शनिवार, 23 मई 2009

शिबू के लिए मुश्किल है सरकार बनाना

झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन काफी दुविधा में हैं। उन्हें भरोसा था कि विधायक बन गये तो मुख्यमंत्री भी बन जायेंगे। इसके लिए जामताड़ा के विधायक विष्णु भैया से इस्तीफा दिलाकर एक सुरक्षित सीट का इंतजाम किया गया। इस सीट पर उपचुनाव में श्री सोरेन जीत भी चुके हैं। इसके बावजूद झारखंड में अब सरकार बनने की कोई उम्मीद नहीं रह गयी है। शिबू सोरेन ने दुमका लोकसभा सीट भी जीती है। अब उन्हें तत्काल तय करना है कि किसी भी वक्त भंग होने की ओर बढ़ रही विधानसभा के सदस्य बनें अथवा दुमका से सांसद रहें। दोनों में से एक सीट उन्हें 31 मई तक छोड़नी है।

Nai Dunia, Delhi 20-05-09 page 6

रविवार, 17 मई 2009

नक्सलियों का नया प्रयोग
विष्णु राजगढ़िया
झारखंड में नक्सलियों ने एक नये राजनीतिक प्रयोग किया है। पलामू संसदीय क्षेत्र से झामुमो के टिकट पर नक्सली कमांडर कामेश्वर बैठा ने संसद में प्रवेश किया है। इस जीत को नक्सलियों की बदली रणनीति का प्रतीक माना जा रहा है। जेल में बंद श्री बैठा ने झामुमो प्रत्याशी के बतौर चुनाव भले ही लड़ा हो, इसे झामुमो की जीत के बतौर नहीं देखा जा रहा। झामुमो को अपने मजबूत जनाधार वाली राजमहल, गिरिडीह और जमशेदपुर सीटें गंवानी पड़ी है। अकेले शिबू सोरेन अपनी दुमका सीट बचा सके हैं। वैसे भी पलामू संसदीय क्षेत्र में कभी झामुमो का जनाधार नहीं रहा। कामेश्वर बैठा की जीत उनकी अपनी जीत है। इस जीत के अपने कारण और अपने मायने हैं। नक्सलियों की मदद के बगैर यह जीत संभव नहीं थी।
नई दुनिया, 18 मई 2009 पेज सात

गुरुवार, 7 मई 2009

झारखंड में नेशनल गेम्‍स का भी दम फूला
- विष्णु राजगढ़िया -

[उन अनजाने खिलाडयों के लिए, जो अवसर से वंचित रह गये]


उसे तो जख्म देना और तडफाना ही आता है।

गला किसका कटा, क्यूंकर कटा, तलवार क्या जाने?


जी हां, यही प्रकृति होती है शासन की। उसे इससे क्या मतलब कि उसके गलत तौर-तरीकों, मनमाने फैसलों और उनकी नाकाबिलियत का शिकार कितने लोगों को कितने रूपों में होना पड रहा है।
झारखंड में ३४ वें नेशनल गेम वर्ष २००७ में ही होने थे। वर्ष २००३ में ही इसके लिए हरी झंडी मिल चुकी थी। लेकिन चार बार नेशनल गेम की तिथि टल चुकी है। अगली तिथि पर भी नेशनल गेम हो सकेंगे या नहीं, कहना मुश्किल है। इस दौरान नौ की लकडी नब्बे खर्च की तर्ज पर बडे-बडे विज्ञापन देने और होर्डिंग लगाने वाले तमाम नेता व अधिकारी अब मुंह चुराते चल रहे हैं। २०० करोड के बदले हजार करोड से ज्यादा खर्च हो गया, इस पर विधानसभा की समिति भी बन गयी, समिति ने रिपोर्ट में गंभीर सवाल भी उठाये, फिर भी कुत्ते की पूंछ टेढी की टेढी ही रही।


http://newswing.com/?p=2667

मंगलवार, 5 मई 2009


नरेगाः सर्वे टीम निकली, कार्यस्थल गायब
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. ज्यां द्रेज एवं सामाजिक कार्यकत्र्ता रितिका खेरा के नेतृत्व में खूंटी जिले में नरेगा संबंधी कार्यों का सर्वेक्षण चल रहा है।
5 मई 2009 को जिला खूंटी में नरेगा सर्वे एक की शुरूआत अजीब सी रही। सर्वे टीम को कहीं भी चालू नरेगा कार्यस्थल देखने को नहीं मिला ।
इस सर्वे टीम में दिल्ली एवं अन्य विश्वविद्यालयों से आए छात्रों के साथ स्थानीय वालंटियर शामिल हैं। 5 मई को तीन टीमों ने अपना काम तीरला, हस्सा और सिलादोन ग्राम पचायत में शुरू किया। ग्राम पचायत तीरला में, टीम एक गांव से दूसरे गांव भागते रहे लेकिन उन्हें गांव सिम्बूकेल के अलावा कहीं भी ऐसा कोई नरेगा कार्यस्थल नहीं मिला जहां काम चल रहा हो। उन्हें बताया गया कि ज्यादातर काम पूरे हो चुके हैं। इसे प्रखंड दस्तावेजों से सत्यापित किया जा रहा है। सिम्बूकेल की इस कार्यस्थल पर पिछले डेढ महीने से काम बन्द था क्याोकि वहां कई मजदूरो को मजदूरी का भुगतान नहीं हुआ था ।
ग्राम पंचायत हस्सा की टीम, जिसकी अगुवाई डा० अनीरबन कार (दिल्ली स्कूल आॅॅफ इकोनोमिक्स से) कर रहे है, को कहा गया कि एक दिन पहले आयी बारिश की वजह से नरेगा कार्यों में अवरोध पैदा हो गया । इसमें कितना सच है यह तो समय ही बताएगा।
ग्राम पचायत सिलादोन में, अपरना जाॅन (केरल से आई) के संचालन में टीम को एक नरेगा कार्यस्थल मिला जहां कार्य चालू था। इस कार्यस्थल को ढूंढने में फागु सिंह (प्रधान, चुकरू) ने टीम की मदद की, जो कि टीम के सदस्य है। हांलाकि सिलादोन में अन्य किसी स्ािान पर नरेगा कार्यो के चालू होने का कोई निशान नहीं मिला फिर भी खोज जारी है । नरेगा सर्वे टीम के सदस्यों को नरेगा संबंधित सरकारी दस्तावेज प्राप्त करने में कुछ हद तक सफलता मिली ।
“हर हाथ को काम मिले” नारे के तहत जारी हुए “रोजगार अधिकार अभियान” में जिला प्रशासन द्वारा की गई पहल के बावजूद ऐसी स्थिति होना निराशाजनक है। अभियान किस मुकाम तक होगा यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा ।
दूसरी ओर, टीम ने पाया कि लोग नरेगा में काम करना चाहते है, बशर्ते समय पर भुगतान हो, और नरेगा के तहत तैयार किये जाने वाले संसाधनो की भी मांग है। कल और परसों की बारिश और तूफान के बावजूद तिरला गावं से बुदूदी गांव को जाने वाली मुरम सड़क (नरेगा के तहत बनी) साफ और अच्छी दशा में मिली। ऐसी स्थिति में नरेगा सुचारू रूप से चले यह सुनिश्चित करना होगा।
नरेगा सहायता केन्द्र, खूंटी द्वारा जारी (9608460736)

सोमवार, 4 मई 2009

छोटी मछलियां जेल में, लालू-जगन्नाथ के मामलों में खामोशी
शेष पेज 13 पर

पांच मामलों के 1300 गवाहों के बयान दर्ज नहीं, सीबीआइ की भूमिका पर उठते रहे सवाल
विष्णु राजगढ़िया

: भारत के सबसे बड़े पशुपालन घोटाले के 30 मामलों में 710 अभियुक्तों को सजा सुनायी जा चुकी है. लालू यादव एवं जगन्नाथ मिश्र से जुड़े पांच मामलों की सीबीआइ अदालत में सुनवाई काफी धीमी है. इन पांच मामलों में लगभग 300 कर¨ड़ के घोटाले का आरोप है. इन पांच मामलों में कुल 2295 गवाह हैं लेकिन अब तक महज 995 गवाहों के बयान दर्ज कराये गये हैं. शेष 1300 गवाहों के बयान दर्ज कराने के मामले में सीबीआइ की असफलता के कारण पांचों मामलों में लालू प्रसाद और डाॅ जगन्नाथ मिश्र सहित अनगिनत ऐसे अभियुक्तों को राहत मिल रही है, जिन्हें चारा घोटाले का मास्टरमाइंड समझा जाता है.

Nai Dunia, Delhi Page One, 05-05-2009