गुरुवार, 9 जुलाई 2009

जागो ग्राहक, सोयेगी सरकार

विष्णु राजगढ़िया
डीडी वन पर आजकल एक विज्ञापन आ रहा है। इसमें एक युवक इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर लेता है। इसके बाद उसे पता चलता है कि उसकी डिग्री फरजी है क्योंकि उस संस्थान को सरकारी मान्यता नहीं मिली है। विज्ञापन का संदेश है- जागो ग्राहक जागो। इसमें यह भी सलाह दी गयी है कि ऐसे किसी संस्थान में नामांकन कराने से पहले उसकी मान्यता की जांच अवश्य कर लें।
सलाह अच्छी है। जागो ग्राहक जागो ताकि ठाठ से सोती रहे सरकार। ग्राहकों का जागृत एवं सचेत रहना जरूरी है लेकिन उनकी जानकारी और चेतना की अपनी सीमा है। आम ग्राहक के लिए किसी चीज की तहकीकात की भी अपनी सीमा है। जबकि सरकारी एजेंसियांे के पास हर मामले में विशेषज्ञता के साथ ही जांच-पड़ताल की भी असीमित क्षमता है। जिन चीजों में ग्राहक को ठगा जाता है, उन चीजों पर सरकारी एजेंसियां खुद नजर रखें तो काफी बड़ा फर्क आ सकता है।
मामला इंजीनियरिंग की फरजी डिग्री से जुड़ा है। आजकल विभिन्न् तकनीकी शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में नामाकंन के ऐसे विज्ञापनों एवं दावों की भरमार मिलती है जिनमें इन्हें मान्यताप्राप्त बताया जाता है। आम विद्यार्थियों एवं आम अभिभावकों के लिए यह बेहद मुश्किल है कि वे ऐसे दावों की तहकीकात करके किसी नतीजे तक पहुंच सकें। अगर सरकारी एजेंसियां ऐसे विज्ञापनों एवं दावों पर नजर रखें और गलत दावे करने वालों की धरपकड़ शुरू कर दें तो इस समस्या का नामोनिशान मिट सकता है।
गत 21 जून 2009 को रांची के एक अखबार में कैम्ब्रिज औद्योगिक प्रशिक्षण केंद्र का एक विज्ञापन आया। इसमें छह प्रकार के तकनीकी पाठ्यक्रमों में नामाकंन के लिए आवेदन मांगे गये थे। विज्ञापन में इसे श्रम नियोजन एवं प्रशिक्षण विभाग, झारखंड सरकार द्वारा अनुमोदित बताया गया। इसके तीन दिन बाद झारखंड सरकार के श्रम नियोजन एवं प्रशिक्षण विभाग का विज्ञापन आया कि उक्त केंद्र को कोई मान्यता नहीं दी गयी है। इसमें यह भी कहा गया कि अगर कोई विद्यार्थी इसमें नामांकन करायेगा तो इसकी जिम्मेवारी झारखंड सरकार की नहीं होगी।
झारखंड सरकार ने एक विज्ञापन देकर अपनी जिम्मेवारी से पीछा छुड़ा लिया। संभव है कि इसके बाद भी उक्त संस्थान द्वारा नामांकन करके विद्यार्थियों को फरजी डिग्री दी जाये। यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि सभी विद्यार्थियों और अभिभावकों ने झारखंड सरकार के इस विज्ञापन को देख लिया हो। सरकार का दायित्व तो ऐसे संस्थानों पर नकेल कसना होनी चाहिए जो सरकार की मान्यता होने का खुलेआम झूठा दावा करके विज्ञापन दे रहे हैं और विद्यार्थियों को बेवकूफ बना रहे हैं। लेकिन फिलहाल तो सरकार ग्राहकों को जगाने में लगी है ताकि खुद सोयी रह सके।

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