गुरुवार, 7 मई 2009

झारखंड में नेशनल गेम्‍स का भी दम फूला
- विष्णु राजगढ़िया -

[उन अनजाने खिलाडयों के लिए, जो अवसर से वंचित रह गये]


उसे तो जख्म देना और तडफाना ही आता है।

गला किसका कटा, क्यूंकर कटा, तलवार क्या जाने?


जी हां, यही प्रकृति होती है शासन की। उसे इससे क्या मतलब कि उसके गलत तौर-तरीकों, मनमाने फैसलों और उनकी नाकाबिलियत का शिकार कितने लोगों को कितने रूपों में होना पड रहा है।
झारखंड में ३४ वें नेशनल गेम वर्ष २००७ में ही होने थे। वर्ष २००३ में ही इसके लिए हरी झंडी मिल चुकी थी। लेकिन चार बार नेशनल गेम की तिथि टल चुकी है। अगली तिथि पर भी नेशनल गेम हो सकेंगे या नहीं, कहना मुश्किल है। इस दौरान नौ की लकडी नब्बे खर्च की तर्ज पर बडे-बडे विज्ञापन देने और होर्डिंग लगाने वाले तमाम नेता व अधिकारी अब मुंह चुराते चल रहे हैं। २०० करोड के बदले हजार करोड से ज्यादा खर्च हो गया, इस पर विधानसभा की समिति भी बन गयी, समिति ने रिपोर्ट में गंभीर सवाल भी उठाये, फिर भी कुत्ते की पूंछ टेढी की टेढी ही रही।


http://newswing.com/?p=2667

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