर्देश दिया था। लेकिन सुनवाई के बाद डॉ मिश्र को इसमें कोई राहत नहीं मिल सकी है। उक्त कांड संख्या आरसी 20 ए/96 में डॉ जगन्नाथ मिश्र के साथ लालू प्रसाद भी अभियुक्त हैं। सीबीआइ ने यह मामला 27 अप्रैल 1996 को दर्ज किया था। इसमें नकली सप्लायरों के जाली बिल बनाकर फरजी आपूर्ति के नाम से चाईबासा कोषागार से 37 करोड़ की अवैध निकासी का आरोप है। इस मामले में लालू प्रसाद और डॉ मिश्र जेल भी जा चुके हैं।

सीबीआइ के आरक्षी अधीक्षक आरसी चौधरी के अनुसार पशुपालन घोटाला कांड संख्या आरसी 22 ए/96 में सुनवाई पूरी हो चुकी है। सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश वीरेश्वर झा प्रवीर 31 जुलाई को फैसला सुनायेंगे। लगभग 28 लाख रुपयों की फरजी निकासी के इस मामले के 14 अभियुक्तों में राजद के पूर्व सांसद डॉ आर के राणा शामिल हैं। श्री राणा पर तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद से सांठगांठ करके पशुपालन अधिकारियों का पदस्थापन एवं तबादला कराने तथा घोटाला करने वालों को संरक्षण देने का आरोप है। इस मामले में सीबीआइ ने 20 अभियुक्तों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया था। उनमें से चार की मृत्यु हो चुकी है जबकि दो अभियुक्तों को सरकारी गवाह बना दिया गया।

सोमवार, 27 जुलाई 2009

झालीवुड का जलवा
विष्णु राजगढ़िया
नई दुनिया पत्रिका 26 जुलाई 2009

गुरुवार, 23 जुलाई 2009

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50 गुना लागत बढ़ी, समय अवधि चार गुना
फिर भी पूरी नहीं हुई स्वर्णरेखा परियोजना
विष्णु राजगढ़िया
रांची : झारखंड में अकाल की स्थिति है। खेत सूखे हैं। चार जिले सूखाग्रस्त घोषित किये जा चुके हैं और पूरे राज्य को सूखाग्रस्त घोषित करने की मांग की जा रही है। वैसे भी राज्य में मात्र 22 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि सिंचित है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह आंकडा 40 फीसदी से भी ज्यादा है।
झारखंड की इस बदहाली का एक बड़ा कारण अधिकांश सिंचाई योजनाओं का लंबित और अधूरी रह जाना है।स्वर्णरेखा बहुद्देश्यीय परियोजना वर्ष 1973 में बनी थी। उस वक्त इसकी लागत 90 करोड़ होने का अनुमान था। इसे आठ साल में पूरा कर लेने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन इन 36 वर्षों में यह परियोजना पूरी नहीं हो सकी है। इस बीच इसकी लागत राशि 90 करोड़ से लगभग 50 गुना ज्यादा बढ़ाकर 4540 करोड़ कर दी गयी है। लागत और अवधि में इतनी वृद्धि के बावजूद परियोजना अधूरी होना पूर्ववर्ती बिहार और अब झारखंड सरकार की कार्यसंस्कृति का घिनौना उदाहरण है।स्वर्णरेखा नदी छोटानागपुर के पठार से निकलकर पश्चिम बंगाल और ओड़िशा होकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
इस परियोजना का उद्देश्य झारखंड में सिंचाई और बिजली उत्पादन के साथ ही घरेलू एवं औद्योगिक उपयोग हेतु जल उपलब्ध कराना था। इसके अलावा पश्चिम बंगाल एवं ओड़िशा में बाढ़ नियंत्रण के लिहाज से भी इसे महत्वपूर्ण परियोजना माना गया था। इसके तहत चांडिल, खरकई, गालूडीह और ईचा में बांध के जरिये नहर बनानी थी। लेकिन अब तक कोई काम पूरा नहीं हुआ है। इसे दो चरणों में पूरी करना था।
पहले चरण में चांडिल, खरकई और गालूडीह संबंधी काम करना था और ईचा बांध संबंधी काम दूसरे चरण में करना था। लेकिन सारे काम एक साथ शुरू कर दिये जाने से अराजक स्थिति उत्पन्न् हो गयी। अगर पहले चांडिल बांध एवं उसकी नहर प्रणाली को पूरा किया गया होता तो इसका लाभ तत्काल मिल सकता था।इस परियोजना के लिए जमशेदपुर में एक विशेष परियोजना इकाई का गठन करके एक प्रशासक की नियुक्ति की गयी थी। सरकार के सचिव स्तर के इस प्रशासक को केंद्र एवं तीनों राज्य सरकारों से समन्वय स्थापित करने से लेकर परियोजना का बजट बनाने, वनभूमि संबंधी प्रबंध, पुनर्वास एवं ठेका प्रबंध इत्यादि कार्यों हेतु व्यापक शक्तियां हासिल थीं। लेकिन धीरे-धीरे प्रश्ाासक की शक्तियां छीनकर राज्य सरकार के जल संसाधन सचिव को दे दी गयीं। यहां तक कि कई बार प्रशासक का पद रिक्त रखा गया। एक बार लगभग डेढ़ साल तक यह पद रिक्त रहा।
इन चीजों ने परियोजना को बर्बाद करने में अहम भूमिका निभायी।विसथापन और पुनर्वास संबंधी चुनौतियों का समुचित हल नहीं ढूंढ़ पाने के कारण भी इस परियोजना को जटिलता और विरोध का सामना करना पड़ा। 1986 में 75 हजार एकड़ भूमि की आवश्यकता होने का अनुमान लगाया गया था। झारखंड बनने तक लगभग 50 हजार एकड़ भूमि का अधिग्रहण भी कर लिया गया था। लेकिन वर्ष 2002 में 116 हजार एकड़ भूमि की जरूरत का आकलन किया गया। दूसरी ओर, विस्थापितों के पुनर्वास और मुआवजा संबंधी विवादों के कारण जमीन का अधिग्रहण भी नहीं किया जा सका।परियोजना में अराजकता के कई अन्य गंभीर उदाहरण मिलते हैं। विभिन्न् कार्यों की स्वीकृति एवं क्रियान्वयन में तकनीकी पहलुओं की अनदेखी के कारण काफी नुकसान उठाना पड़ा। मसलन, चांडिल बायीं मुख्य नहर के 22.86 किलोमीटर पर एक पुल का निर्माण समतल भूमि से छह मीटर नीचे कर दिया गया। अत्यधिक ढाल के कारण इस पुल तक पहुंचने की सड़क बनाना मुश्किल था। इसके कारण इस पुल को बेकार छोड़ देना पड़ा। इसके बदले वर्ष 2006 में लगभग 50 लाख की लागत से एक नया पुल बनाना पड़ा।
इसी तरह, चांडिल बायीं मुख्य नहर के 25.42 किलोमीटर पर नहर को दलमा पहाड़ी से बहने वाले पानी से बचाने के लिए एक सुपर पैसेज बनाया गया था। लेकिन तकनीकी खामियों के कारण यह अपना काम नहीं कर सका और वैकल्पिक प्रबंध के लिए लगभग सवा करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च करना पड़ा।झारखंड अपने गठन के दौर से ही विकास की छटपटाहट से गुजर रहा है। लेकिन पूर्ववर्ती बिहार की कार्यसंस्कृति की छाया से उबर नहीं पाने के कारण सभी विकास योजनाएं अधर में लटकी हुई हैं। जमीन के अधिग्रहण और पुनर्वास व मुआवजे संबंधी नीति पर अब तक सहमति नहीं बन पाना भी इस दिशा मंे एक बड़ी समस्या है।
ऐसे में राज्य को सूखाग्रस्त घोषित करने और स्पेशल पैकेज के नाम पर केंद्र से कुछ अतिरिक्त राशि मांगने के सिवाय राजनीतिक दलों के पास भी कोई एजेंडा नहीं। स्वर्णरेखा बहुद्देश्यीय परियोजना कब पूरी होगी, यह पूछने की फुरसत उन्हें नहीं।

मंगलवार, 21 जुलाई 2009

सोनिया-मनमोहन पर हमले की धमकी
माओवादी विज्ञप्ति की जांच में जुटी झारखंड पुलिस
विष्णु राजगढ़िया
रांची : भाकपा (माओवादी) की एक प्रेस विज्ञप्ति ने झारखंड पुलिस की नींद हराम कर दी है। कल देर रात इस संगठन की घाटशिला सबजोनल कमेटी के प्रभारी अनूप मुखर्जी ने गढ़वा में एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी। इसमें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सीधी धमकी दी गयी थी। साथ ही इसमें झारखंड से केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय सहित कई प्रमुख कांग्रेसी नेताओं के नाम का उल्लेख करते हुए उन्हें एक सप्ताह के अंदर कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देने की धमकी दी गयी थी। पुलिस इस प्रेस विज्ञप्ति की असलियत जांचने में जुट गयी है। राष्ट्रीय स्तर के मामले पर पार्टी की केंद्रीय कमेटी के बजाय स्थानीय संगठन के एक नेता द्वारा जारी विज्ञप्ति को वास्तव में कितनी गंभीरता से लिया जाये, इसे लेकर झारखंड पुलिस उलझ गयी है। हालांकि राज्य के डीजीपी बीडी राम ने इसे पूरी गंभीरता से लेते हुए नक्सली मंसूबों को पूरा नहीं होने देने का भरोसा दिलाया है। दूसरी ओर, कांग्रेस नेताओं ने इस मामले की संवेदनशीलता को भंपते हुए फिलहाल इस पर टीका-टिप्पणी से परहेज करते हुए पुलिस को अपना काम गंभीरता से करने की सलाह दी है।माओवादियों की यह विज्ञप्ति गत दिन लोकसभा मंे गृहमंत्री पी चिदंबरम द्वारा नक्सलियों के खिलाफ दिये गये बयान की प्रतिक्रिया में जारी की गयी है। इसमें कहा गया है कि गृहमंत्री झारखंड सहित पूरे देश से नक्सलियों के खात्मे की घोषणा कर रहे हैं। यदि उनमें ताकत है तो झारखंड आकर देखें। नक्सली कोई खिलौना नहीं हैं जिन्हें खेलकर तोड़ दिया जाता है। वह नक्सलियों को खत्म करने का सपना छोड़ दें वरना उन्हें सजा-ए-मौत दी जायेगी। विज्ञप्ति में धमकी दी गयी है कि माओवादियों को आतंकी घोषित करने वाले मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी का भी वही हश्र कर दिया जायेगा जैसा राजीव गांधी के साथ लिट्टे ने किया था। विज्ञप्ति में केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप बलमुचु, राज्यसभा सदस्य धीरज साहू, विधायक नियल तिर्की एवं सौरभ नारायण सिंह को एक सप्ताह के भीतर कांग्रेस से इस्तीफा देने अथवा सजा-ए-मौत के लिए तैयार रहने की धमकी दी गयी है।माओवादी नेता अनूप मुखर्जी द्वारा जारी एक अन्य विज्ञप्ति में महंगाई के खिलाफ 22 जुलाई को झारखंड बंद का भी ऐलान किया गया है। सरकार ने इसे भी गंभीरता से लेते हुए पुख्ता सुरक्षा के इंतजाम करने की घोषणा की है।

रविवार, 19 जुलाई 2009

झरिया : आग पर आशियाना
विष्णु राजगढ़िया
झरिया शहर के नीचे कोयला है और कोयले में है आग । सौ साल पुरानी इस आग की तपन और गैस की गंध के बीच झरियावासियों की कई पीढ़ियां गुजर चुकी हैं । एक समय कोयलांचल का सबसे समृद्ध यह शहर लगातार अपनी चमक खोता जा रहा है । आज नहीं तो कल उजड़ना ही है, ऐसी मन:स्थिति में दशकों से लोग जी रहे हैं । लेकिन रोजी-रोटी उन्हें हटने नहीं देती । अन्य शहरों में पुराने मकानों की जगह नई-नई इमारतें धड़ल्ले से बन रही है, वहीं झरिया में नया निर्माण बेहद कम हो रहा है । पुराने मकानों की बेहद जरूरी मरम्मत करके काम चलाया जाता है । हर दिन इस आशंका से गुजरता है कि कहीं कोई बड़ा हादसा नहीं हो जाये । घरों के नीचे से आग और गैस निकलने की घटनाएं सामान्य हैं । कई बार मुख्य सड़कों में गोफ बन जाते हैं और जमीन की आग और गैस निकलकर भयावह दृश्य उत्पन्न् करती है । झरिया शहर को उजाड़कर दूसरी जगह बसाने की कोशिश लंबे समय से चल रही है । इसके लिए राज्य सरकार ने झरिया पुनर्वास प्राधिकार भी बनाया है । पिछले साल झारखंड सरकार ने इसके लिए 6400 करोड़ का पुनर्वास पैकेज दिया था । बेनगढ़िया नामक जगह पर एक नई आवासीय कॉलोनी बनाई गई है । लेकिन झरियावासी इसमें जाने को तैयार नहीं । एक-एक कमरों के दबड़ेनुमा फ्लैट का आकार और इसकी निर्माण की गुणवत्ता झरियावासियों को रास नहीं आ रही। इससे बढ़कर यह कि झरिया में लोगों के पास आजीविका के विभिन्न् प्रकार के साधन हैं । सुदूर क्षेत्र में बनी बेनगढ़िया कॉलोनी में रोजगार का कोई साधन नहीं होगा । ऐसे में झरियावासी इस कॉलोनी में रह तो लेंगे लेकिन खायेंगे क्या?दूसरी ओर, केंद्र और राज्य सरकार किसी भी सूरत में झरियावासियों को स्थानांतरित करने की कोशिश में जुट गई है । झारखंड में राष्ट्रपति शासन है । झारखंड के राज्यपाल के सलाहकार टीपी सिन्हा ने जुलाई के पहले सप्ताह में झरिया जाकर पुनर्वास संबंधी योजना बनाई । इसके तहत सौ दिनों के अंदर झरिया के 4650 परिवारों को अन्यत्र बसाने का लक्ष्य रखा गया है । इनमें ग्वालापट्टी, राजपूत बस्ती, बोकापहाड़ी, मोदीपीट्ठा और लूजपीठ बस्तियां शामिल हैं । इन बस्तियों को डीजीएमएस ने सबसे ज्यादा असुरक्षित क्षेत्र बताया है । इन परिवारों को भूली कॉलोनी में बसाने की योजना है । हालांकि इसे लेकर भी विवाद खड़ा हो गया है । भूली एक विशाल श्रमिक कॉलोनी है । इसमें बीसीसीएल के कर्मियों के अलावा हजारों आवासों में अवैध रूप से गैर-बीसीसीएलकर्मी भी रहते हैं । सरकार की योजना के अनुसार इन आवासों में रहनेवाले अवैध लोगों को हटा कर झरियावासियों को बसाया जायेगा । यह करना बेहद मुश्किल होगा । इसके खिलाफ भूली में उग्र विरोध शुरू हो चुका है । झरिया पुनर्वास योजना के अनुसार 10 साल के अंदर लगभग एक लाख परिवारों को दूसरी जगह बसाना है । इसके लिए 10 हजार करोड़ स्र्पयों का प्रावधान रखा गया है । इस मास्टर प्लान को कोल इंडिया तथा कोयला मंत्रालय की स्वीकृति मिल चुकी है । आर्थिक मामलों पर केंद्र सरकार की कैबिनेट समिति की मुहर लगने के बाद इस पर काम शुरू होगा । इसे लागू करने का दायित्व झरिया पुनर्वास विकास प्राधिकार पर है । राज्य सरकार द्वारा बनाये गये इस प्राधिकार में बीसीसीएल के अधिकारी भी शामिल हैं । मास्टर प्लान के अनुसार, कोयले की आग बुझाने के प्रयास भी किये जायेंगे । बीसीसीएल पर अपने श्रमिकों के पुनर्वास तथा आग बुझाने संबंधी कार्यों का दायित्व है । गैर-बीसीसीएल कर्मियों के पुनर्वास का दायित्व राज्य सरकार पर है । बिहार विधान परिषद ने गौतम सागर राणा की अध्यक्षता में एक समिति बनाई थी । उस समिति ने झरिया को अन्यत्र बसाने की अनुशंसा की थी ।देश की सबसे पुरानी कोयला खदानों में झरिया कोयलांचल का नाम प्रमुख है । यहां 1894 ई में कोयला खनन शुरू हुआ जिसने 1925 तक व्यापक रूप ग्रहण कर लिया । पहले कोयला खदानें निजी मालिकों के हाथों में थीं । 1971 में इंदिरा गांधी ने देश की सभी कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण कर लिया । झरिया कोयलांचल कोल इंडिया के बीसीसीएल यानी भारत कोकिंग कोल लिमिटेड के अंतर्गत आता है। यह धनबाद जिले के लगभग 280 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है । यहां का कोयला काफी उन्न्त श्रेणी का और कीमती माना जाता है । झरिया का बिटुमीनियस कोयला काफी गुणवत्तापूर्ण है, जो कोक और ब्लास्ट फर्नेस के लिए उपयोगी है । यहां 23 भूमिगत तथा नौ खुली खदानों के जरिये कोयला खनन का काम चल रहा है । अब भी झरिया कोयलांचल में 60 हजार करोड़ स्र्पयों का कोयला भंडार होने का अनुमान है । झरिया के कोयले में लगी आग का पता सबसे पहले 1916 में चला था । उस वक्त निजी मालिकों के पास इसे बुझाने की कोई न तो तकनीक थी और न ही उनके लिए प्राथमिकता थी । 1971 में राष्ट्रीयकरण के दौर में आधुनिक तकनीक से कोयला खनन शुरू हुआ । उस दौरान किये गये सर्वेक्षण से लगभग 17 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र की 70 जगहों पर आग लगी होने का पता चला । उनमें से 10 जगहों पर ब्लैंकेटिंग, नाइट्रोजन फ्लाशिंग और स्टोविंग के जरिये आग पर काबू पाने की कोशिश की गई थी । लेकिन आमतौर पर कोयला अधिकारियों ने आग को फैलने से रोकने तथा बुझाने संबंधी कार्यों में गंभीरता नहीं दिखायी । भूमिगत खदानों में कोयला निकाले जाने के बाद बालू भरना आवश्यक है ताकि आग और गैस का फैलाव न हो । लेकिन बालू भराई के दाम पर महज खानापूरी करके बड़ा घोटाला करने के आरोप लगते रहे । धनबाद में चर्चित कोयला माफिया के उदय में इस बालू घोटाले की भी भूमिका रही । आज भी लगभग 37 मिलियन टन कोकिंग कोल आग की चपेट में होने का अनुमान है ।इस आग में कार्बन मनोक्साइड, कार्बन डाई ऑक्साइड, सल्फर डाई आक्साइड और मिथेन गैस होती है । इस आग और गैस के कारण वायू प्रदूषण होता है और स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याएं उत्पन्न् होती हैं । यही कारण है कि यहां के निवासियों में टीबी, ब्राउनकाइल अस्थमा, निमोकोनिसिस, श्वांस संबंधी कई जटिलताएं, चर्म रोग जैसी बीमारियां आम हैं ।अप्रैल 2008 में सीपीएम सांसद वृंदा करात ने राज्यसभा में यह मामला उठाया था। केंद्रीय कोयलामंत्री संतोष बागरोड़िया ने लिखित जवाब में बताया कि 2006 के सर्वेक्षण के अनुसार झरिया में अग्नि-प्रभावित परिवारों की संख्या 98314 है । इनमें 44155 घर बीसीसीएल कर्मियों के हैं । गैर-बीसीसीएल कर्मी परिवारों की संख्या 54159 है । झरिया और राजगंज के पुनर्वास के लिए 2659 करोड़ की योजना बनायी गयी है । श्रीमती करात के पूरक प्रश्न के जवाब में कोयला मंत्री ने यह भी बताया था कि फिलहाल झरिया शहर आग से सुरक्षित है तथा मुख्य शहर को हटाने का कोई प्रस्ताव भी नहीं है ।झरिया बचाओ समिति ने पुनर्वास के नाम पर झरिया को उजाड़ने का आरोप लगाया है । अशोक अग्रवाल के अनुसार झरिया को उजाड़ने के बजाए नीचे लगी आग को बुझाने की ईमानदार कोशिश की जाये, तो समस्या सुलझ सकती है । श्री अग्रवाल के अनुसार केंद्रीय कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल और राज्यपाल के सलाहकार टीपी सिन्हा ने झरिया दौरे के क्रम में झरिया के नागरिकों से बातचीत की जरूरत नहीं समझी । यह केंद्र और राज्य सरकार के संवेदनहीन रवैये का परिचायक है । श्री अग्रवाल के अनुसार झरिया बचाओ समिति ने पिछले दिनों धनबाद के उपायुक्त को आवेदन दिया था । इसमें बताया गया था कि इंदिरा चौक से भूमिगत आग झरिया शहर की ओर बढ़ रही है । इसे तत्काल नियंत्रित करने का प्रयास बीसीसीएल को करना चाहिए । श्री अग्रवाल कहते हैं कि भूमिगत खनन के दौरान झरिया को उजाड़ने की कोई जरूरत नहीं थी । बाद में खुली खदानों के जरिये कम खर्च में तत्काल उत्पादन के चक्कर में झरिया को उजाड़ने की साजिश रची गयी । भूमिगत खनन के लिए जमीन की जरूरत नहीं होती जबकि खुली खदान के लिए शहरों और गांवों को उजाड़ा जाता है । झरिया को उजाड़ने के लिए बीसीसीएल ने कोयले की आग पर काबू पाने की कोशिश नहीं की ।समिति की ओर से मदन खन्न्ा कहते हैं कि पुनर्वास के संबंध में राज्य सरकार, केंद्र सरकार और कोल इंडिया तीनों के प्रावधान अलग-अलग हैं। झरियावासियों को कोल इंडिया के प्रावधानों के अनुरूप पुनर्वास करने के बजाय इसके कई लाभों से वंचित करने की कोशिश हो रही है।कोल माइंस रिसर्च इंस्टीच्यूट के तत्कालीन निदेशक डॉ टीएन सिंह ने झरिया की आग बुझाने के लिए लक्ष्मण रेखा परियोजना बनाई थी । इसे काफी कम लागत वाली प्रभावी योजना माना गया था । लेकिन इस परियोजना को स्वीकृति नहीं मिल सकी और आग बढ़ती चली गयी ।झरिया मामले का राजनीतिकरण भी खूब होता रहा है । हर चुनाव झरिया बचाने के नाम पर ही लड़ा जाता है । 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी चंद्रशेखर दूबे ने झरिया बचाने का वादा करके विजय हासिल की थी । लेकिन केंद्र में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद झरिया को अन्यत्र बसाने की योजना पर ही काम चलता रहा । नतीजा यह है कि इस बार मतदाताओं ने भाजपा के पशुपतिनाथ सिंह को सांसद चुना है । श्री सिंह ने झरिया को बचाने का वादा किया था । केंद्रीय कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने पिछले दिनों झारखंड दौरे के क्रम में झरिया को खाली कराने का निर्देश देकर मानो आग में घी डाल दिया हो । झारखंड सरकार की ओर से राज्यपाल के सलाहकार टीपी सिन्हा ने भी यही बात दोहरा दी । जबकि मामले की संवेदनशीलता को भांपते हुए कांग्रेस के पूर्व सांसद चंद्रशेखर दूबे ने भरोसा दिलाया कि झरिया नहीं उजड़ेगा । उन्होंने यह भी दावा किया कि केंद्रीय कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल से उनकी इस संबंध में बातचीत हो चुकी है । झरिया शहर का इस तरह उजड़ते जाना आधुनिक विकास की एक त्रासदी है । कोयला निकालने के साथ आग पर नियंत्रण के उचित उपाय किये गये होते और बालू भराई जैसे जरूर दायित्व को लूट का शिकार नहीं बनाया गया होता तो आज विकास के बदले विनाश का यह मंजर नहीं होता । अब भी पुनर्वास के नाम पर हो रही कोशिशें बेहद अपर्याप्त नजर आ रही हैं । यही कारण है कि नीचे की आग की तपन झरियावासियों के दिलों में धधकने लगी है ।

नेताओं पर कसा शिकंजा


विष्णु राजगढ़िया
लोकतंत्र का यह दिलचस्प रंग है । कल तक राज्य में कानून बनाने की हैसियत रखने वाले लोग आज खुद कानून के शिकंजे में हैं । कल तक कानून का पालन करने का जिन पर दायित्व था, आज वे कानून से बचकर फरार हैं । झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा तथा पांच निर्दलीय पूर्व मंत्रियों के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति मामले में हुए मुकदमों ने राजनीतिकों के होश गुम कर दिये हैं । दो पूर्व मंत्रियों एनोस एक्का और हरिनारायण राय की गिरफ्तारी के वारंट लेकर पुलिस उनके ठिकानों पर छापेमारी कर रही है । हैरानी की बात तो यह है कि दोनों पूर्व मंत्री दर्जन भर सरकारी सुरक्षा गार्डों के साथ फरार हैं ।
शीर्ष राजनेताओं का यह हश्र बिहार के पूर्व मुख्यमंत्रियों डॉ जगन्न्ाथ मिश्र और लालू प्रसाद पर हुए ऐसे ही मुकदमों के दौर की याद दिलाता है । हाल के वर्षों में केंद्रीय कोयला मंत्री पद पर रहते हुए झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन ने भी सुरक्षाकर्मियों के साथ फरार होने का रिकॉर्ड बनाया था । झारखंड विधानसभा के लिए वर्ष 2005 में हुए चुनाव में किसी दल को बहुमत नहीं मिला था । इससे लगभग एक दर्जन निर्दलीय या छोटे दलों के विधायकों की चांदी हो गयी । इनकी मर्जी के बगैर कोई सरकार नहीं बन सकती थी । लिहाजा हर सरकार में इनकी ही चली । चार साल में चार सरकारें बनीं और हर सरकार में निर्दलीय हावी रहे । यहां तक कि इसी दौर में एक निर्दलीय मधु कोड़ा ने कांग्रेस, झामुमो और राजद के समर्थन से लगभग दो साल तक सरकार चलाने का विश्व रिकॉर्ड बनाया । महत्वपूर्ण और मलाईदार विभागों के मंत्री पद पर बैठे निर्दलीयों की मनमानी और खुलेआम भ्रष्टाचार के किस्से सामने आते रहे । इन पर अंकुश लगाने वाला कोई नहीं था ।
इन निर्दलीय पूर्व मंत्रियों ने दलबदल कानून की भी धज्जियां उड़ायी है । लेकिन सवा चार साल में झारखंड विधानसभा के स्पीकर दलबदल संबंधी एक भी मुकदमे का फैसला नहीं कर सके । कारण यह कि हर सरकार के लिए निर्दलीय ही जीवनशक्ति रहे हैं ।पाप का घड़ा फूटता ही है । इसका श्रेय न्यायपालिका को मिला । कुमार विनोद नामक एक सामाजिक कार्यकर्ता की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान निगरानी की विशेष अदालत ने दो पूर्व मंत्रियों एनोस एक्का व हरिनारायण राय की गिरफ्तारी के वारंट निर्गत किये । इसके एक सप्ताह के भीतर पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा तथा तीन पूर्व मंत्रियों कमलेश सिंह, बंधु तिर्की और भानु प्रताप शाही के खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज कर ली गयी । राजीव शर्मा नामक एक नागरिक की याचिका पर निगरानी अदालत ने यह आदेश दिया । राज्य के कई अन्य मंत्रियों के खिलाफ गंभीर आरोपों से संबंधित याचिकाएं भी अदालतों में लंबित हैंं । देर-सबेर ऐसे अन्य राजनेताओं को भी कानून की गिरफ्त में आना होगा । पूर्व मुख्यमंत्री एवं सिंहभूम क्षेत्र के निर्दलीय सांसद मधु कोड़ा पर आय से अधिक संपत्ति रखने के गंभीर आरोप हैं । उन पर 16 कपंनियां बनाने, करोड़ों की जमीन खरीदने का आरोप है । श्री कोड़ा के मुख्यमंत्रित्वकाल में ही ऐसे आरोपों पर कोहराम मचा था । श्री कोड़ा के दो व्यावसायिक पार्टनर विनोद सिन्हा और संजय चौधरी का नाम खूब उछला था । इन दोनों के साथ मिलकर श्री कोड़ा द्वारा अपने पद का दुरूपयोग करके व्यावसायिक हित पूरे करने और अकूत संपत्ति इकट्ठा करने के गंभीर आरोप लगे । श्री कोड़ा मुख्यमंत्री होने के साथ ही खान एवं भूतत्व विभाग के भी प्रभारी थे । लौह-अयस्क तथा अन्य खनिजों की खदान आवंटित करने की प्रक्रिया पर सवाल उठते रहे । कुछ स्टील कंपनियों को खरीद लेने या लौह अयस्क देने के बदले कंपनी में पार्टनर बना लेने जैसे प्रस्ताव भी चर्चा में रहे । इन आरोपों की जांच कभी नहीं हुई । अब निगरानी विभाग द्वारा मामला दर्ज किये जाने के बाद कई कारनामों से पर्दा हटने की संभावना जतायी जा रही है । पूर्व जल संसाधन मंत्री कमलेश कुमार सिंह पर रांची में कई जगहों पर अपने रिश्तेदारों के नाम पर करोड़ों के प्लॉट खरीदने तथा दोनों पुत्रियों की शादी में करोड़ों रुपये खर्च करने का आरोप है । पूर्व स्वास्थ्य मंत्री भानु प्रताप शाही पर नामकुम के खिजरी ब्लॉक में 20 एकड़ जमीन खरीदने का आरोप है । पूर्व शिक्षा मंत्री बंधु तिर्की पर दिल्ली में नागार्जुना कंस्ट्रक्शन द्वारा निर्मित आठ करोड़ का फ्लैट और बनहौरा में 100 एकड़ जमीन सहित राजधानी में करोड़ों की बेनामी संपत्ति खड़ी करने का आरोप है ।निगरानी विभाग कई महीनों से दो पूर्व मंत्रियों एनोस एक्का और हरिनारायण राय के पास आय से अधिक संपत्ति की छानबीन में जुटा था । विभाग को मिले प्रमाणों के अनुसार हरिनारायण राय के पास आय से 1.16 करोड़ रुपये तथा एनोस एक्का के पास आय से 3.73 करोड़ अधिक संपत्ति है । दोनों पूर्व मंत्रियों के बैंक एकाउंट में करोड़ोें रुपये के लेन-देन की प्रविष्टियां दर्ज हैं । दोनों मंत्रियों ने धन कमाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी । जिस विभाग में मंत्री रहे, उसी विभाग में काम करने के लिए अपनी पत्नियांे के नाम से ठेका व कंस्ट्रक्शन कपंनियां बना लीं । निगरानी के शिकंजे में आने के बाद एनोस एक्का ने अपनी पत्नी की आय 1.32 करोड़ रुपये बताई । इसके लिए उन्होंने आयकर विभाग को 50 लाख रुपये टैक्स का भी भुगतान किया । जब निगरानी विभाग ने इतनी भारी कमाई और इतना टैक्स भुगतान के संबंध में विवरण मांगा, तो पूर्व मंत्री संतोषप्रद जवाब नहीं दे सके । दोनों पूर्व मंत्रियों द्वारा कई भूखंड खरीदने और आलीशान मकान बनाने के भी सबूत मिले । इनकी कीमत और लागत वास्तविक राशि की अपेक्षा कोड़ियों में बताई गई । लाखों रुपये का लेन-देन नकद में किया गया । पूर्व मंत्री हरिनारायण राय द्वारा रांची के हरमू रोड में बनाये जा रहे आलीशान मकान की भी लागत बेहद कम बताई गई । यहां तक कि इस मकान के निर्माण में दूसरों का पैसा लगा होने की बात कह कर पूर्व मंत्री ने बचाव का प्रयास किया ।पूर्व मंत्री बंधु तिर्की ने याचिकाकर्ता कुमार विनोद के खिलाफ एससी-एसटी थाने में प्राथमिकी दर्ज कराकर मामले को नया मोड़ देने की कोशिश की । उनका आरोप है कि कुमार विनोद ने उन्हें आदिवासी क्षेत्र में काम करना छोड़ देने की धमकी दी है । इस आरोप को कुमार विनोद ने आधारहीन बताते हुए कहा है कि पूर्व मंत्री एससी-एसटी एक्ट का दुरूपयोग कर रहे हैं । झारखंड के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री भानु प्रताप शाही के खिलाफ निगरानी की विशेष अदालत में एक और मामला दर्ज हुआ है । बोकारो निवासी डॉ राजकुमार शर्मा के शिकायतवाद में मंत्री तथा कई अधिकारियों पर आयुष चिकित्सकों की नियुक्ति में 10 करोड़ की संपत्ति अर्जित करने का आरोप लगाया गया है । डॉ श्ार्मा के अनुसार निगरानी विभाग को इस घपले के बारे में पहले से ही पर्याप्त जानकारी होने के बावजूद अब तक कार्रवाई नहीं की गयी है । वर्ष 2000 में अलग राज्य बनने के बाद से ही झारखंड मंे शीर्ष पदों पर बैठे राजनेताओं तथा अधिकारियों द्वारा खुलेआम भ्रष्टाचार के किस्से सामने आते रहे । सरकारी खर्चों का लेखा-जोखा देखनेवाले महालेखाकार ने भी अंकेक्षण के दौरान गंभीर सवाल उठाये । ज्यादातर सवाल अनसुने रह गये । विधानसभा में भी इन अनियमितताओं पर चिंता सामने आयी । लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकला । निगरानी विभाग के पास अकाट्य प्रमाण होने के बावजूद राजनीतिक कारणों से फाइलें दबी रहीं । अब नागरिकों की याचिका पर अदालतों के हस्तक्षेप ने कुछ सत्ताधारियों को कानून के शिकंजे में ले लिया है । इससे नागरिक समाज को एक नयी उम्मीद जगी है । हालांकि यह सवाल भी उठ रहे हैं कि हर मामले में अदालत के हस्तक्षेप की जरूरत क्यों पड़ रही है? हमारी कार्यपालिका और विधायिका ऐसे मामलों पर स्वयं गतिशील नहीं रहे और हर मामले में अदालत के हस्तक्षेप की जरूरत पड़े तो लोकतांत्रिक प्रणाली बेमानी हो जायेगी। झारखंड के लिए ऐसे सवाल फिलहाल खास महत्व नहीं रखते क्योंकि यहां फिलहाल खेत को बाड़ से ही खतरा है ।

रविवार, 12 जुलाई 2009

नेताओं पर कसता फंदा
संडे नई दुनिया, 12 जुलाई 2009

गुरुवार, 9 जुलाई 2009

जागो ग्राहक, सोयेगी सरकार

विष्णु राजगढ़िया
डीडी वन पर आजकल एक विज्ञापन आ रहा है। इसमें एक युवक इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर लेता है। इसके बाद उसे पता चलता है कि उसकी डिग्री फरजी है क्योंकि उस संस्थान को सरकारी मान्यता नहीं मिली है। विज्ञापन का संदेश है- जागो ग्राहक जागो। इसमें यह भी सलाह दी गयी है कि ऐसे किसी संस्थान में नामांकन कराने से पहले उसकी मान्यता की जांच अवश्य कर लें।
सलाह अच्छी है। जागो ग्राहक जागो ताकि ठाठ से सोती रहे सरकार। ग्राहकों का जागृत एवं सचेत रहना जरूरी है लेकिन उनकी जानकारी और चेतना की अपनी सीमा है। आम ग्राहक के लिए किसी चीज की तहकीकात की भी अपनी सीमा है। जबकि सरकारी एजेंसियांे के पास हर मामले में विशेषज्ञता के साथ ही जांच-पड़ताल की भी असीमित क्षमता है। जिन चीजों में ग्राहक को ठगा जाता है, उन चीजों पर सरकारी एजेंसियां खुद नजर रखें तो काफी बड़ा फर्क आ सकता है।
मामला इंजीनियरिंग की फरजी डिग्री से जुड़ा है। आजकल विभिन्न् तकनीकी शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में नामाकंन के ऐसे विज्ञापनों एवं दावों की भरमार मिलती है जिनमें इन्हें मान्यताप्राप्त बताया जाता है। आम विद्यार्थियों एवं आम अभिभावकों के लिए यह बेहद मुश्किल है कि वे ऐसे दावों की तहकीकात करके किसी नतीजे तक पहुंच सकें। अगर सरकारी एजेंसियां ऐसे विज्ञापनों एवं दावों पर नजर रखें और गलत दावे करने वालों की धरपकड़ शुरू कर दें तो इस समस्या का नामोनिशान मिट सकता है।
गत 21 जून 2009 को रांची के एक अखबार में कैम्ब्रिज औद्योगिक प्रशिक्षण केंद्र का एक विज्ञापन आया। इसमें छह प्रकार के तकनीकी पाठ्यक्रमों में नामाकंन के लिए आवेदन मांगे गये थे। विज्ञापन में इसे श्रम नियोजन एवं प्रशिक्षण विभाग, झारखंड सरकार द्वारा अनुमोदित बताया गया। इसके तीन दिन बाद झारखंड सरकार के श्रम नियोजन एवं प्रशिक्षण विभाग का विज्ञापन आया कि उक्त केंद्र को कोई मान्यता नहीं दी गयी है। इसमें यह भी कहा गया कि अगर कोई विद्यार्थी इसमें नामांकन करायेगा तो इसकी जिम्मेवारी झारखंड सरकार की नहीं होगी।
झारखंड सरकार ने एक विज्ञापन देकर अपनी जिम्मेवारी से पीछा छुड़ा लिया। संभव है कि इसके बाद भी उक्त संस्थान द्वारा नामांकन करके विद्यार्थियों को फरजी डिग्री दी जाये। यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि सभी विद्यार्थियों और अभिभावकों ने झारखंड सरकार के इस विज्ञापन को देख लिया हो। सरकार का दायित्व तो ऐसे संस्थानों पर नकेल कसना होनी चाहिए जो सरकार की मान्यता होने का खुलेआम झूठा दावा करके विज्ञापन दे रहे हैं और विद्यार्थियों को बेवकूफ बना रहे हैं। लेकिन फिलहाल तो सरकार ग्राहकों को जगाने में लगी है ताकि खुद सोयी रह सके।

मंगलवार, 7 जुलाई 2009

इंटरनेट का रंग लाल
विष्णु राजगढ़िया
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केंद्र सरकार ने देश के प्रमुख नक्सली संगठन भाकपा (माओवादी) पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसका नक्सलियों की गतिविधियों पर कोई असर नहीं आया है क्योंकि यह पहले से ही एक भूमिगत संगठन है। दिलचस्प यह कि हाल के वर्षों में माओवादियों ने अपने विचारों एवं सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए आधुनिक संचार माध्यमों खासकर इंटरनेट का भरपूर उपयोग किया है। तथ्य बताते हैं कि अन्य राजनीतिक संगठनों की तुलना में नक्सलियों के लिए इंटरनेट काफी महत्वपूर्ण संचार माध्यम साबित हुआ है। अब बेबसाइट्स और बड़ी संख्या में ब्लॉग्स के जरिये नक्सली अपनी खबरों को तत्काल दुनिया भर में पहुंचा रहे हैं।
पहले नक्सली संगठनों के लिए सूचनाओं और विचारों के प्रसार के लिए मुखपत्र और न्यूज बुलेटिन पर निर्भर रहना पड़ता था। यह काफी खर्चीला और श्रमसाध्य होने के साथ ही काफी समय लगने वाला काम था। ऐसे मुखपत्रों के वितरण में काफी जटिलता होती थी। इन्हें रखना भी काफी खतरनाक माना जाता था। अगर किसी व्यक्ति के पास ऐसी कोई प्रकाशन सामग्री पकड़ी जाती थी तो उसे नक्सली कार्यकर्ता या समर्थक मान लिया जाता था। अनगिनत नेताओं की गिरफ्तारी सिर्फ इस वजह से हुई कि सफर के दौरान सामान्य सुरक्षा जांच में उनके बैग से नक्सली साहित्य मिला। फिर, नक्सलियों की जीवनशैली मुख्यत: भूमिगत और जल्दी-जल्दी ठिकाना बदलने की है। लिहाजा, मुखपत्रों के नये अंक उन तक पहुंचाना भी एक जटिल काम होता है। ऐसे प्रकाशनों के दौरान प्रिंटिंग प्रेस में पकड़े जाने का भय भी नक्सलियों को सताता है। अब नक्सली नेता दूरदराज के गांवों, पहाड़ों में या फिर किसी शहर में, कहीं भी एक कंप्यूटर पर अपनी सामग्री तैयार कर सकते हैं और इंटरनेट के जरिये दुनिया भर के लिए उपलब्ध करा सकते हैं।
इंटरनेट ने इन सारी समस्याओं का एक झटके में समाधान कर दिया है। अब मुखपत्र या न्यूज बुलेटिन निकालने के बजाय इंटरनेट पर किसी बलॉग के माध्यम से मिनटों में पूरी दुनिया में अपनी खबरों और विचारों को पहुंचाया जा रहा है। इंटरनेट पर नजर रखनेवाली एजेंसियां ऐसे ब्लॉग्स की तलाश कर इन्हें निष्क्रिय करती रहती हैं। इससे माओवादियों पर खास फर्क नहीं पड़ता। उनके पास देश और विदेश के माओवादी समर्थक सैकड़ों ब्लॉग्स और वेबसाइट्स हैं। इनके जरिये अपने नये ब्लॉग ठिकाने की सूचना अपने समथकों एवं कार्यकर्त्ताओं तक पहुंचा दी जाती है।
पश्चिम बंगाल के लालगढ़ में नक्सल विरोधी कार्रवाई के दौरान इंटरनेट का लाल रंग ताजा उदाहरण है। इस दौरान माओवादियों ने विभिन्न् मीडिया में आयी खबरों, अपने विचारों एवं सूचनाओं के प्रसार में इंटरनेट का जबरदस्त उपयोग किया। 'पिपुल्स ट्रूथ नामक ब्लॉग ने पांच जून 2009 को अपने बुलेटिन संख्या पांच में लालगढ़ पर लंबी रिपोर्ट प्रकाशित की। 'मास अपराइजिंग इन लालगढ़ शीर्षक यह रिपोर्ट बताती है कि किस तरह लालगढ़ में जनउभार की स्थिति आ गयी है। इस ब्लॉग के संपादक पी गोविंदन कुट्टी हैं। ब्लॉग का ध्येयवाक्य है- 'जहां अन्याय हो, वहां विद्रोह ही न्याय है। मानवता के अपमान का एकमात्र जवाब है- क्रांति।
'पिपुल्स मार्च नामक ब्लॉग पर 23 जून को माओवादियों का यह बयान जारी किया गया है कि केंद्र सरकार द्वारा लगाये गये प्रतिबंध का उन पर कोई असर नहीं होगा। इसी ब्लॉग पर इसी दिन एक प्रमुख अंग्रेजी दैनिक की एक लंबी रिपोर्ट प्रसारित की गयी जिसमें माओवादियों ने लालगढ़ की आग को पूरे देश में फैला देने की घोषणा की। जेएनयू के विद्यार्थियों की एक टीम द्वारा लालगढ़ दौरे पर आधारित रिपोर्ट भी इस ब्लॉग पर पढ़ने को मिली। लालगढ़ प्रकरण पर मीडिया में आयी प्रमुख खबरों, तसवीरों एवं आडियो-विजुअल क्लिप्स को इस वेबसाइट पर संकलित किया गया है।
एक अन्य ब्लॉग 'रिवोल्यूशन इन साउथ एशिया में 13 जून 2009 को लालगढ़ प्रकरण से जुड़ी विभिन्न् खबरों एवं इसकी पृष्ठभूमि की जानकारी देने वाली सामग्रियों का लिंक दिया गया है। किसी भी लिंक पर माउस क्लिक करने से इंटरनेट पर इससे जुड़े पेज खुल जायेंगे। इसी ब्लॉग पर 16 जून को बीबीसी द्वारा प्रसारित एक खबर के आडियो-वीडियो क्लिप का लिंक दिया गया है। यह खबर लालगढ़ में माओवादियों द्वारा सीपीएम कार्यालय पर कब्जा और घरों में आग लगाये जाने संबंधी है।
इसी ब्लॉग पर सीपीएसए नामक पाठक ने सन्हाती डॉट कॉम पर लालगढ़ के संदर्भ में सरोज गिरि के एक लंबे लेख के प्रकाशन की सूचना दी है। इसमें उक्त पाठक की सलाह है कि माओवादियों तथा लालगढ़ में दिलचस्पी रखने वालों को उक्त वेबसाइट लगातार देखनी चाहिए। अन्य ब्लॉग्स की तरह इस ब्लॉग पर भी देश-विदेश के प्रमुख माओवादी लिंक दिये गये हैं। जाहिर है कि अगर कोई व्यक्ति ऐसे किसी एक वेबसाइट या ब्लॉग पर पहुंच जाये तो अन्य तमाम रास्ते खुलते चले जायेंगे। ऐसे में किसी साइट पर सरकार ने रोक भी लगा दी तो कोई परेशानी नहीं।
सन्हाती डॉट कॉम को खोलते ही लालगढ़ प्रकरण पर 60 से भी अधिक खबरों एवं लेखों का संकलन नजर आता है। इससे संबंधित दर्जनों तसवीरें भी दी गयी हैं। इस वेबसाइट का उद्देश्य खास तौर पर बंगाल के संदर्भ में भारत और विश्व के राजनीतिक अर्थशास्त्र पर समाचारों, विश्लेषण और बहस का मंच मुहैया कराना बताया गया है। इस वेबसाइट पर देश-विदेश के महत्वपूर्ण माओवादी दस्तावेजों का संकलन है। नक्सलबाड़ी आंदोलन की शुरूआत के दौर में 1967-68 में सीपीआइ-एमएल का मुखपत्र 'लिबरेशन प्रकाशित होता था। इसे सिर्फ हार्डकोर कार्यकर्त्ताओं को उपलब्ध कराया जाता था। लेकिन इस वेबसाइट ने इस मुखपत्र के प्रारंभिक 13 अंकों को पीडीएफ फाइल के रूप में अपने अभिलेखागार में डाल दिया है। इस तरह जहां पहले नक्सली विचारों की सामग्री सिर्फ हार्डकोर कार्यकर्त्ताओं को बमुश्किल उपलब्ध हो पाती थी, वहीं अब कोई भी व्यक्ति किसी भी वक्त इंटरनेट पर पुराने व नये दस्तावेज हासिल कर सकता है।
एक वेबसाइट है- 'बैन्ड-थाउट डॉट नेट। इसका मकसद दुनिया भर के उन प्रगतिशील विचारों को सामने लाना है जिन्हें प्रतिबंधित कर दिया गया हो। इसमें भाकपा (माओवादी) के अलावा नेपाल से जुड़े दस्तावेजों, बयानों को प्रस्तुत किया जाता है। इसमें 'पिपुल्स मार्च पत्रिका तथा 'पिपुल्स ट्रूथ बुलेटिन का भी लिंक दिया गया है।
'पिपुल्स मार्च वेबसाइट पर वर्ष 2007 में केंद्र सरकार ने रोक लगा दी थी। इसके संपादक पी गोविंदन कुट्टी को दिसंबर 2007 में गिरफ्तार कर लिया गया था। उन्हें फरवरी 2008 में रिहा किया गया। इसके जवाब में माओवादियों का एक नया ब्लॉग बना लिया-'आजाद हिंद। इसमें बताया गया है कि सरकार द्वारा 'पिपुल्स मार्च वेबसाइट को रोक दिये जाने के कारण यह ब्लॉग शुरू किया गया है। ब्लॉग कहता है कि सरकार यह समझने में पूरी तरह विफल रही है कि नक्सलवाद क्यों बढ़ रहा है। इसे महज कुछ बेरोजगारों की करतूत समझा जा रहा है जबकि इस लोकतंत्र से हताश होकर बड़ी संख्या में शिक्षित लोग नक्सल आंदोलन से जुड़ रहे हैं। इसी टिप्पणी में यह भी कहा गया है कि एक वेबसाइट को प्रतिबंधित करने के जवाब में बड़ी संख्या में नक्सल समर्थक ब्लॉग सामने आ गये हैं तथा इनके पाठकों की तादाद बढ़ती जा रही है।
'नक्सल रिवोल्यूशन नामक एक चर्चित ब्लॉग को बनाने का उद्देश्य यह बताया गया है कि परंपरागत मीडिया द्वारा प्रगतिशील विचारों एवं खबरों को सामने नहीं लाया जाता तथा क्रांतिकारी माओवादियों को उग्रवादी और ठग के बतौर पेश किया जाता है। इस ब्लॉग में माओवादियों के बारे में कुछ प्रसिद्ध हस्तियों के चौंकाने वाले बयान संकलित किये गये हैं। इस ब्लॉग में पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय वीपी सिंह का कथन है- 'अगर विकास का यही मॉडल है तो मैं भी नक्सली बनना चाहता हूं हालांकि अब इस उम्र में ऐसा नहीं कर सकता। इसमें पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस कहते हैं- 'जल्द ही दिल्ली में नक्सली झंडे लहरायेंगे। इसी तरह, योग गुरू पंडित रविशंकर कहते हैं- 'नक्सली अच्छे इंसान हैं जिनमें देश के लिए काफी त्याग और संकल्प की भावना है। वे ऐसे काम कर सकते हैं जो दूसरे नहीं कर सकते।
दिलचस्प यह कि कुछ ब्लॉग ऐसे भी हैं जो माओवादियों के खिलाफ खबरों एवं विचारों का संकलन करते हैं। इनमें प्रमुख है- 'नक्सल टेरर वॉच। इसमें नक्सली हिंसा से जुड़ी खबरों, नक्सलियों के खिलाफ पुलिस व अर्द्धसैनिक बलों के अभियान तथा नक्सल विरोधी बयान प्रस्तुत किये जाते हैं।
अब एक एडिटर को मैनेजर की तरह भी काम करना होगा
प्रभात खबर के प्रधान संपादक हरिवंश से विष्णु राजगढ़िया की बातचीत
मीडिया विमर्श ( मार्च - मई, 2007)

आधी से ज्यादा राशि नहीं हो पाएगी इस्तेमाल
रांची से विष्णु राजगढ़िया

वेब दुनिया

सूचना अधिकार से समृद्ध हुई पत्रकारिता
विष्णु राजगढ़िया
मीडिया विमर्श (दिस.06 - फर.07)
एक संपादक के बतौर रघुवीर सहाय
विष्णु राजगढ़िया
मीडिया विमर्श ( मार्च - मई, 2007)

बजट पर प्रतिक्रिया
अधिकारियों पर कार्रवाई का आदेश
नई दुनिया 07.07.09

रविवार, 5 जुलाई 2009

इंटरनेट का रंग लाल
नई दुनिया पत्रिका पांच जुलाई 2009

गुरुवार, 2 जुलाई 2009

चारा घोटाला: 25 व्यक्तियों को सजा
नई दुनिया 2 जुलाई 2009 पेज सात
मधु कोड़ा पर प्राथमिकी का आदेश
नई दुनिया 2 जुलाई 2009 पेज सात

सोमवार, 29 जून 2009

शिबू सोरेन ने मुंह खोला तो कांग्रेस के होश उड़े
नई दुनिया, 30 जून 2009, पेज 10

रविवार, 28 जून 2009

पलामू के किसान मांग रहे हैं इच्छामृत्यु
जमीन से निकली आग

नई दुनिया 29 जून 2009 पेज 10

मंगलवार, 23 जून 2009

झारखंड में सरकार को लेकर असमंजस बरकरार
नई दुनिया, 24.06.09 पेज 10

रविवार, 21 जून 2009

सरकार गठन के लिए दिल्ली की दौड़ शुरू
झारखंड राजद में बढ़ा विवाद

नई दुनिया 22 जून पेज 11

शनिवार, 20 जून 2009

स्कूलों की मनमानी पर लगाम
नई दुनिया पत्रिका, 21 जून 2009 पेज 24.25

बुधवार, 3 जून 2009

झारखंड की इंटर परीक्षा में रसोइया टोपर

विष्णु राजगढ़िया
रांची - झारखंड इंटरमीडिएट कौंसिल का इस वर्ष का परीक्षाफल चौंकाने वाला है। इंटरमीडिएट आटर््स में बेहतर प्रदर्शन करने वाले विद्यार्थियों में बेहद निर्धन पृष्ठभूमि वालों की बड़ी संख्या है। राज्य में आइए का टॉपर बनना संजीत महतो एक रसोइये का काम करते हुए अपनी पढ़ाई करता रहा। वह पुरलिया जिले के मुरगुमा का रहने वाला है। वह एक अच्छा एथलीट भी है। वह एक किसान परिवार से आता है और परिवार काफी तंगहाली से गुजारा करता है। वह रांची के चुटिया स्थित ग्रेट इंडिया लॉज के मेस में रहने वाले विद्यार्थियों के लिए खाना बनाकर अपना गुजारा चलाता है। उसे कुल 379 अंक मिले हैं। इतने ही अंक लाकर धनबाद जिले के मैथन की फौजिया रहमान भी संयुक्त टॉपर बनी है। सेकेंड टॉपर नरगिस नाज के पिता गांव में ही एक छोटी सी खाद की दुकान चलाते हैं। नरगिस रांची जिले के चान्हो स्थित वीर बुधु भगत इंटर कॉलेज की छात्रा है।थर्ड टॉपर नीलम केरकेट्टा की मां ने लोकल ट्रेन में बैर-जामुन बेचकर बेटी को पढ़ाया और आज मां-बेटी खुश है कि शिक्षा के जरिये भविष्य संवर जायेगा। नीलम ने लापुंग थाना क्षेत्र के एक सुदूर गांव से प्रतिदिन साइकिल से दस किलोमीटर दूर लुथरेन इंटर कॉलेज आकर पढ़ाई की। राज्य की चौथी टॉपर सलमा खातून के पिता जुम्मन खां एक्साइज विभाग में ड्राइवर के बतौर कार्यरत हैं। सलमा रांची के उर्सलाइन इंटर कॉलेज की छात्रा है।राज्य की पांचवीं टॉपर रंजु कुमारी के पिता संतोष उरांव का 2003 में निधन हो गया था। इसके बाद रंजु की मां फागुनी देवी ने हड़िया बेचकर उसे पढ़ाया। रामगढ़ कॉलेज की रंजू कुमारी ने शादी के बाद भी अपनी पढ़ाई जारी रखकर यह मुकाम हासिल किया है। कोल्हान क्षेत्र में सेकेंड टॉपर का स्थान हासिल करने वाला शत्रुघन महतो हाट-बाजार में जूते-चप्पल बेचकर गुजारा चलाता है।

नई दुनिया, 04.06.2009 पेज 11

राज्यसभा सीटों के लिए जोड़तोड़
नई दुनिया, 04.06.2009 पेज 11
टोपी उतारने पर कड़ी सजा
नई दुनिया पत्रिका 14 जून 2009

http://epaper.naidunia.com/Details.aspx?id=66037&boxid=107939680

मंगलवार, 2 जून 2009

नेशनल गेम का अधूरा सपना
विष्णु राजगढ़िया
नई दुनिया पत्रिका, 31 मई 2009 पेज 32 पेज 33
झारखंड ने देश को महेंद्र सिंह धौनी जैसा क्रिकेट कप्तान दिया है। हॉकी और तीरंदाजी में भी इस राज्य के खिलाड़ियों ने देश का नाम रोशन किया है। वर्ष 2003 में जब झारखंड को 34 वें नेशनल गेम का दायित्व सौंपा गया तो खिलाड़ियों व खेलप्रेमियों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी थी। उस वक्त 2007 में इसके आयोजन का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन पांच बार तिथि टलने से पूरे उत्साह पर पानी फिर गया है।
नेशनल गेम हर दो साल पर किसी एक राज्य में कराने का प्रावधान है। नेशनल गेम का उद्देश्य देश में खेल प्रतिभाओं को उभारना, सभी राज्यों में खेल संस्कृति और अधिसंरचना का विकास करना और अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में देश का नेतृत्व करने योग्य खिलाड़ियों को सामने लाना है। लेकिन तथ्य बताते हैं कि हाल के वर्षों में भारतीय ओलंपिक संघ इस दिशा में नाकाम रहा है। इसका खामियाजा देश की खेल प्रतिभाओं को भुगतना पड़ रहा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर की स्पर्धाओं में भारत लगातार पिछड़ रहा है। हर असफलता के बाद घड़ियाली आंसू बहाये जाते हैं लेकिन नेशनल गेम के आयोजनों को गंभीरता से कराने को कभी प्राथमिकता के बतौर नहीं लिया जाता।

शनिवार, 23 मई 2009

शिबू के लिए मुश्किल है सरकार बनाना

झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन काफी दुविधा में हैं। उन्हें भरोसा था कि विधायक बन गये तो मुख्यमंत्री भी बन जायेंगे। इसके लिए जामताड़ा के विधायक विष्णु भैया से इस्तीफा दिलाकर एक सुरक्षित सीट का इंतजाम किया गया। इस सीट पर उपचुनाव में श्री सोरेन जीत भी चुके हैं। इसके बावजूद झारखंड में अब सरकार बनने की कोई उम्मीद नहीं रह गयी है। शिबू सोरेन ने दुमका लोकसभा सीट भी जीती है। अब उन्हें तत्काल तय करना है कि किसी भी वक्त भंग होने की ओर बढ़ रही विधानसभा के सदस्य बनें अथवा दुमका से सांसद रहें। दोनों में से एक सीट उन्हें 31 मई तक छोड़नी है।

Nai Dunia, Delhi 20-05-09 page 6

रविवार, 17 मई 2009

नक्सलियों का नया प्रयोग
विष्णु राजगढ़िया
झारखंड में नक्सलियों ने एक नये राजनीतिक प्रयोग किया है। पलामू संसदीय क्षेत्र से झामुमो के टिकट पर नक्सली कमांडर कामेश्वर बैठा ने संसद में प्रवेश किया है। इस जीत को नक्सलियों की बदली रणनीति का प्रतीक माना जा रहा है। जेल में बंद श्री बैठा ने झामुमो प्रत्याशी के बतौर चुनाव भले ही लड़ा हो, इसे झामुमो की जीत के बतौर नहीं देखा जा रहा। झामुमो को अपने मजबूत जनाधार वाली राजमहल, गिरिडीह और जमशेदपुर सीटें गंवानी पड़ी है। अकेले शिबू सोरेन अपनी दुमका सीट बचा सके हैं। वैसे भी पलामू संसदीय क्षेत्र में कभी झामुमो का जनाधार नहीं रहा। कामेश्वर बैठा की जीत उनकी अपनी जीत है। इस जीत के अपने कारण और अपने मायने हैं। नक्सलियों की मदद के बगैर यह जीत संभव नहीं थी।
नई दुनिया, 18 मई 2009 पेज सात

गुरुवार, 7 मई 2009

झारखंड में नेशनल गेम्‍स का भी दम फूला
- विष्णु राजगढ़िया -

[उन अनजाने खिलाडयों के लिए, जो अवसर से वंचित रह गये]


उसे तो जख्म देना और तडफाना ही आता है।

गला किसका कटा, क्यूंकर कटा, तलवार क्या जाने?


जी हां, यही प्रकृति होती है शासन की। उसे इससे क्या मतलब कि उसके गलत तौर-तरीकों, मनमाने फैसलों और उनकी नाकाबिलियत का शिकार कितने लोगों को कितने रूपों में होना पड रहा है।
झारखंड में ३४ वें नेशनल गेम वर्ष २००७ में ही होने थे। वर्ष २००३ में ही इसके लिए हरी झंडी मिल चुकी थी। लेकिन चार बार नेशनल गेम की तिथि टल चुकी है। अगली तिथि पर भी नेशनल गेम हो सकेंगे या नहीं, कहना मुश्किल है। इस दौरान नौ की लकडी नब्बे खर्च की तर्ज पर बडे-बडे विज्ञापन देने और होर्डिंग लगाने वाले तमाम नेता व अधिकारी अब मुंह चुराते चल रहे हैं। २०० करोड के बदले हजार करोड से ज्यादा खर्च हो गया, इस पर विधानसभा की समिति भी बन गयी, समिति ने रिपोर्ट में गंभीर सवाल भी उठाये, फिर भी कुत्ते की पूंछ टेढी की टेढी ही रही।


http://newswing.com/?p=2667

मंगलवार, 5 मई 2009


नरेगाः सर्वे टीम निकली, कार्यस्थल गायब
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. ज्यां द्रेज एवं सामाजिक कार्यकत्र्ता रितिका खेरा के नेतृत्व में खूंटी जिले में नरेगा संबंधी कार्यों का सर्वेक्षण चल रहा है।
5 मई 2009 को जिला खूंटी में नरेगा सर्वे एक की शुरूआत अजीब सी रही। सर्वे टीम को कहीं भी चालू नरेगा कार्यस्थल देखने को नहीं मिला ।
इस सर्वे टीम में दिल्ली एवं अन्य विश्वविद्यालयों से आए छात्रों के साथ स्थानीय वालंटियर शामिल हैं। 5 मई को तीन टीमों ने अपना काम तीरला, हस्सा और सिलादोन ग्राम पचायत में शुरू किया। ग्राम पचायत तीरला में, टीम एक गांव से दूसरे गांव भागते रहे लेकिन उन्हें गांव सिम्बूकेल के अलावा कहीं भी ऐसा कोई नरेगा कार्यस्थल नहीं मिला जहां काम चल रहा हो। उन्हें बताया गया कि ज्यादातर काम पूरे हो चुके हैं। इसे प्रखंड दस्तावेजों से सत्यापित किया जा रहा है। सिम्बूकेल की इस कार्यस्थल पर पिछले डेढ महीने से काम बन्द था क्याोकि वहां कई मजदूरो को मजदूरी का भुगतान नहीं हुआ था ।
ग्राम पंचायत हस्सा की टीम, जिसकी अगुवाई डा० अनीरबन कार (दिल्ली स्कूल आॅॅफ इकोनोमिक्स से) कर रहे है, को कहा गया कि एक दिन पहले आयी बारिश की वजह से नरेगा कार्यों में अवरोध पैदा हो गया । इसमें कितना सच है यह तो समय ही बताएगा।
ग्राम पचायत सिलादोन में, अपरना जाॅन (केरल से आई) के संचालन में टीम को एक नरेगा कार्यस्थल मिला जहां कार्य चालू था। इस कार्यस्थल को ढूंढने में फागु सिंह (प्रधान, चुकरू) ने टीम की मदद की, जो कि टीम के सदस्य है। हांलाकि सिलादोन में अन्य किसी स्ािान पर नरेगा कार्यो के चालू होने का कोई निशान नहीं मिला फिर भी खोज जारी है । नरेगा सर्वे टीम के सदस्यों को नरेगा संबंधित सरकारी दस्तावेज प्राप्त करने में कुछ हद तक सफलता मिली ।
“हर हाथ को काम मिले” नारे के तहत जारी हुए “रोजगार अधिकार अभियान” में जिला प्रशासन द्वारा की गई पहल के बावजूद ऐसी स्थिति होना निराशाजनक है। अभियान किस मुकाम तक होगा यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा ।
दूसरी ओर, टीम ने पाया कि लोग नरेगा में काम करना चाहते है, बशर्ते समय पर भुगतान हो, और नरेगा के तहत तैयार किये जाने वाले संसाधनो की भी मांग है। कल और परसों की बारिश और तूफान के बावजूद तिरला गावं से बुदूदी गांव को जाने वाली मुरम सड़क (नरेगा के तहत बनी) साफ और अच्छी दशा में मिली। ऐसी स्थिति में नरेगा सुचारू रूप से चले यह सुनिश्चित करना होगा।
नरेगा सहायता केन्द्र, खूंटी द्वारा जारी (9608460736)

सोमवार, 4 मई 2009

छोटी मछलियां जेल में, लालू-जगन्नाथ के मामलों में खामोशी
शेष पेज 13 पर

पांच मामलों के 1300 गवाहों के बयान दर्ज नहीं, सीबीआइ की भूमिका पर उठते रहे सवाल
विष्णु राजगढ़िया

: भारत के सबसे बड़े पशुपालन घोटाले के 30 मामलों में 710 अभियुक्तों को सजा सुनायी जा चुकी है. लालू यादव एवं जगन्नाथ मिश्र से जुड़े पांच मामलों की सीबीआइ अदालत में सुनवाई काफी धीमी है. इन पांच मामलों में लगभग 300 कर¨ड़ के घोटाले का आरोप है. इन पांच मामलों में कुल 2295 गवाह हैं लेकिन अब तक महज 995 गवाहों के बयान दर्ज कराये गये हैं. शेष 1300 गवाहों के बयान दर्ज कराने के मामले में सीबीआइ की असफलता के कारण पांचों मामलों में लालू प्रसाद और डाॅ जगन्नाथ मिश्र सहित अनगिनत ऐसे अभियुक्तों को राहत मिल रही है, जिन्हें चारा घोटाले का मास्टरमाइंड समझा जाता है.

Nai Dunia, Delhi Page One, 05-05-2009

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

झारखंड के छह जिलों में नक्सल कफर्यू
विष्णु राजगढ़िया
नई दुनिया, 25 अप्रैल, पेज 11
दस दिनों से झारखंड के छह जिले नक्सलियों की गिरफ्त में हैं। ग्रामीणों की नजर में यह नक्सल कफर्यू है। राष्ट्रपति शासन में कानून व्यवस्था की इस भयावह स्थिति से नागरिक भयभीत हैं।

गुरुवार, 23 अप्रैल 2009

लोकतंत्र के लिए सवाल बना सुगनू गांव

विष्णु राजगढ़िया

रांची: कांके प्रखंड के सुगनू गांव ने आज मतदान का बहिष्कार करके लोकतंत्र के सामने चुनौती खड़ी कर दी है. सैनिक छावनी के लिए आसपास की जमीनों का अधिग्रहण होने के बाद सुगनू गांव तक पहुंचने के लिए कोई सड़क नहीं है. चालीस साल से गांव के लोग इसके लिए आवाज उठा रहे हैं. उन्हें सैनिक छावनी के अंदर से गुजरने के दौरान सैनिकों द्वारा शारीरिक और मानसिक यातना का शिकार होना पड़ता है. इस बार ग्रामीणों ने मतदान बहिष्कार की घोषणा करते हुए कल गांव में पोलिंग पार्टी को घुसने से रोका . इस क्रम में पुलिस ने लाठी और ग¨लियां चलायी जिसमें तीन ग्रामीणों को गोलियां लगीं
नई दुनिया, 24 अप्रैल 2009

मंगलवार, 21 अप्रैल 2009

अस्वस्थ सोरेन अचानक दुमका लाये गये
नई दुनिया, 21 अप्रैल 2009 पेज 10

रविवार, 19 अप्रैल 2009

नक्सली हमले से त्रस्त सरकार
पेज 12 पेज 13
विष्णु राजगढ़िया
सरकारी मशीनरी ने नक्सलियों के आगे पूरी तरह समर्पण कर रखा है और चुनाव प्रक्रिया को नक्सलियों के रहमोकरम पर छोड़ दिया गया है
नई दुनिया संडे पत्रिका 19 अप्रैल 2009

शनिवार, 18 अप्रैल 2009

चुटकुला है काला धन वापसी का नारा
माओवादी प्रवक्ता आजाद ने लंबे इंटरव्यू में उड़ाया मजाक
विष्णु राजगढ़िया
नई दुनिया, 18.04.09 पेज 11

मंगलवार, 14 अप्रैल 2009

मरांडी ने कहा कल हम हों न हों
विष्णु राजगढ़िया
नई दुनिया, दिल्ली, 15.04.09 पेज सात

सोमवार, 13 अप्रैल 2009

भगवा खिचड़ी में मोदी की छौंक
विष्णु राजगढ़िया
नई दुनिया, 14.04.09, पेज छह

शुक्रवार, 10 अप्रैल 2009

टूट के कगार पर झारखंड मुक्ति मोरचा
विष्णु राजगढ़िया
झारखंड आंदोलन के भीष्म पितामह अस्पताल की शैया पर पड़े हैं। दो महीने से शिबू सोरेन को रांची, बोकारो और दिल्ली के अस्पतालों के सीसीयू में भरती रहना पड़ रहा है।
गुरुजी के बेटे दुर्गा सोरेन और झामुमो के चार वर्तमान सासंदों के बीच मतभेद गहराये
नई दुनिया, 11 अप्रैल 2009, दिल्ली पेज छह

गुरुवार, 9 अप्रैल 2009

चुनावों से स्कूलों पर आफत, बच्चे बेहाल
विष्णु राजगढ़िया
रांची: लोकतंत्र का महापर्व चुनाव झारखंड में स्कूलों और बच्चों के लिए कहर बनकर आया है।

  • नक्सली उड़ा रहे गांवों में स्कूल
  • पुलिस ने स्कूलों में कैंप बनाया
  • प्रशासन ने स्कूल बसें जब्त कीं
  • 15 दिन बंद रहेंगे स्कूल

नई दुनिया, 10.04.09 पेज दस

मंगलवार, 7 अप्रैल 2009

दुविधा के मारे, चार एक्स-सीएम बेचारे

प्रदेश की राजनीति करें या केंद्र की, तय नहीं कर पा रहे शिबू, अर्जुन, कोड़ा, मरांडी
-विष्णु राजगढ़िया
नई दुनिया, 08.04.2009, नई दिल्ली

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2009

जेल से संसद पहुंचने की फिराक में दो पूर्व नक्सली

विष्णु राजगढ़िया

  • चतरा से माले के टिकट पर केश्वर यादव उर्फ रंजन यादव उर्फ दिनकर जी
  • पलामू से झामुमो के टिकट पर कामेश्वर बैठा

नई दुनिया 04.04.2009, नई दिल्ली

मंगलवार, 31 मार्च 2009

आडवाणी की सभा में जदयू बेगाना
नई दुनिया, दिल्ली, 31.03.09 पेज 6

सोमवार, 30 मार्च 2009

भाजपाइयों ने जदयू को औकात बताने की कसम खायी
झारखंड: जदयू-भाजपा में बढ़ी दरार
नई दुनिया, दिल्ली- 30 मार्च 2009

शुक्रवार, 27 मार्च 2009

बिजली, सड़क, पानी के लिए तरसते लोग
22-03-09
उड़िशा झटके का झारखंड में असर
23-03-09
कोडरमा में मरांडी को वाक ओवर
27-03-09

मंगलवार, 27 जनवरी 2009