मंगलवार, 28 जुलाई 2009

चारा घोटाला : लालू-जगन्नाथ के मामलों में तेजी आयी
-डॉ मिश्र को झारखंड हाईकोर्ट से नहीं मिली राहत
-डॉ आरके राणा समेत 14 पर फैसला 31 को
-चारा घोटाले में पहली बार किसी राजनेता पर

विष्णु राजगढ़िया
रांची : पशुपालन घोटाले में लालू यादव एवं डॉ जगन्नाथ मिश्र से जुड़े पांच में से तीन मामलों की सुनवाई तेज हो गयी है। दूसरी ओर झारखंड उच्च न्यायालय ने एक मामले में डॉ मिश्र को राहत देने से इंकार कर दिया है। पशुपालन घोटाले संबंधी एक अन्य मामले में लालू यादव के खास करीबी एवं राजद के पूर्व सांसद डॉ आरके राणा सहित 14 लोगों के संबंध में फैसला 31 जुलाई को सुनाया जायेगा। इस घोटाले में पहली बार किसी प्रमुख राजनीतिक के मामले में फैसला होने वाला है।

बिहार के दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों के खिलाफ रांची सीबीआइ की विशेष अदालत में चल रहे पांच मामलों में 410 अभियुक्त हैं। इन पर पशुपालन अधिकारियों एवं आपूर्तिकर्त्ताओं के साथ मिलीभगत करके दुमका, देवघर, चाइबासा एवं डोरंडा स्थित कोषागारों से लगभग 250 करोड़ रुपयों की अवैध निकासी का आरोप है। पशुपालन घोटाले की जांच कर रहे सीबीआइ के आरक्षी अधीक्षक आरसी चौधरी के अनुसार दो मामलों आरसी-20ए/96 तथा 68ए/96 की सुनवाई फिलहाल जज के अभाव में स्थगित है। श्री चौधरी के अनुसार शेष तीन मामलों आरसी 38ए/96, आरसी 47ए/96 तथा आरसी 64ए/96 में गवाही चल रही है


इन मामलों पर सुनवाई जल्द पूरी होने की उम्मीद है। कांड संख्या आरसी 47ए/96 को पशुपालन घोटाले का सबसे बड़ा मामला माना जाता है। इसमें रांची के डोरंडा स्थित कोषागार से 182 करोड़ रुपये अवैध निकासी का आरोप है। आरसी 38ए/96 दुमका कोषागार से 31.34 करोड़ की अवैध निवासी का मामला है। कांड संख्या आरसी 64ए/96 देवघर कोषागार से पांच करोड़ रुपयों की अवैध निकासी से संबंधित है।

इस बीच बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ जगन्नाथ मिश्र को झारखंड हाईकोर्ट से निराशा हाथ लगी है। उन्होंने चारा घोटाला कांड संख्या आरसी 20 ए/96 से अपना नाम हटाने का अनुरोध किया था। डॉ मिश्र के अधिवक्ता राणाप्रताप सिंह ने अनुसार इस कांड में सीबीआइ ने उनके खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति गलत ढंग से ली थी। अभियोजन के लिए कैबिनेट से सहमति मिलने के बाद राज्यपाल द्वारा इसकी स्वीकृति दी जानी चाहिए थी। अधिवक्ता के अनुसार इस प्रक्रिया का पालन नहीं किये जाने के कारण उनका नाम इस कांड से हटाया जाना चाहिए। श्री सिंह ने अदालत में अपना पक्ष रखा कि अभियोजन के वक्त डॉ मिश्र राज्यसभा सदस्य थे, इसलिए राज्यसभा के स्पीकर से इसकी स्वीकृति ली जानी चाहिए थी।

दूसरी ओर, सीबीआइ की ओर से अधिवक्ता राजेश कुमार ने अदालत में कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा-19 व सीआरपीसी की धारा 197 के तहत डॉ मिश्र के खिलाफ अभियोजन के लिए स्वीकृति लेने की आवश्यकता नहीं। साथ ही, डॉ मिश्र पर नेता विपक्ष के बतौर कार्यकाल से संबंधित आरोप होने के कारण राज्यसभा स्पीकर से अनुमति की भी आवश्यकता नहीं थी। झारखंड हाईकोर्ट में जस्टिस अमरेश्वर सहाय एवं जस्टिस आरआर प्रसाद की खंडपीठ ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद सोमवार को डॉ मिश्र की अपील याचिका खारिज कर दी। इससे पहले डॉ मिश्र ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके कहा था कि उन्हें इस मामले में अपना पक्ष रखने का अवसर नहीं दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड उच्च न्यायालय को दोनों पक्षों कर फिर से सुनने का निर्देश दिया था। लेकिन सुनवाई के बाद डॉ मिश्र को इसमें कोई राहत नहीं मिल सकी है। उक्त कांड संख्या आरसी 20 ए/96 में डॉ जगन्नाथ मिश्र के साथ लालू प्रसाद भी अभियुक्त हैं। सीबीआइ ने यह मामला 27 अप्रैल 1996 को दर्ज किया था। इसमें नकली सप्लायरों के जाली बिल बनाकर फरजी आपूर्ति के नाम से चाईबासा कोषागार से 37 करोड़ की अवैध निकासी का आरोप है। इस मामले में लालू प्रसाद और डॉ मिश्र जेल भी जा चुके हैं।

सीबीआइ के आरक्षी अधीक्षक आरसी चौधरी के अनुसार पशुपालन घोटाला कांड संख्या आरसी 22 ए/96 में सुनवाई पूरी हो चुकी है। सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश वीरेश्वर झा प्रवीर 31 जुलाई को फैसला सुनायेंगे। लगभग 28 लाख रुपयों की फरजी निकासी के इस मामले के 14 अभियुक्तों में राजद के पूर्व सांसद डॉ आर के राणा शामिल हैं। श्री राणा पर तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद से सांठगांठ करके पशुपालन अधिकारियों का पदस्थापन एवं तबादला कराने तथा घोटाला करने वालों को संरक्षण देने का आरोप है। इस मामले में सीबीआइ ने 20 अभियुक्तों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया था। उनमें से चार की मृत्यु हो चुकी है जबकि दो अभियुक्तों को सरकारी गवाह बना दिया गया।

सोमवार, 27 जुलाई 2009

झालीवुड का जलवा
विष्णु राजगढ़िया
नई दुनिया पत्रिका 26 जुलाई 2009

गुरुवार, 23 जुलाई 2009

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50 गुना लागत बढ़ी, समय अवधि चार गुना
फिर भी पूरी नहीं हुई स्वर्णरेखा परियोजना
विष्णु राजगढ़िया
रांची : झारखंड में अकाल की स्थिति है। खेत सूखे हैं। चार जिले सूखाग्रस्त घोषित किये जा चुके हैं और पूरे राज्य को सूखाग्रस्त घोषित करने की मांग की जा रही है। वैसे भी राज्य में मात्र 22 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि सिंचित है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह आंकडा 40 फीसदी से भी ज्यादा है।
झारखंड की इस बदहाली का एक बड़ा कारण अधिकांश सिंचाई योजनाओं का लंबित और अधूरी रह जाना है।स्वर्णरेखा बहुद्देश्यीय परियोजना वर्ष 1973 में बनी थी। उस वक्त इसकी लागत 90 करोड़ होने का अनुमान था। इसे आठ साल में पूरा कर लेने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन इन 36 वर्षों में यह परियोजना पूरी नहीं हो सकी है। इस बीच इसकी लागत राशि 90 करोड़ से लगभग 50 गुना ज्यादा बढ़ाकर 4540 करोड़ कर दी गयी है। लागत और अवधि में इतनी वृद्धि के बावजूद परियोजना अधूरी होना पूर्ववर्ती बिहार और अब झारखंड सरकार की कार्यसंस्कृति का घिनौना उदाहरण है।स्वर्णरेखा नदी छोटानागपुर के पठार से निकलकर पश्चिम बंगाल और ओड़िशा होकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
इस परियोजना का उद्देश्य झारखंड में सिंचाई और बिजली उत्पादन के साथ ही घरेलू एवं औद्योगिक उपयोग हेतु जल उपलब्ध कराना था। इसके अलावा पश्चिम बंगाल एवं ओड़िशा में बाढ़ नियंत्रण के लिहाज से भी इसे महत्वपूर्ण परियोजना माना गया था। इसके तहत चांडिल, खरकई, गालूडीह और ईचा में बांध के जरिये नहर बनानी थी। लेकिन अब तक कोई काम पूरा नहीं हुआ है। इसे दो चरणों में पूरी करना था।
पहले चरण में चांडिल, खरकई और गालूडीह संबंधी काम करना था और ईचा बांध संबंधी काम दूसरे चरण में करना था। लेकिन सारे काम एक साथ शुरू कर दिये जाने से अराजक स्थिति उत्पन्न् हो गयी। अगर पहले चांडिल बांध एवं उसकी नहर प्रणाली को पूरा किया गया होता तो इसका लाभ तत्काल मिल सकता था।इस परियोजना के लिए जमशेदपुर में एक विशेष परियोजना इकाई का गठन करके एक प्रशासक की नियुक्ति की गयी थी। सरकार के सचिव स्तर के इस प्रशासक को केंद्र एवं तीनों राज्य सरकारों से समन्वय स्थापित करने से लेकर परियोजना का बजट बनाने, वनभूमि संबंधी प्रबंध, पुनर्वास एवं ठेका प्रबंध इत्यादि कार्यों हेतु व्यापक शक्तियां हासिल थीं। लेकिन धीरे-धीरे प्रश्ाासक की शक्तियां छीनकर राज्य सरकार के जल संसाधन सचिव को दे दी गयीं। यहां तक कि कई बार प्रशासक का पद रिक्त रखा गया। एक बार लगभग डेढ़ साल तक यह पद रिक्त रहा।
इन चीजों ने परियोजना को बर्बाद करने में अहम भूमिका निभायी।विसथापन और पुनर्वास संबंधी चुनौतियों का समुचित हल नहीं ढूंढ़ पाने के कारण भी इस परियोजना को जटिलता और विरोध का सामना करना पड़ा। 1986 में 75 हजार एकड़ भूमि की आवश्यकता होने का अनुमान लगाया गया था। झारखंड बनने तक लगभग 50 हजार एकड़ भूमि का अधिग्रहण भी कर लिया गया था। लेकिन वर्ष 2002 में 116 हजार एकड़ भूमि की जरूरत का आकलन किया गया। दूसरी ओर, विस्थापितों के पुनर्वास और मुआवजा संबंधी विवादों के कारण जमीन का अधिग्रहण भी नहीं किया जा सका।परियोजना में अराजकता के कई अन्य गंभीर उदाहरण मिलते हैं। विभिन्न् कार्यों की स्वीकृति एवं क्रियान्वयन में तकनीकी पहलुओं की अनदेखी के कारण काफी नुकसान उठाना पड़ा। मसलन, चांडिल बायीं मुख्य नहर के 22.86 किलोमीटर पर एक पुल का निर्माण समतल भूमि से छह मीटर नीचे कर दिया गया। अत्यधिक ढाल के कारण इस पुल तक पहुंचने की सड़क बनाना मुश्किल था। इसके कारण इस पुल को बेकार छोड़ देना पड़ा। इसके बदले वर्ष 2006 में लगभग 50 लाख की लागत से एक नया पुल बनाना पड़ा।
इसी तरह, चांडिल बायीं मुख्य नहर के 25.42 किलोमीटर पर नहर को दलमा पहाड़ी से बहने वाले पानी से बचाने के लिए एक सुपर पैसेज बनाया गया था। लेकिन तकनीकी खामियों के कारण यह अपना काम नहीं कर सका और वैकल्पिक प्रबंध के लिए लगभग सवा करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च करना पड़ा।झारखंड अपने गठन के दौर से ही विकास की छटपटाहट से गुजर रहा है। लेकिन पूर्ववर्ती बिहार की कार्यसंस्कृति की छाया से उबर नहीं पाने के कारण सभी विकास योजनाएं अधर में लटकी हुई हैं। जमीन के अधिग्रहण और पुनर्वास व मुआवजे संबंधी नीति पर अब तक सहमति नहीं बन पाना भी इस दिशा मंे एक बड़ी समस्या है।
ऐसे में राज्य को सूखाग्रस्त घोषित करने और स्पेशल पैकेज के नाम पर केंद्र से कुछ अतिरिक्त राशि मांगने के सिवाय राजनीतिक दलों के पास भी कोई एजेंडा नहीं। स्वर्णरेखा बहुद्देश्यीय परियोजना कब पूरी होगी, यह पूछने की फुरसत उन्हें नहीं।

मंगलवार, 21 जुलाई 2009

सोनिया-मनमोहन पर हमले की धमकी
माओवादी विज्ञप्ति की जांच में जुटी झारखंड पुलिस
विष्णु राजगढ़िया
रांची : भाकपा (माओवादी) की एक प्रेस विज्ञप्ति ने झारखंड पुलिस की नींद हराम कर दी है। कल देर रात इस संगठन की घाटशिला सबजोनल कमेटी के प्रभारी अनूप मुखर्जी ने गढ़वा में एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी। इसमें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सीधी धमकी दी गयी थी। साथ ही इसमें झारखंड से केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय सहित कई प्रमुख कांग्रेसी नेताओं के नाम का उल्लेख करते हुए उन्हें एक सप्ताह के अंदर कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देने की धमकी दी गयी थी। पुलिस इस प्रेस विज्ञप्ति की असलियत जांचने में जुट गयी है। राष्ट्रीय स्तर के मामले पर पार्टी की केंद्रीय कमेटी के बजाय स्थानीय संगठन के एक नेता द्वारा जारी विज्ञप्ति को वास्तव में कितनी गंभीरता से लिया जाये, इसे लेकर झारखंड पुलिस उलझ गयी है। हालांकि राज्य के डीजीपी बीडी राम ने इसे पूरी गंभीरता से लेते हुए नक्सली मंसूबों को पूरा नहीं होने देने का भरोसा दिलाया है। दूसरी ओर, कांग्रेस नेताओं ने इस मामले की संवेदनशीलता को भंपते हुए फिलहाल इस पर टीका-टिप्पणी से परहेज करते हुए पुलिस को अपना काम गंभीरता से करने की सलाह दी है।माओवादियों की यह विज्ञप्ति गत दिन लोकसभा मंे गृहमंत्री पी चिदंबरम द्वारा नक्सलियों के खिलाफ दिये गये बयान की प्रतिक्रिया में जारी की गयी है। इसमें कहा गया है कि गृहमंत्री झारखंड सहित पूरे देश से नक्सलियों के खात्मे की घोषणा कर रहे हैं। यदि उनमें ताकत है तो झारखंड आकर देखें। नक्सली कोई खिलौना नहीं हैं जिन्हें खेलकर तोड़ दिया जाता है। वह नक्सलियों को खत्म करने का सपना छोड़ दें वरना उन्हें सजा-ए-मौत दी जायेगी। विज्ञप्ति में धमकी दी गयी है कि माओवादियों को आतंकी घोषित करने वाले मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी का भी वही हश्र कर दिया जायेगा जैसा राजीव गांधी के साथ लिट्टे ने किया था। विज्ञप्ति में केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप बलमुचु, राज्यसभा सदस्य धीरज साहू, विधायक नियल तिर्की एवं सौरभ नारायण सिंह को एक सप्ताह के भीतर कांग्रेस से इस्तीफा देने अथवा सजा-ए-मौत के लिए तैयार रहने की धमकी दी गयी है।माओवादी नेता अनूप मुखर्जी द्वारा जारी एक अन्य विज्ञप्ति में महंगाई के खिलाफ 22 जुलाई को झारखंड बंद का भी ऐलान किया गया है। सरकार ने इसे भी गंभीरता से लेते हुए पुख्ता सुरक्षा के इंतजाम करने की घोषणा की है।

रविवार, 19 जुलाई 2009

झरिया : आग पर आशियाना
विष्णु राजगढ़िया
झरिया शहर के नीचे कोयला है और कोयले में है आग । सौ साल पुरानी इस आग की तपन और गैस की गंध के बीच झरियावासियों की कई पीढ़ियां गुजर चुकी हैं । एक समय कोयलांचल का सबसे समृद्ध यह शहर लगातार अपनी चमक खोता जा रहा है । आज नहीं तो कल उजड़ना ही है, ऐसी मन:स्थिति में दशकों से लोग जी रहे हैं । लेकिन रोजी-रोटी उन्हें हटने नहीं देती । अन्य शहरों में पुराने मकानों की जगह नई-नई इमारतें धड़ल्ले से बन रही है, वहीं झरिया में नया निर्माण बेहद कम हो रहा है । पुराने मकानों की बेहद जरूरी मरम्मत करके काम चलाया जाता है । हर दिन इस आशंका से गुजरता है कि कहीं कोई बड़ा हादसा नहीं हो जाये । घरों के नीचे से आग और गैस निकलने की घटनाएं सामान्य हैं । कई बार मुख्य सड़कों में गोफ बन जाते हैं और जमीन की आग और गैस निकलकर भयावह दृश्य उत्पन्न् करती है । झरिया शहर को उजाड़कर दूसरी जगह बसाने की कोशिश लंबे समय से चल रही है । इसके लिए राज्य सरकार ने झरिया पुनर्वास प्राधिकार भी बनाया है । पिछले साल झारखंड सरकार ने इसके लिए 6400 करोड़ का पुनर्वास पैकेज दिया था । बेनगढ़िया नामक जगह पर एक नई आवासीय कॉलोनी बनाई गई है । लेकिन झरियावासी इसमें जाने को तैयार नहीं । एक-एक कमरों के दबड़ेनुमा फ्लैट का आकार और इसकी निर्माण की गुणवत्ता झरियावासियों को रास नहीं आ रही। इससे बढ़कर यह कि झरिया में लोगों के पास आजीविका के विभिन्न् प्रकार के साधन हैं । सुदूर क्षेत्र में बनी बेनगढ़िया कॉलोनी में रोजगार का कोई साधन नहीं होगा । ऐसे में झरियावासी इस कॉलोनी में रह तो लेंगे लेकिन खायेंगे क्या?दूसरी ओर, केंद्र और राज्य सरकार किसी भी सूरत में झरियावासियों को स्थानांतरित करने की कोशिश में जुट गई है । झारखंड में राष्ट्रपति शासन है । झारखंड के राज्यपाल के सलाहकार टीपी सिन्हा ने जुलाई के पहले सप्ताह में झरिया जाकर पुनर्वास संबंधी योजना बनाई । इसके तहत सौ दिनों के अंदर झरिया के 4650 परिवारों को अन्यत्र बसाने का लक्ष्य रखा गया है । इनमें ग्वालापट्टी, राजपूत बस्ती, बोकापहाड़ी, मोदीपीट्ठा और लूजपीठ बस्तियां शामिल हैं । इन बस्तियों को डीजीएमएस ने सबसे ज्यादा असुरक्षित क्षेत्र बताया है । इन परिवारों को भूली कॉलोनी में बसाने की योजना है । हालांकि इसे लेकर भी विवाद खड़ा हो गया है । भूली एक विशाल श्रमिक कॉलोनी है । इसमें बीसीसीएल के कर्मियों के अलावा हजारों आवासों में अवैध रूप से गैर-बीसीसीएलकर्मी भी रहते हैं । सरकार की योजना के अनुसार इन आवासों में रहनेवाले अवैध लोगों को हटा कर झरियावासियों को बसाया जायेगा । यह करना बेहद मुश्किल होगा । इसके खिलाफ भूली में उग्र विरोध शुरू हो चुका है । झरिया पुनर्वास योजना के अनुसार 10 साल के अंदर लगभग एक लाख परिवारों को दूसरी जगह बसाना है । इसके लिए 10 हजार करोड़ स्र्पयों का प्रावधान रखा गया है । इस मास्टर प्लान को कोल इंडिया तथा कोयला मंत्रालय की स्वीकृति मिल चुकी है । आर्थिक मामलों पर केंद्र सरकार की कैबिनेट समिति की मुहर लगने के बाद इस पर काम शुरू होगा । इसे लागू करने का दायित्व झरिया पुनर्वास विकास प्राधिकार पर है । राज्य सरकार द्वारा बनाये गये इस प्राधिकार में बीसीसीएल के अधिकारी भी शामिल हैं । मास्टर प्लान के अनुसार, कोयले की आग बुझाने के प्रयास भी किये जायेंगे । बीसीसीएल पर अपने श्रमिकों के पुनर्वास तथा आग बुझाने संबंधी कार्यों का दायित्व है । गैर-बीसीसीएल कर्मियों के पुनर्वास का दायित्व राज्य सरकार पर है । बिहार विधान परिषद ने गौतम सागर राणा की अध्यक्षता में एक समिति बनाई थी । उस समिति ने झरिया को अन्यत्र बसाने की अनुशंसा की थी ।देश की सबसे पुरानी कोयला खदानों में झरिया कोयलांचल का नाम प्रमुख है । यहां 1894 ई में कोयला खनन शुरू हुआ जिसने 1925 तक व्यापक रूप ग्रहण कर लिया । पहले कोयला खदानें निजी मालिकों के हाथों में थीं । 1971 में इंदिरा गांधी ने देश की सभी कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण कर लिया । झरिया कोयलांचल कोल इंडिया के बीसीसीएल यानी भारत कोकिंग कोल लिमिटेड के अंतर्गत आता है। यह धनबाद जिले के लगभग 280 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है । यहां का कोयला काफी उन्न्त श्रेणी का और कीमती माना जाता है । झरिया का बिटुमीनियस कोयला काफी गुणवत्तापूर्ण है, जो कोक और ब्लास्ट फर्नेस के लिए उपयोगी है । यहां 23 भूमिगत तथा नौ खुली खदानों के जरिये कोयला खनन का काम चल रहा है । अब भी झरिया कोयलांचल में 60 हजार करोड़ स्र्पयों का कोयला भंडार होने का अनुमान है । झरिया के कोयले में लगी आग का पता सबसे पहले 1916 में चला था । उस वक्त निजी मालिकों के पास इसे बुझाने की कोई न तो तकनीक थी और न ही उनके लिए प्राथमिकता थी । 1971 में राष्ट्रीयकरण के दौर में आधुनिक तकनीक से कोयला खनन शुरू हुआ । उस दौरान किये गये सर्वेक्षण से लगभग 17 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र की 70 जगहों पर आग लगी होने का पता चला । उनमें से 10 जगहों पर ब्लैंकेटिंग, नाइट्रोजन फ्लाशिंग और स्टोविंग के जरिये आग पर काबू पाने की कोशिश की गई थी । लेकिन आमतौर पर कोयला अधिकारियों ने आग को फैलने से रोकने तथा बुझाने संबंधी कार्यों में गंभीरता नहीं दिखायी । भूमिगत खदानों में कोयला निकाले जाने के बाद बालू भरना आवश्यक है ताकि आग और गैस का फैलाव न हो । लेकिन बालू भराई के दाम पर महज खानापूरी करके बड़ा घोटाला करने के आरोप लगते रहे । धनबाद में चर्चित कोयला माफिया के उदय में इस बालू घोटाले की भी भूमिका रही । आज भी लगभग 37 मिलियन टन कोकिंग कोल आग की चपेट में होने का अनुमान है ।इस आग में कार्बन मनोक्साइड, कार्बन डाई ऑक्साइड, सल्फर डाई आक्साइड और मिथेन गैस होती है । इस आग और गैस के कारण वायू प्रदूषण होता है और स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याएं उत्पन्न् होती हैं । यही कारण है कि यहां के निवासियों में टीबी, ब्राउनकाइल अस्थमा, निमोकोनिसिस, श्वांस संबंधी कई जटिलताएं, चर्म रोग जैसी बीमारियां आम हैं ।अप्रैल 2008 में सीपीएम सांसद वृंदा करात ने राज्यसभा में यह मामला उठाया था। केंद्रीय कोयलामंत्री संतोष बागरोड़िया ने लिखित जवाब में बताया कि 2006 के सर्वेक्षण के अनुसार झरिया में अग्नि-प्रभावित परिवारों की संख्या 98314 है । इनमें 44155 घर बीसीसीएल कर्मियों के हैं । गैर-बीसीसीएल कर्मी परिवारों की संख्या 54159 है । झरिया और राजगंज के पुनर्वास के लिए 2659 करोड़ की योजना बनायी गयी है । श्रीमती करात के पूरक प्रश्न के जवाब में कोयला मंत्री ने यह भी बताया था कि फिलहाल झरिया शहर आग से सुरक्षित है तथा मुख्य शहर को हटाने का कोई प्रस्ताव भी नहीं है ।झरिया बचाओ समिति ने पुनर्वास के नाम पर झरिया को उजाड़ने का आरोप लगाया है । अशोक अग्रवाल के अनुसार झरिया को उजाड़ने के बजाए नीचे लगी आग को बुझाने की ईमानदार कोशिश की जाये, तो समस्या सुलझ सकती है । श्री अग्रवाल के अनुसार केंद्रीय कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल और राज्यपाल के सलाहकार टीपी सिन्हा ने झरिया दौरे के क्रम में झरिया के नागरिकों से बातचीत की जरूरत नहीं समझी । यह केंद्र और राज्य सरकार के संवेदनहीन रवैये का परिचायक है । श्री अग्रवाल के अनुसार झरिया बचाओ समिति ने पिछले दिनों धनबाद के उपायुक्त को आवेदन दिया था । इसमें बताया गया था कि इंदिरा चौक से भूमिगत आग झरिया शहर की ओर बढ़ रही है । इसे तत्काल नियंत्रित करने का प्रयास बीसीसीएल को करना चाहिए । श्री अग्रवाल कहते हैं कि भूमिगत खनन के दौरान झरिया को उजाड़ने की कोई जरूरत नहीं थी । बाद में खुली खदानों के जरिये कम खर्च में तत्काल उत्पादन के चक्कर में झरिया को उजाड़ने की साजिश रची गयी । भूमिगत खनन के लिए जमीन की जरूरत नहीं होती जबकि खुली खदान के लिए शहरों और गांवों को उजाड़ा जाता है । झरिया को उजाड़ने के लिए बीसीसीएल ने कोयले की आग पर काबू पाने की कोशिश नहीं की ।समिति की ओर से मदन खन्न्ा कहते हैं कि पुनर्वास के संबंध में राज्य सरकार, केंद्र सरकार और कोल इंडिया तीनों के प्रावधान अलग-अलग हैं। झरियावासियों को कोल इंडिया के प्रावधानों के अनुरूप पुनर्वास करने के बजाय इसके कई लाभों से वंचित करने की कोशिश हो रही है।कोल माइंस रिसर्च इंस्टीच्यूट के तत्कालीन निदेशक डॉ टीएन सिंह ने झरिया की आग बुझाने के लिए लक्ष्मण रेखा परियोजना बनाई थी । इसे काफी कम लागत वाली प्रभावी योजना माना गया था । लेकिन इस परियोजना को स्वीकृति नहीं मिल सकी और आग बढ़ती चली गयी ।झरिया मामले का राजनीतिकरण भी खूब होता रहा है । हर चुनाव झरिया बचाने के नाम पर ही लड़ा जाता है । 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी चंद्रशेखर दूबे ने झरिया बचाने का वादा करके विजय हासिल की थी । लेकिन केंद्र में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद झरिया को अन्यत्र बसाने की योजना पर ही काम चलता रहा । नतीजा यह है कि इस बार मतदाताओं ने भाजपा के पशुपतिनाथ सिंह को सांसद चुना है । श्री सिंह ने झरिया को बचाने का वादा किया था । केंद्रीय कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने पिछले दिनों झारखंड दौरे के क्रम में झरिया को खाली कराने का निर्देश देकर मानो आग में घी डाल दिया हो । झारखंड सरकार की ओर से राज्यपाल के सलाहकार टीपी सिन्हा ने भी यही बात दोहरा दी । जबकि मामले की संवेदनशीलता को भांपते हुए कांग्रेस के पूर्व सांसद चंद्रशेखर दूबे ने भरोसा दिलाया कि झरिया नहीं उजड़ेगा । उन्होंने यह भी दावा किया कि केंद्रीय कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल से उनकी इस संबंध में बातचीत हो चुकी है । झरिया शहर का इस तरह उजड़ते जाना आधुनिक विकास की एक त्रासदी है । कोयला निकालने के साथ आग पर नियंत्रण के उचित उपाय किये गये होते और बालू भराई जैसे जरूर दायित्व को लूट का शिकार नहीं बनाया गया होता तो आज विकास के बदले विनाश का यह मंजर नहीं होता । अब भी पुनर्वास के नाम पर हो रही कोशिशें बेहद अपर्याप्त नजर आ रही हैं । यही कारण है कि नीचे की आग की तपन झरियावासियों के दिलों में धधकने लगी है ।

नेताओं पर कसा शिकंजा


विष्णु राजगढ़िया
लोकतंत्र का यह दिलचस्प रंग है । कल तक राज्य में कानून बनाने की हैसियत रखने वाले लोग आज खुद कानून के शिकंजे में हैं । कल तक कानून का पालन करने का जिन पर दायित्व था, आज वे कानून से बचकर फरार हैं । झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा तथा पांच निर्दलीय पूर्व मंत्रियों के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति मामले में हुए मुकदमों ने राजनीतिकों के होश गुम कर दिये हैं । दो पूर्व मंत्रियों एनोस एक्का और हरिनारायण राय की गिरफ्तारी के वारंट लेकर पुलिस उनके ठिकानों पर छापेमारी कर रही है । हैरानी की बात तो यह है कि दोनों पूर्व मंत्री दर्जन भर सरकारी सुरक्षा गार्डों के साथ फरार हैं ।
शीर्ष राजनेताओं का यह हश्र बिहार के पूर्व मुख्यमंत्रियों डॉ जगन्न्ाथ मिश्र और लालू प्रसाद पर हुए ऐसे ही मुकदमों के दौर की याद दिलाता है । हाल के वर्षों में केंद्रीय कोयला मंत्री पद पर रहते हुए झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन ने भी सुरक्षाकर्मियों के साथ फरार होने का रिकॉर्ड बनाया था । झारखंड विधानसभा के लिए वर्ष 2005 में हुए चुनाव में किसी दल को बहुमत नहीं मिला था । इससे लगभग एक दर्जन निर्दलीय या छोटे दलों के विधायकों की चांदी हो गयी । इनकी मर्जी के बगैर कोई सरकार नहीं बन सकती थी । लिहाजा हर सरकार में इनकी ही चली । चार साल में चार सरकारें बनीं और हर सरकार में निर्दलीय हावी रहे । यहां तक कि इसी दौर में एक निर्दलीय मधु कोड़ा ने कांग्रेस, झामुमो और राजद के समर्थन से लगभग दो साल तक सरकार चलाने का विश्व रिकॉर्ड बनाया । महत्वपूर्ण और मलाईदार विभागों के मंत्री पद पर बैठे निर्दलीयों की मनमानी और खुलेआम भ्रष्टाचार के किस्से सामने आते रहे । इन पर अंकुश लगाने वाला कोई नहीं था ।
इन निर्दलीय पूर्व मंत्रियों ने दलबदल कानून की भी धज्जियां उड़ायी है । लेकिन सवा चार साल में झारखंड विधानसभा के स्पीकर दलबदल संबंधी एक भी मुकदमे का फैसला नहीं कर सके । कारण यह कि हर सरकार के लिए निर्दलीय ही जीवनशक्ति रहे हैं ।पाप का घड़ा फूटता ही है । इसका श्रेय न्यायपालिका को मिला । कुमार विनोद नामक एक सामाजिक कार्यकर्ता की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान निगरानी की विशेष अदालत ने दो पूर्व मंत्रियों एनोस एक्का व हरिनारायण राय की गिरफ्तारी के वारंट निर्गत किये । इसके एक सप्ताह के भीतर पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा तथा तीन पूर्व मंत्रियों कमलेश सिंह, बंधु तिर्की और भानु प्रताप शाही के खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज कर ली गयी । राजीव शर्मा नामक एक नागरिक की याचिका पर निगरानी अदालत ने यह आदेश दिया । राज्य के कई अन्य मंत्रियों के खिलाफ गंभीर आरोपों से संबंधित याचिकाएं भी अदालतों में लंबित हैंं । देर-सबेर ऐसे अन्य राजनेताओं को भी कानून की गिरफ्त में आना होगा । पूर्व मुख्यमंत्री एवं सिंहभूम क्षेत्र के निर्दलीय सांसद मधु कोड़ा पर आय से अधिक संपत्ति रखने के गंभीर आरोप हैं । उन पर 16 कपंनियां बनाने, करोड़ों की जमीन खरीदने का आरोप है । श्री कोड़ा के मुख्यमंत्रित्वकाल में ही ऐसे आरोपों पर कोहराम मचा था । श्री कोड़ा के दो व्यावसायिक पार्टनर विनोद सिन्हा और संजय चौधरी का नाम खूब उछला था । इन दोनों के साथ मिलकर श्री कोड़ा द्वारा अपने पद का दुरूपयोग करके व्यावसायिक हित पूरे करने और अकूत संपत्ति इकट्ठा करने के गंभीर आरोप लगे । श्री कोड़ा मुख्यमंत्री होने के साथ ही खान एवं भूतत्व विभाग के भी प्रभारी थे । लौह-अयस्क तथा अन्य खनिजों की खदान आवंटित करने की प्रक्रिया पर सवाल उठते रहे । कुछ स्टील कंपनियों को खरीद लेने या लौह अयस्क देने के बदले कंपनी में पार्टनर बना लेने जैसे प्रस्ताव भी चर्चा में रहे । इन आरोपों की जांच कभी नहीं हुई । अब निगरानी विभाग द्वारा मामला दर्ज किये जाने के बाद कई कारनामों से पर्दा हटने की संभावना जतायी जा रही है । पूर्व जल संसाधन मंत्री कमलेश कुमार सिंह पर रांची में कई जगहों पर अपने रिश्तेदारों के नाम पर करोड़ों के प्लॉट खरीदने तथा दोनों पुत्रियों की शादी में करोड़ों रुपये खर्च करने का आरोप है । पूर्व स्वास्थ्य मंत्री भानु प्रताप शाही पर नामकुम के खिजरी ब्लॉक में 20 एकड़ जमीन खरीदने का आरोप है । पूर्व शिक्षा मंत्री बंधु तिर्की पर दिल्ली में नागार्जुना कंस्ट्रक्शन द्वारा निर्मित आठ करोड़ का फ्लैट और बनहौरा में 100 एकड़ जमीन सहित राजधानी में करोड़ों की बेनामी संपत्ति खड़ी करने का आरोप है ।निगरानी विभाग कई महीनों से दो पूर्व मंत्रियों एनोस एक्का और हरिनारायण राय के पास आय से अधिक संपत्ति की छानबीन में जुटा था । विभाग को मिले प्रमाणों के अनुसार हरिनारायण राय के पास आय से 1.16 करोड़ रुपये तथा एनोस एक्का के पास आय से 3.73 करोड़ अधिक संपत्ति है । दोनों पूर्व मंत्रियों के बैंक एकाउंट में करोड़ोें रुपये के लेन-देन की प्रविष्टियां दर्ज हैं । दोनों मंत्रियों ने धन कमाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी । जिस विभाग में मंत्री रहे, उसी विभाग में काम करने के लिए अपनी पत्नियांे के नाम से ठेका व कंस्ट्रक्शन कपंनियां बना लीं । निगरानी के शिकंजे में आने के बाद एनोस एक्का ने अपनी पत्नी की आय 1.32 करोड़ रुपये बताई । इसके लिए उन्होंने आयकर विभाग को 50 लाख रुपये टैक्स का भी भुगतान किया । जब निगरानी विभाग ने इतनी भारी कमाई और इतना टैक्स भुगतान के संबंध में विवरण मांगा, तो पूर्व मंत्री संतोषप्रद जवाब नहीं दे सके । दोनों पूर्व मंत्रियों द्वारा कई भूखंड खरीदने और आलीशान मकान बनाने के भी सबूत मिले । इनकी कीमत और लागत वास्तविक राशि की अपेक्षा कोड़ियों में बताई गई । लाखों रुपये का लेन-देन नकद में किया गया । पूर्व मंत्री हरिनारायण राय द्वारा रांची के हरमू रोड में बनाये जा रहे आलीशान मकान की भी लागत बेहद कम बताई गई । यहां तक कि इस मकान के निर्माण में दूसरों का पैसा लगा होने की बात कह कर पूर्व मंत्री ने बचाव का प्रयास किया ।पूर्व मंत्री बंधु तिर्की ने याचिकाकर्ता कुमार विनोद के खिलाफ एससी-एसटी थाने में प्राथमिकी दर्ज कराकर मामले को नया मोड़ देने की कोशिश की । उनका आरोप है कि कुमार विनोद ने उन्हें आदिवासी क्षेत्र में काम करना छोड़ देने की धमकी दी है । इस आरोप को कुमार विनोद ने आधारहीन बताते हुए कहा है कि पूर्व मंत्री एससी-एसटी एक्ट का दुरूपयोग कर रहे हैं । झारखंड के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री भानु प्रताप शाही के खिलाफ निगरानी की विशेष अदालत में एक और मामला दर्ज हुआ है । बोकारो निवासी डॉ राजकुमार शर्मा के शिकायतवाद में मंत्री तथा कई अधिकारियों पर आयुष चिकित्सकों की नियुक्ति में 10 करोड़ की संपत्ति अर्जित करने का आरोप लगाया गया है । डॉ श्ार्मा के अनुसार निगरानी विभाग को इस घपले के बारे में पहले से ही पर्याप्त जानकारी होने के बावजूद अब तक कार्रवाई नहीं की गयी है । वर्ष 2000 में अलग राज्य बनने के बाद से ही झारखंड मंे शीर्ष पदों पर बैठे राजनेताओं तथा अधिकारियों द्वारा खुलेआम भ्रष्टाचार के किस्से सामने आते रहे । सरकारी खर्चों का लेखा-जोखा देखनेवाले महालेखाकार ने भी अंकेक्षण के दौरान गंभीर सवाल उठाये । ज्यादातर सवाल अनसुने रह गये । विधानसभा में भी इन अनियमितताओं पर चिंता सामने आयी । लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकला । निगरानी विभाग के पास अकाट्य प्रमाण होने के बावजूद राजनीतिक कारणों से फाइलें दबी रहीं । अब नागरिकों की याचिका पर अदालतों के हस्तक्षेप ने कुछ सत्ताधारियों को कानून के शिकंजे में ले लिया है । इससे नागरिक समाज को एक नयी उम्मीद जगी है । हालांकि यह सवाल भी उठ रहे हैं कि हर मामले में अदालत के हस्तक्षेप की जरूरत क्यों पड़ रही है? हमारी कार्यपालिका और विधायिका ऐसे मामलों पर स्वयं गतिशील नहीं रहे और हर मामले में अदालत के हस्तक्षेप की जरूरत पड़े तो लोकतांत्रिक प्रणाली बेमानी हो जायेगी। झारखंड के लिए ऐसे सवाल फिलहाल खास महत्व नहीं रखते क्योंकि यहां फिलहाल खेत को बाड़ से ही खतरा है ।

रविवार, 12 जुलाई 2009

नेताओं पर कसता फंदा
संडे नई दुनिया, 12 जुलाई 2009

गुरुवार, 9 जुलाई 2009

जागो ग्राहक, सोयेगी सरकार

विष्णु राजगढ़िया
डीडी वन पर आजकल एक विज्ञापन आ रहा है। इसमें एक युवक इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर लेता है। इसके बाद उसे पता चलता है कि उसकी डिग्री फरजी है क्योंकि उस संस्थान को सरकारी मान्यता नहीं मिली है। विज्ञापन का संदेश है- जागो ग्राहक जागो। इसमें यह भी सलाह दी गयी है कि ऐसे किसी संस्थान में नामांकन कराने से पहले उसकी मान्यता की जांच अवश्य कर लें।
सलाह अच्छी है। जागो ग्राहक जागो ताकि ठाठ से सोती रहे सरकार। ग्राहकों का जागृत एवं सचेत रहना जरूरी है लेकिन उनकी जानकारी और चेतना की अपनी सीमा है। आम ग्राहक के लिए किसी चीज की तहकीकात की भी अपनी सीमा है। जबकि सरकारी एजेंसियांे के पास हर मामले में विशेषज्ञता के साथ ही जांच-पड़ताल की भी असीमित क्षमता है। जिन चीजों में ग्राहक को ठगा जाता है, उन चीजों पर सरकारी एजेंसियां खुद नजर रखें तो काफी बड़ा फर्क आ सकता है।
मामला इंजीनियरिंग की फरजी डिग्री से जुड़ा है। आजकल विभिन्न् तकनीकी शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में नामाकंन के ऐसे विज्ञापनों एवं दावों की भरमार मिलती है जिनमें इन्हें मान्यताप्राप्त बताया जाता है। आम विद्यार्थियों एवं आम अभिभावकों के लिए यह बेहद मुश्किल है कि वे ऐसे दावों की तहकीकात करके किसी नतीजे तक पहुंच सकें। अगर सरकारी एजेंसियां ऐसे विज्ञापनों एवं दावों पर नजर रखें और गलत दावे करने वालों की धरपकड़ शुरू कर दें तो इस समस्या का नामोनिशान मिट सकता है।
गत 21 जून 2009 को रांची के एक अखबार में कैम्ब्रिज औद्योगिक प्रशिक्षण केंद्र का एक विज्ञापन आया। इसमें छह प्रकार के तकनीकी पाठ्यक्रमों में नामाकंन के लिए आवेदन मांगे गये थे। विज्ञापन में इसे श्रम नियोजन एवं प्रशिक्षण विभाग, झारखंड सरकार द्वारा अनुमोदित बताया गया। इसके तीन दिन बाद झारखंड सरकार के श्रम नियोजन एवं प्रशिक्षण विभाग का विज्ञापन आया कि उक्त केंद्र को कोई मान्यता नहीं दी गयी है। इसमें यह भी कहा गया कि अगर कोई विद्यार्थी इसमें नामांकन करायेगा तो इसकी जिम्मेवारी झारखंड सरकार की नहीं होगी।
झारखंड सरकार ने एक विज्ञापन देकर अपनी जिम्मेवारी से पीछा छुड़ा लिया। संभव है कि इसके बाद भी उक्त संस्थान द्वारा नामांकन करके विद्यार्थियों को फरजी डिग्री दी जाये। यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि सभी विद्यार्थियों और अभिभावकों ने झारखंड सरकार के इस विज्ञापन को देख लिया हो। सरकार का दायित्व तो ऐसे संस्थानों पर नकेल कसना होनी चाहिए जो सरकार की मान्यता होने का खुलेआम झूठा दावा करके विज्ञापन दे रहे हैं और विद्यार्थियों को बेवकूफ बना रहे हैं। लेकिन फिलहाल तो सरकार ग्राहकों को जगाने में लगी है ताकि खुद सोयी रह सके।

मंगलवार, 7 जुलाई 2009

इंटरनेट का रंग लाल
विष्णु राजगढ़िया
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केंद्र सरकार ने देश के प्रमुख नक्सली संगठन भाकपा (माओवादी) पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसका नक्सलियों की गतिविधियों पर कोई असर नहीं आया है क्योंकि यह पहले से ही एक भूमिगत संगठन है। दिलचस्प यह कि हाल के वर्षों में माओवादियों ने अपने विचारों एवं सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए आधुनिक संचार माध्यमों खासकर इंटरनेट का भरपूर उपयोग किया है। तथ्य बताते हैं कि अन्य राजनीतिक संगठनों की तुलना में नक्सलियों के लिए इंटरनेट काफी महत्वपूर्ण संचार माध्यम साबित हुआ है। अब बेबसाइट्स और बड़ी संख्या में ब्लॉग्स के जरिये नक्सली अपनी खबरों को तत्काल दुनिया भर में पहुंचा रहे हैं।
पहले नक्सली संगठनों के लिए सूचनाओं और विचारों के प्रसार के लिए मुखपत्र और न्यूज बुलेटिन पर निर्भर रहना पड़ता था। यह काफी खर्चीला और श्रमसाध्य होने के साथ ही काफी समय लगने वाला काम था। ऐसे मुखपत्रों के वितरण में काफी जटिलता होती थी। इन्हें रखना भी काफी खतरनाक माना जाता था। अगर किसी व्यक्ति के पास ऐसी कोई प्रकाशन सामग्री पकड़ी जाती थी तो उसे नक्सली कार्यकर्ता या समर्थक मान लिया जाता था। अनगिनत नेताओं की गिरफ्तारी सिर्फ इस वजह से हुई कि सफर के दौरान सामान्य सुरक्षा जांच में उनके बैग से नक्सली साहित्य मिला। फिर, नक्सलियों की जीवनशैली मुख्यत: भूमिगत और जल्दी-जल्दी ठिकाना बदलने की है। लिहाजा, मुखपत्रों के नये अंक उन तक पहुंचाना भी एक जटिल काम होता है। ऐसे प्रकाशनों के दौरान प्रिंटिंग प्रेस में पकड़े जाने का भय भी नक्सलियों को सताता है। अब नक्सली नेता दूरदराज के गांवों, पहाड़ों में या फिर किसी शहर में, कहीं भी एक कंप्यूटर पर अपनी सामग्री तैयार कर सकते हैं और इंटरनेट के जरिये दुनिया भर के लिए उपलब्ध करा सकते हैं।
इंटरनेट ने इन सारी समस्याओं का एक झटके में समाधान कर दिया है। अब मुखपत्र या न्यूज बुलेटिन निकालने के बजाय इंटरनेट पर किसी बलॉग के माध्यम से मिनटों में पूरी दुनिया में अपनी खबरों और विचारों को पहुंचाया जा रहा है। इंटरनेट पर नजर रखनेवाली एजेंसियां ऐसे ब्लॉग्स की तलाश कर इन्हें निष्क्रिय करती रहती हैं। इससे माओवादियों पर खास फर्क नहीं पड़ता। उनके पास देश और विदेश के माओवादी समर्थक सैकड़ों ब्लॉग्स और वेबसाइट्स हैं। इनके जरिये अपने नये ब्लॉग ठिकाने की सूचना अपने समथकों एवं कार्यकर्त्ताओं तक पहुंचा दी जाती है।
पश्चिम बंगाल के लालगढ़ में नक्सल विरोधी कार्रवाई के दौरान इंटरनेट का लाल रंग ताजा उदाहरण है। इस दौरान माओवादियों ने विभिन्न् मीडिया में आयी खबरों, अपने विचारों एवं सूचनाओं के प्रसार में इंटरनेट का जबरदस्त उपयोग किया। 'पिपुल्स ट्रूथ नामक ब्लॉग ने पांच जून 2009 को अपने बुलेटिन संख्या पांच में लालगढ़ पर लंबी रिपोर्ट प्रकाशित की। 'मास अपराइजिंग इन लालगढ़ शीर्षक यह रिपोर्ट बताती है कि किस तरह लालगढ़ में जनउभार की स्थिति आ गयी है। इस ब्लॉग के संपादक पी गोविंदन कुट्टी हैं। ब्लॉग का ध्येयवाक्य है- 'जहां अन्याय हो, वहां विद्रोह ही न्याय है। मानवता के अपमान का एकमात्र जवाब है- क्रांति।
'पिपुल्स मार्च नामक ब्लॉग पर 23 जून को माओवादियों का यह बयान जारी किया गया है कि केंद्र सरकार द्वारा लगाये गये प्रतिबंध का उन पर कोई असर नहीं होगा। इसी ब्लॉग पर इसी दिन एक प्रमुख अंग्रेजी दैनिक की एक लंबी रिपोर्ट प्रसारित की गयी जिसमें माओवादियों ने लालगढ़ की आग को पूरे देश में फैला देने की घोषणा की। जेएनयू के विद्यार्थियों की एक टीम द्वारा लालगढ़ दौरे पर आधारित रिपोर्ट भी इस ब्लॉग पर पढ़ने को मिली। लालगढ़ प्रकरण पर मीडिया में आयी प्रमुख खबरों, तसवीरों एवं आडियो-विजुअल क्लिप्स को इस वेबसाइट पर संकलित किया गया है।
एक अन्य ब्लॉग 'रिवोल्यूशन इन साउथ एशिया में 13 जून 2009 को लालगढ़ प्रकरण से जुड़ी विभिन्न् खबरों एवं इसकी पृष्ठभूमि की जानकारी देने वाली सामग्रियों का लिंक दिया गया है। किसी भी लिंक पर माउस क्लिक करने से इंटरनेट पर इससे जुड़े पेज खुल जायेंगे। इसी ब्लॉग पर 16 जून को बीबीसी द्वारा प्रसारित एक खबर के आडियो-वीडियो क्लिप का लिंक दिया गया है। यह खबर लालगढ़ में माओवादियों द्वारा सीपीएम कार्यालय पर कब्जा और घरों में आग लगाये जाने संबंधी है।
इसी ब्लॉग पर सीपीएसए नामक पाठक ने सन्हाती डॉट कॉम पर लालगढ़ के संदर्भ में सरोज गिरि के एक लंबे लेख के प्रकाशन की सूचना दी है। इसमें उक्त पाठक की सलाह है कि माओवादियों तथा लालगढ़ में दिलचस्पी रखने वालों को उक्त वेबसाइट लगातार देखनी चाहिए। अन्य ब्लॉग्स की तरह इस ब्लॉग पर भी देश-विदेश के प्रमुख माओवादी लिंक दिये गये हैं। जाहिर है कि अगर कोई व्यक्ति ऐसे किसी एक वेबसाइट या ब्लॉग पर पहुंच जाये तो अन्य तमाम रास्ते खुलते चले जायेंगे। ऐसे में किसी साइट पर सरकार ने रोक भी लगा दी तो कोई परेशानी नहीं।
सन्हाती डॉट कॉम को खोलते ही लालगढ़ प्रकरण पर 60 से भी अधिक खबरों एवं लेखों का संकलन नजर आता है। इससे संबंधित दर्जनों तसवीरें भी दी गयी हैं। इस वेबसाइट का उद्देश्य खास तौर पर बंगाल के संदर्भ में भारत और विश्व के राजनीतिक अर्थशास्त्र पर समाचारों, विश्लेषण और बहस का मंच मुहैया कराना बताया गया है। इस वेबसाइट पर देश-विदेश के महत्वपूर्ण माओवादी दस्तावेजों का संकलन है। नक्सलबाड़ी आंदोलन की शुरूआत के दौर में 1967-68 में सीपीआइ-एमएल का मुखपत्र 'लिबरेशन प्रकाशित होता था। इसे सिर्फ हार्डकोर कार्यकर्त्ताओं को उपलब्ध कराया जाता था। लेकिन इस वेबसाइट ने इस मुखपत्र के प्रारंभिक 13 अंकों को पीडीएफ फाइल के रूप में अपने अभिलेखागार में डाल दिया है। इस तरह जहां पहले नक्सली विचारों की सामग्री सिर्फ हार्डकोर कार्यकर्त्ताओं को बमुश्किल उपलब्ध हो पाती थी, वहीं अब कोई भी व्यक्ति किसी भी वक्त इंटरनेट पर पुराने व नये दस्तावेज हासिल कर सकता है।
एक वेबसाइट है- 'बैन्ड-थाउट डॉट नेट। इसका मकसद दुनिया भर के उन प्रगतिशील विचारों को सामने लाना है जिन्हें प्रतिबंधित कर दिया गया हो। इसमें भाकपा (माओवादी) के अलावा नेपाल से जुड़े दस्तावेजों, बयानों को प्रस्तुत किया जाता है। इसमें 'पिपुल्स मार्च पत्रिका तथा 'पिपुल्स ट्रूथ बुलेटिन का भी लिंक दिया गया है।
'पिपुल्स मार्च वेबसाइट पर वर्ष 2007 में केंद्र सरकार ने रोक लगा दी थी। इसके संपादक पी गोविंदन कुट्टी को दिसंबर 2007 में गिरफ्तार कर लिया गया था। उन्हें फरवरी 2008 में रिहा किया गया। इसके जवाब में माओवादियों का एक नया ब्लॉग बना लिया-'आजाद हिंद। इसमें बताया गया है कि सरकार द्वारा 'पिपुल्स मार्च वेबसाइट को रोक दिये जाने के कारण यह ब्लॉग शुरू किया गया है। ब्लॉग कहता है कि सरकार यह समझने में पूरी तरह विफल रही है कि नक्सलवाद क्यों बढ़ रहा है। इसे महज कुछ बेरोजगारों की करतूत समझा जा रहा है जबकि इस लोकतंत्र से हताश होकर बड़ी संख्या में शिक्षित लोग नक्सल आंदोलन से जुड़ रहे हैं। इसी टिप्पणी में यह भी कहा गया है कि एक वेबसाइट को प्रतिबंधित करने के जवाब में बड़ी संख्या में नक्सल समर्थक ब्लॉग सामने आ गये हैं तथा इनके पाठकों की तादाद बढ़ती जा रही है।
'नक्सल रिवोल्यूशन नामक एक चर्चित ब्लॉग को बनाने का उद्देश्य यह बताया गया है कि परंपरागत मीडिया द्वारा प्रगतिशील विचारों एवं खबरों को सामने नहीं लाया जाता तथा क्रांतिकारी माओवादियों को उग्रवादी और ठग के बतौर पेश किया जाता है। इस ब्लॉग में माओवादियों के बारे में कुछ प्रसिद्ध हस्तियों के चौंकाने वाले बयान संकलित किये गये हैं। इस ब्लॉग में पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय वीपी सिंह का कथन है- 'अगर विकास का यही मॉडल है तो मैं भी नक्सली बनना चाहता हूं हालांकि अब इस उम्र में ऐसा नहीं कर सकता। इसमें पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस कहते हैं- 'जल्द ही दिल्ली में नक्सली झंडे लहरायेंगे। इसी तरह, योग गुरू पंडित रविशंकर कहते हैं- 'नक्सली अच्छे इंसान हैं जिनमें देश के लिए काफी त्याग और संकल्प की भावना है। वे ऐसे काम कर सकते हैं जो दूसरे नहीं कर सकते।
दिलचस्प यह कि कुछ ब्लॉग ऐसे भी हैं जो माओवादियों के खिलाफ खबरों एवं विचारों का संकलन करते हैं। इनमें प्रमुख है- 'नक्सल टेरर वॉच। इसमें नक्सली हिंसा से जुड़ी खबरों, नक्सलियों के खिलाफ पुलिस व अर्द्धसैनिक बलों के अभियान तथा नक्सल विरोधी बयान प्रस्तुत किये जाते हैं।
अब एक एडिटर को मैनेजर की तरह भी काम करना होगा
प्रभात खबर के प्रधान संपादक हरिवंश से विष्णु राजगढ़िया की बातचीत
मीडिया विमर्श ( मार्च - मई, 2007)

आधी से ज्यादा राशि नहीं हो पाएगी इस्तेमाल
रांची से विष्णु राजगढ़िया

वेब दुनिया

सूचना अधिकार से समृद्ध हुई पत्रकारिता
विष्णु राजगढ़िया
मीडिया विमर्श (दिस.06 - फर.07)
एक संपादक के बतौर रघुवीर सहाय
विष्णु राजगढ़िया
मीडिया विमर्श ( मार्च - मई, 2007)

बजट पर प्रतिक्रिया
अधिकारियों पर कार्रवाई का आदेश
नई दुनिया 07.07.09

रविवार, 5 जुलाई 2009

इंटरनेट का रंग लाल
नई दुनिया पत्रिका पांच जुलाई 2009

गुरुवार, 2 जुलाई 2009

चारा घोटाला: 25 व्यक्तियों को सजा
नई दुनिया 2 जुलाई 2009 पेज सात
मधु कोड़ा पर प्राथमिकी का आदेश
नई दुनिया 2 जुलाई 2009 पेज सात