मंगलवार, 2 जून 2009

नेशनल गेम का अधूरा सपना
विष्णु राजगढ़िया
नई दुनिया पत्रिका, 31 मई 2009 पेज 32 पेज 33
झारखंड ने देश को महेंद्र सिंह धौनी जैसा क्रिकेट कप्तान दिया है। हॉकी और तीरंदाजी में भी इस राज्य के खिलाड़ियों ने देश का नाम रोशन किया है। वर्ष 2003 में जब झारखंड को 34 वें नेशनल गेम का दायित्व सौंपा गया तो खिलाड़ियों व खेलप्रेमियों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी थी। उस वक्त 2007 में इसके आयोजन का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन पांच बार तिथि टलने से पूरे उत्साह पर पानी फिर गया है।
नेशनल गेम हर दो साल पर किसी एक राज्य में कराने का प्रावधान है। नेशनल गेम का उद्देश्य देश में खेल प्रतिभाओं को उभारना, सभी राज्यों में खेल संस्कृति और अधिसंरचना का विकास करना और अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में देश का नेतृत्व करने योग्य खिलाड़ियों को सामने लाना है। लेकिन तथ्य बताते हैं कि हाल के वर्षों में भारतीय ओलंपिक संघ इस दिशा में नाकाम रहा है। इसका खामियाजा देश की खेल प्रतिभाओं को भुगतना पड़ रहा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर की स्पर्धाओं में भारत लगातार पिछड़ रहा है। हर असफलता के बाद घड़ियाली आंसू बहाये जाते हैं लेकिन नेशनल गेम के आयोजनों को गंभीरता से कराने को कभी प्राथमिकता के बतौर नहीं लिया जाता।

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