रविवार, 30 अगस्त 2009

कॉमनवेल्थ गेम के लिए बिजली मिलना मुश्किल
विष्णु राजगढ़िया
रांची : दिल्ली में कामनवेल्थ गेम्स 2010 के लिए बिजली मिलने की राह मुश्किल होती जा रही है। गेम के लिए 2500 मेगावाट बिजली देने का दायित्व डीवीसी पर है। इसके लिए डीवीसी कई नयी विद्युत परियोजनाओं पर बरसों से काम कर रहा है। लेकिन डीवीसी के अध्यक्ष की कुरसी खाली होने के कारण सभी परियोजनाएं लगातार पिछड़ती जा रही है। समझा जाता है कि कामनवेल्थ गेम के समय तक डीवी अपनी परियोजनाएं पूरी नहीं कर सकेगा। ऐसे में कामनवेल्थ गेम के ऐन मौके पर बिजली के लिए तरसना पड़ सकता है। ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स एसोसिशन के अध्यक्ष पद्मजीत सिंह ने आज प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में इन तथ्यों की विस्तृत जानकारी दी है। पत्र के अनुसार चंद्रपुरा की सात नंबर यूनिट को 31 अगस्त 2009 तक 250 मेगावाट बिजली के उत्पादन का लक्ष्य दिया गया था, लेकिन वहां अब भी काम अधूरा होने के कारण यह लक्ष्य पूरा नहीं हो पायेगा। मालूम हो कि चंद्रपुरा यूनिट नंबर सात एवं आठ को जनवरी 2007 में ही 250-250 मेगावाट बिजली उत्पादन करना था। लेकिन उर्जा मंत्रालय उसे बार-बार अवधि विस्तार देता आया है। हर बार उसे असफलता हासिल लगी। इस बार फिर अवधि बढ़ाने की नौबत आ गयी है। पत्र में पद्मजीत सिंह ने लिखा है कि चंद्रपुरा बिजली परियोजना में हुआ विलंब महज इस बात का संकेत है कि अन्य परियोजनाओं का क्या हश्र होने जा रहा है। पत्र के अनुसार डीवीसी की रघुनाथपुर, कोडरमा, मेजिया-2 तथा दुर्गापुर परियोजनाएं भी काफी पिछड़ गयी हैं।डीवीसी में अध्यक्ष का पद दिसंबर 2008 से खाली है। जून 2009 में नये अध्यक्ष के बतौर श्रीमत पांडेय का चयन हुआ था। वह राजस्थान में मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव हैं। राजस्थान सरकार द्वारा विमुक्त नहीं किये जाने के कारण वह डीवीसी में कार्यभार नहीं संभाल पाये हैं। अध्यक्ष की अनुपस्थिति में डीवीसी की सारी परियोजनाएं पिछड़ गयी हैं। इस संबंध में डीवीसी इंजीनियर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष एके जैन ने दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को भी पत्र भेजा है। श्री जैन ने अध्यक्ष के अभाव में कामनवेल्थ गेम के लिए बिजली मिलना मुश्किल होने की सूचना देते हुए श्रीमती दीक्षित से इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप का आग्रह किया है। श्री जैन के अनुसार अगर अध्यक्ष की नियुक्ति के लिए नये सिरे से प्रक्रिया शुरू की गयी तो और छह महीने लग जायेंगे तथा सारी परियोजना काफी पीछे चली जायेंगी।

गुरुवार, 20 अगस्त 2009

पचास नागरिकों को मिलेगा आरटीआइ सिटिजन अवार्ड
रांची: सूचना कानून की चैथी वर्षगांठ पर झारखंड के पचास नागरिकों को आरटीआइ सिटिजन अवार्ड दिया जायेगा। झारखंड आरटीआइ फोरम और सिटिजन क्लब ने यह आयोजन किया है। इसके लिए नामांकन 15 सितंबर तक आमंत्रित हैं। झारखंड का कोई नागरिक स्वयं अपने लिए अथवा किसी अन्य के लिए नामांकन भेज सकता है। इसके लिए सूचना कानून के तहत किये गये कार्यों, सफलता के विवरण एवं संबंधित दस्तावेजों की फोटो कापी के साथ अपना पूरा पता, फोन नंबर, ईमेल पता इत्यादि भेजना होगा। यह घोषणा झारखंड आरटीआइ फोरम के अध्यक्ष बलराम एवं सचिव विष्णु राजगढ़िया ने की है।
नामांकन भेजने का पता है-
झारखंड आरटीआइ फोरम, 4-सी, घराना पैलेस, संध्या टावर, पुरलिया रोड, रांची।
विशेष जानकारी आरएन सिंह से 9430246440 नंबर पर मिलेगी।
rtistory.blogspot.com तथा rti.net.in पर भी जानकारी मिलेगी।
ई-मेल पता है- rtistory@gmail.com

सोमवार, 3 अगस्त 2009

नेता-अफसर-व्यवसायी व बिचौलिया गठजोड़ का नमूना है चारा घोटाला
राणा को सजा से राजद का संकट बढ़ा
विष्णु राजगढ़िया
रांची : देश का सबसे बड़ा चारा घोटाला एक बार फिर चर्चा में आ गया है। रांची में सीबीआइ विशेष अदालत ने 14 लोगों को सजा सुनायी है। इनमें राजनेता, अधिकारी, व्यवसायी और बिचौलिये शामिल हैं। इस फैसले ने पिछले दो दशकों में विकास राशि की लूट में इस चौकड़ी की भूमिका को उजागर कर दिया है।
पंद्रह साल पहले बिहार में 950 करोड़ का यह घोटाला पकड़ में आया था। इस मामले की जांच कर रही सीबीआइ के आरोपपत्रों, गवाहों के बयानों एवं अदालत के आदेशों से यह बात स्पष्ट तौर पर सामने आयी है कि पशुपालन विभाग के कतिपय अधिकारियों ने कुछ आपूर्तिकर्ताओं के साथ गंठजोड़ करके लंबे अरसे तक बेजुबान पशुओं के हक पर डाका डाला।
इसमें कुछ बिचौलियों की अहम भूमिका रही जिन्होंने घोटालेबाजों को राजनीतिक संरक्षण दिलाकर घोटाले का आकार और विस्तार बढ़ा दिया। यहां तक कि डॉ आरके राणा जैसे बड़े बिचौलिये बाद में खुद राजनेता बन बैठे। चारा घोटाले की मेहरबानी से लालू प्रसाद ने उन्हें पहले विधायक, फिर सांसद बनने का नायाब अवसर दिया।
दूसरी ओर, लालू यादव के खास करीबी एवं राजद के पूर्व सांसद डॉ आरके राणा को दोषी करार दिये जाने के साथ ही राजद का संकट बढ़ गया है। इसका गहरा असर झारखंड में आगामी विधानसभा चुनावों पर पड़ने की संभावना जतायी जा रही है। झारखंड में कांग्रेस, झामुमो और वाम दलों ने पहले ही राजद को अलग-थलग कर रखा है। हाल के दिनों में झाविमो ने राजद की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया है। लेकिन पशुपालन घोटाला एक बार फिर चर्चा में आ जाने तथा लालू-जगन्न्ाथ से जुड़े तीन मामलों में गवाही तेज हो जाने के कारण राजद को राजनीतिक अलगाव के खतरे से जूझना पड़ सकता है।
पहली बार किसी राजनेता को पशुपालन घोटाले में दोषी करार दिये जाने के बाद लालू यादव और डॉ जगन्न्ाथ मिश्र के राजनीतिक भविष्य को लेकर आकलन किये जा रहे हैं।
भारत के सबसे बड़े पशुपालन घोटाले के 32 मामलों में 740 अभियुक्तों को सजा सुनायी जा चुकी है। लालू यादव एवं जगन्न्ाथ मिश्र से जुड़े पांच मामलों की सीबीआइ अदालत में सुनवाई चल रही है। इन पर पशुपालन अधिकारियों एवं आपूर्तिकर्त्ताओं के साथ मिलीभगत करके दुमका, देवघर, चाइबासा एवं डोरंडा स्थित कोषागारों से लगभग 250 करोड़ रुपयों की अवैध निकासी का आरोप है।
फिलहाल डॉ राणा को सजा सुनाये जाने के साथ ही सबकी नजर लालू-जगन्न्ाथ से जुड़े पांचों मामलों पर है। इनमें से किसी एक मामले पर भी सजा सुनाये के साथ ही राजद का राजनीतिक संकट काफी गहरा हो जायेगा। इस आशंका ने झारखंड राजद के नेताओं और विधायकों को चिंता में डाल दिया है। हालांकि इस मामले पर टिप्पणी करने से सब बच रहे हैं।
Fodder Scam / Vishnu Rajgadia / Nai Dunia / 03-08-2009
भूख के खिलाफ एक कानून
विष्णु राजगढ़िया
भारतीय संविधान के 21 वें अनुच्छेद में हर नागरिक को जीने का अधिकार मिला हुआ है। लेकिन जिस व्यक्ति के पास जीने के लिए जरूरी साधन न हो और जो भूख से मरने के लिए मजबूर हो, उसके बारे में अब तक कोई स्पष्ट कानून नहीं है। भूख से मौत की जटिल परिभाषा के कारण बड़ी संख्या में ऐसी ज्यादातर मौतें रिकॉर्ड में नहीं आ पातीं। अब खाद्य सुरक्षा कानून के रूप में पहली बार भारत सरकार हर इंसान को जिंदा रहने के लिए जरूरी खाद्यान्न् उपलब्ध कराने का दायित्व स्वीकारने जा रही है। यह कोई योजना नहीं, बल्कि एक कानून होगा। इस लिहाज से इसे सामाजिक कल्याण के एक बड़े कदम के बतौर देखा जा रहा है।
कांग्रेस ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में खाद्य सुरक्षा कानून बनाने का वादा किया था। पहली पारी में मनमोहन सरकार ने नरेगा और सूचना का अधिकार कानून बनाकर एक प्रगतिशील छवि बनाने में जबरदस्त सफलता पाई थी। कांगेस की सफलता के पीछे इन दोनों कानूनों का बड़ा हाथ माना जा रहा है। अब दूसरी पारी में मनमोहन सरकार खाद्य सुरक्षा कानून लाकर एक बड़ी लकीर खींचना चाहती है। इसे सौ दिनों के अंदर किये जाने वाले कार्यों की सूची में रखा गया है। केंद्रीय बजट में भी इसका प्रावधान देखा गया।
हालांकि भारत में खाद्य सुरक्षा संबंधी मौजूदा सुविधाओं और प्रावधानों का श्रेय किसी राजनीतिक दल को नहीं जाता। पीयूसीएल की राजस्थान इकाई ने वर्ष 2001 में भोजन के अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। उस वक्त देश के गोदामों में भरपूर अनाज होने के बावजूद देश के विभिन्न् हिससों से भूख से मौत की खबरें आ रही थीं। इस याचिका के साथ ही भोजन के अधिकार को लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं की पहल पर हाल के वर्षों में सर्वोच्च न्यायालय ने महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किये। आज भी सुप्रीम कोर्ट के प्रत्यक्ष देख-रेख में भी खाद्य सुरक्षा संबंधी सीमित व्यवस्था लागू है। इसमें बच्चों के लिए स्कूल में दोपहर का भोजन, आईसीडीसी और आंगनबाड़ी में मिलनेवाली खाद्य सामग्री प्रमुख है।
फिलहाल खाद्य सुरक्षा कानून के स्वरूप को लेकर विचार-विमर्श जारी है। इस दिशा में सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि इस कानून के निर्माण की प्रक्रिया पर सिविल सोसाइटी को तीक्ष्ण नजर रखते हुए ठोस हस्तक्षेप करना चाहिए ताकि एक मुकम्मल कानून बन सके। इस कानून की मूल भावना भारत में रहने वाले हर व्यक्ति के लिए सम्मानपूर्वक एक सक्रिय एवं स्वस्थ जीवन जीने के लिए उपयुक्त खाद्य आवश्यकता उपलब्ध कराना बताई जाती है। इन खाद्य जरूरतों को पर्याप्त मात्रा में तथा पोष्टिक और सांस्कृतिक तौर पर अनुकूल होने और भौतिक, आर्थिक एवं सामाजिक तौर पर इसकी उपलब्धता सुनिश्चित करना आवश्यक बताया जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा मध्याह्न भोजन के लिए नियुक्त किये गये कमिश्नर के सलाहकार बलराम के अनुसार मौजूदा सभी योजनाओं का लाभ इस कानून में अवश्य शामिल किया जाना चाहिए। साथ ही, इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के सभी आदेशों के अनुकूल प्रावधान भी शामिल किये जाने चाहिए। इसके अंतर्गत सभी सरकारी एवं वित्त प्रदत्त स्कूलों में पकाया हुआ गर्म एवं पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने, छह साल तक बच्चों को आइसीडीएस की सुविधाएं और प्राथमिकता वाले समूहों को अंत्योदय की सुविधाएं उपलब्ध कराना शामिल है। जो सामाजिक समूह अब तक किसी योजना में शामिल नहीं हैं, उनके लिए भी खाद्यान्न् सुनिश्चित करने का प्रावधान किये जाने की मांग की जा रही है। जैसे, शहरी गरीब और स्कूल नहीं जाने वाले बच्चे। भूख से मौत की ओर उन्मुख आबादी की खाद्य सुरक्षा के लिए सरकार से सक्रिय होने की इस कानून में अपेक्षा की जा रही है। इसमें धनी वर्ग को छोड़कर देश में रहने वाले सभी लोगों को जनवितरण प्रणाली के तहत प्रति परिवार 35 किलो अनाज प्रति माह तीन स्र्पये की दर से करने का प्रावधान होने की संभावना है। कमजोर समूहों को अनुदानित दर पर तेल एवं दाल, घी उपलब्ध कराने की मांग की जा रही है।
कुछ लोगों ने खाद्यान्न् के बदले गरीबों और बच्चों को नगद राशि देने का सुझाव दिया है। लेकिन सामाजिक कार्यकर्ता इनसे सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि खाद्यान्न् का विकल्प खाद्यान्न् ही हो सकता है, नगद नहीं। फिर, नगद पर पुस्र्षों का अधिकार होता है, जबकि अनाज पर महिलाओं का अधिकार होता है। इस कानून में खाद्यान्न् से संबंधित मामलों में महिलाओं को घर का मुखिया मानने का प्रावधान करने का सुझाव दिया जा रहा है।
हमारे देश में विभिन्न् सामाजिक कल्याण संबंधी योजनाओं में कॉरपोरेट घरानों और ठेकेदारों की घुसपैठ होती रही है। इस कानून में इसे रोकने के सख्त उपाय की मांग की जा रही है। साथ ही, शिकायतों पर कार्रवाई की सुदृढ़ व्यवस्था, कानून की अवहेलना करने वाले अधिकारियों को दंड और इसके कारण वंचित लोगों को समुचित मुआवजा देना भी कानून का अनिवार्य अंग होना चाहिए। इस कानून में खाद्यान्न् उत्पादन को बढ़ावा देने तथा सभी क्षेत्रों में खाद्यान्न्ों में प्राप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने संबंधी स्पष्ट प्रावधान हो।खाद्य सुरक्षा कानून में कई अन्य जटिलताओं को ध्यान में रखना जरूरी है। एक बड़ी जटिलता गरीबी रेखा से नीचे के लोगों को चिह्नित करना, इनकी मुकम्मल सूची तैयार करना और समय-समय पर इसका संशोधन करना है। बीपीएल सूची के लिए नये मापदंड बनाने की जरूरत महसूस की गई है। फिर, इस संख्या के अनुपात में राशि का आवंटन करना भी एक बड़ी चुनौती होगी। इसके अलावा वितरण की समस्या को सबसे बड़ी चुनौती के रूप में देखा जा रहा है। अब तक का अनुभव बताता है कि केंद्रीय योजनाओं का लाभ नीचे तक नहीं पहुंच पाता तथा योजनाओं के बावजूद लोगों की जिंदगी पर कोई स्पष्ट दिखने वाला फर्क नजर नहीं आता। अब तक चल रही जन वितरण प्रणाली का हाल किसी से छुपा नहीं है।
ऐसे में खाद्य सुरक्षा कानून के लिए बड़ी चुनौती इसका लाभ वास्तविक लोगों तक पहुंचाने के लिए मुकम्मल वितरण व्यवस्था तैयार करनी होगी। यही कारण है कि कृषि राज्य मंत्री केवी थॉमस ने इस कानून को नरेगा से भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण करार दिया है। इस कानून के मसविदा दस्तावेज में बीपीएल के अलावा कई अन्य लाभुक समूहों को तीन स्र्पये की दर से प्रतिमाह 35 किलो अनाज उपलब्ध कराने की बात कही गयी है। इसमें अकेली महिला, लेप्रोसी पीड़ित लोग, एचआइवी या मानसिक रोग ग्रस्त लोग, बंधुआ मजदूर, भूमि हीन कृषि मजदूर, स्वपेशा दस्तकार, कचड़ा चुनने वाले, निर्माण उद्योग से जुड़े मजदूर, फुथपाथ विक्रेता, रिक्शाचालक, घरेलू नौकर इत्यादि शामिल हैं। प्राकृतिक आपदा या सांप्रदायिक दंगे के शिकार लोगों को भी इसका लाभ मिल सकता है। ऐसे बीपीएल परिवारों को दोगुना राशन मिल सकता है, जिनमें छह साल से छोटे बच्चे, किशोरी, गर्भवती स्त्री या बच्चें को दूध पिलाने वाली मां हो। कानून के प्रारूप में हर पांच साल पर सर्वेक्षण करके लाभुकों को पहचान पत्र निर्गत करने की बात कही गई है। वृद्ध लोगों, अकेली महिला तथा विकलांगों को आइसीडीएस केंद्र या स्कूल में मध्याह्न भोजन उपलब्ध कराने की बात कही गई है। मसविदा विधेयक में राज्य सरकार पर जन वितरण प्रणाली द्वारा अनाज की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करने का दायित्व सौंपा गया है। दुकानदारों के चयन में स्थानीय निकाय प्रतिनिधियों की भूमिका होगी तथा इन प्रतिनिधियों के साथ हर तीन महीने पर बैठक के जरीय निगरानी रखी जायेगी। राज्य सरकारों को पूरी जनवितरण प्रणाली दो साल के भीतर कंप्यूटरीकृत कर लेनी होगी। शिकायतें दर्ज कराने के लिए नि: शुल्क टेलीफोन नंबर तथा वेबसाइट की व्यवस्था करनी होगी। सभी शिकायतों का 39 दिनों में निपटारा करके इसे सार्वजनिक रूप से घोषित करना जरूरी होगा। इस कानून का पालन नहीं करने वाले अधिकारियों पर एक महीने पांच साल तक के वेतन लग सकता है। लापरवाह अधिकारियों को भूख से मौत या गंभीर रोगजन्य स्थितियों के लिए छह माह से पांच साल तक जेल की सजा भी दी जा सकती है।
भारत में आज भी भूख और कुपोषण आज बड़ी समस्या है। अटल बिहारी वाजपेयी जब पहली बार प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने कालाहांडी को खाद्यान्न् का कटोरा बनाने का वादा किया था। लेकिन वह कोई ठोस कदम नहीं उठा सके। अब मनमोहन सरकार ने खाद्य सुरक्षा कानून के रूप में एक बड़ी पहल की है। आज भारत में भुखमरी के शिकार लोगों की संख्या 32 करोड़ बताई जाती है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स ने भुखमरी के शिकार 119 देशों की सूची जारी की थी, जिसमें भारत का नाम शामिल है। झारखंड और छत्तीसगढ़ को सबसे ज्यादा खाद्य असुरक्षित राज्य माना जाता है। इनके बाद मध्यप्रदेश, बिहार और गुजरात का नाम आता है। फरवरी 2009 में विश्व खाद्य कार्यक्रम तथा एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन ने ग्रामीण भारत में खाद्य असुरक्षा संबंधी एक रिपोर्ट जारी की थी। इसमें बताया गया कि भारत में कुपोषित लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। खाद्य उत्पादन के जिम्मे विकास, बढ़ती बेरोजगारी तथा गरीबांे की घटती क्रयशक्ति को इसका प्रमुख कारण बताया गया।
बहरहाल, भूख के खिलाफ एक कानून का सबको इंतजार है। कांग्रेस इसे सन सत्तर के गरीबी हटाओ के नारे तथा नरेगा की अगली कड़ी के बतौर देख रही है। भाजपा व अन्य विपक्षी इसे लोकलुभावन और सस्ता प्रयास बताकर इसकी मंशा और व्यावहारिकता पर अनगिनत सवाल खड़े कर रहे हैं। इतना तो तय है कि भूख से संरक्षण को कानून बनाने और हर आदमी की खाद्य सुरक्षा को राज्य का दायित्व स्वीकारने के बाद हमारा देश एक वास्तविक लोककल्याण राज्य बनने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ रहा होगा।
Food Security / Vishnu Rajgadia / Nai Dunia- Edit page 03-08-09

शनिवार, 1 अगस्त 2009

लालू के करीबी डॉ राणा को पांच साल जेल
विष्णु राजगढ़िया
रांची : लालू यादव के खास करीबी डॉ आरके राणा को चारा घोटाले में पांच साल कैद की सजा मिली है। राजद के पूर्व सांसद डॉ राणा पहले ऐसे राजनेता हैं, जिन पर दोष साबित हुआ है। लगभग एक हजार करोड़ के इस चारा घोटाले के अन्य पांच मामलों में बिहार के दो पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद एवं डॉ जगन्न्ाथ मिश्र भी अभियुक्त हैं। उनमें से तीन मामलों की सुनवाई भी तेज हो जाने से लालू प्रसाद व राजद का राजनीतिक संकट गहरा होता जा रहा है।
सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश बीके झा 'प्रवीर ने आरसी 22 ए/96 मामले के 12 अभियुक्तों को आज सजा सुनायी। डॉ राणा को पांच साल कैद के अलावा चार लाख का जुर्माने की सजा सुनायी गयी है। आपूर्तिकर्ता त्रिपुरारी मोहन प्रसाद एवं बजट अधिकारी ब्रजभूषण प्रसाद को पांच साल कैद और 4.90 लाख जुर्माने की सजा मिली है। गोड्डा के तत्कालीन डीवीओ डॉ शशि कुमार सिन्हा को साढ़े चार साल की कैद और दो लाख रुपये जुर्माने की सजा मिली है। गोड्डा के दो तत्कालीन ट्रेजरी अधिकारियों उमेश प्रसाद सिंह एवं कृष्णदेव प्रसाद सिन्हा को चार साल की कैद और 55 हजार रुपये जुर्माने की सजा मिली है। पूर्व ट्रेजरी क्लर्क सतीशचंद्र झा एवं भानुकर दुबे को चार साल की कैद और 50 हजार रुपये जुर्माने की सजा मिली है। आपूर्तिकर्ता दयानंद कश्यप को साढ़े चार साल की कैद और 4.10 लाख जुर्माना, आपूर्तिकर्ता सुनील कुमार सिन्हा को चार साल कैद और पांच लाख जुर्माना, आपूर्तिकर्ता सुशील कुमार सिन्हा को साढ़े तीन साल कैद और 4.10 लाख का जुर्माना तथा आपूर्तिकर्ता संजय शंकर को साढ़े तीन साल कैद और 40 हजार रुपये जुर्माना की सजा मिली है।
इससे पहले कल आपूर्तिकर्ता सरस्वती चंद्रा को दो साल कैद और 20 हजार तथा फूल सिंह को ढाई साल कैद और 30 हजार रुपये जुर्माना की सजा सुनायी गयी थी।
अदालत ने फैसले में कहा है कि इन अभियुक्तों ने साजिश करके फरजी निकासी की। इस मामले में सीबीआइ ने पूर्व सांसद डॉ आरके राणा पर अपने राजनीतिक संबंधों का लाभ उठाकर घोटालेबाजों को संरक्षण देने तथा स्थानांतरण और पदस्थापन कराने का आरोप लगाया था। यह मामला 1992 में गोड्डा जिला कोषागार से 28.26 लाख रुपये की अवैध निकासी का है। इस मामले में कुल 20 अभियुक्त दोषी थे। इनमें चार अभियुक्तों डॉ श्याम बिहारी सिन्हा, श्यामचंद्र झा, डॉ जगदीश नारायण प्रसाद, डॉ शेषमुनि राम का निधन हो चुका है। दो अभियुक्त महेंद्र प्रसाद, सुशील झा अपना अपराध कबूल कर सरकारी गवाह बन गये हैं। इस मामले में 28.02.1996 को प्राथमिकी दर्ज की गयी थी तथा सीबीआइ ने 26.02.1999 को इस मामले में चार्जशीट दायर किया था। इस मामले में 17.08.2004 को आरोप गठन हुआ था।
डॉ आरके राणा जब पटना के वेटनरी कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे, उसी दौरान उनका लालू प्रसाद से गहरा रिश्ता बन गया था। बाद में डॉ राणा उसी वेटनरी कॉलेज में पोल्ट्री फार्म के प्रभारी बन गये। वहीं आवास भी ले लिया। राजनीतिक शुरूआत के दौरान डॉ राणा के यहां लालू का ठिकाना था। बाद में जब लालू प्रसाद मुख्यमंत्री बने तो पशुपालन विभाग में आपूर्ति से लेकर स्थानांतरण और पदस्थापन में डॉ राणा की महत्वपूर्ण भूमिका हो गयी। सीबीआइ के एक गवाह ने अदालत को दिये गये बयान में डॉ राणा पर चालीस करोड़ से भी ज्यादा राशि वसूलने का आरोप लगाया था। 1996 में सीबीआइ ने चारा घोटाले की जांच के दौरान डॉ राणा के ठिकानों से आठ करोड़ की संपत्ति जब्त की थी। चारा घोटाले में गंभीर आरोपों के बावजूद लालू प्रसाद ने उन्हें 1995 के विधानसभा चुनाव में गोपालपुर से टिकट देकर विधायक बनाया। बाद में वह खगड़िया से सांसद बने। 2009 के लोकसभा चुनाव में वह हार गये।
Nai Dunia 02-08-2009