रविवार, 19 जुलाई 2009

झरिया : आग पर आशियाना
विष्णु राजगढ़िया
झरिया शहर के नीचे कोयला है और कोयले में है आग । सौ साल पुरानी इस आग की तपन और गैस की गंध के बीच झरियावासियों की कई पीढ़ियां गुजर चुकी हैं । एक समय कोयलांचल का सबसे समृद्ध यह शहर लगातार अपनी चमक खोता जा रहा है । आज नहीं तो कल उजड़ना ही है, ऐसी मन:स्थिति में दशकों से लोग जी रहे हैं । लेकिन रोजी-रोटी उन्हें हटने नहीं देती । अन्य शहरों में पुराने मकानों की जगह नई-नई इमारतें धड़ल्ले से बन रही है, वहीं झरिया में नया निर्माण बेहद कम हो रहा है । पुराने मकानों की बेहद जरूरी मरम्मत करके काम चलाया जाता है । हर दिन इस आशंका से गुजरता है कि कहीं कोई बड़ा हादसा नहीं हो जाये । घरों के नीचे से आग और गैस निकलने की घटनाएं सामान्य हैं । कई बार मुख्य सड़कों में गोफ बन जाते हैं और जमीन की आग और गैस निकलकर भयावह दृश्य उत्पन्न् करती है । झरिया शहर को उजाड़कर दूसरी जगह बसाने की कोशिश लंबे समय से चल रही है । इसके लिए राज्य सरकार ने झरिया पुनर्वास प्राधिकार भी बनाया है । पिछले साल झारखंड सरकार ने इसके लिए 6400 करोड़ का पुनर्वास पैकेज दिया था । बेनगढ़िया नामक जगह पर एक नई आवासीय कॉलोनी बनाई गई है । लेकिन झरियावासी इसमें जाने को तैयार नहीं । एक-एक कमरों के दबड़ेनुमा फ्लैट का आकार और इसकी निर्माण की गुणवत्ता झरियावासियों को रास नहीं आ रही। इससे बढ़कर यह कि झरिया में लोगों के पास आजीविका के विभिन्न् प्रकार के साधन हैं । सुदूर क्षेत्र में बनी बेनगढ़िया कॉलोनी में रोजगार का कोई साधन नहीं होगा । ऐसे में झरियावासी इस कॉलोनी में रह तो लेंगे लेकिन खायेंगे क्या?दूसरी ओर, केंद्र और राज्य सरकार किसी भी सूरत में झरियावासियों को स्थानांतरित करने की कोशिश में जुट गई है । झारखंड में राष्ट्रपति शासन है । झारखंड के राज्यपाल के सलाहकार टीपी सिन्हा ने जुलाई के पहले सप्ताह में झरिया जाकर पुनर्वास संबंधी योजना बनाई । इसके तहत सौ दिनों के अंदर झरिया के 4650 परिवारों को अन्यत्र बसाने का लक्ष्य रखा गया है । इनमें ग्वालापट्टी, राजपूत बस्ती, बोकापहाड़ी, मोदीपीट्ठा और लूजपीठ बस्तियां शामिल हैं । इन बस्तियों को डीजीएमएस ने सबसे ज्यादा असुरक्षित क्षेत्र बताया है । इन परिवारों को भूली कॉलोनी में बसाने की योजना है । हालांकि इसे लेकर भी विवाद खड़ा हो गया है । भूली एक विशाल श्रमिक कॉलोनी है । इसमें बीसीसीएल के कर्मियों के अलावा हजारों आवासों में अवैध रूप से गैर-बीसीसीएलकर्मी भी रहते हैं । सरकार की योजना के अनुसार इन आवासों में रहनेवाले अवैध लोगों को हटा कर झरियावासियों को बसाया जायेगा । यह करना बेहद मुश्किल होगा । इसके खिलाफ भूली में उग्र विरोध शुरू हो चुका है । झरिया पुनर्वास योजना के अनुसार 10 साल के अंदर लगभग एक लाख परिवारों को दूसरी जगह बसाना है । इसके लिए 10 हजार करोड़ स्र्पयों का प्रावधान रखा गया है । इस मास्टर प्लान को कोल इंडिया तथा कोयला मंत्रालय की स्वीकृति मिल चुकी है । आर्थिक मामलों पर केंद्र सरकार की कैबिनेट समिति की मुहर लगने के बाद इस पर काम शुरू होगा । इसे लागू करने का दायित्व झरिया पुनर्वास विकास प्राधिकार पर है । राज्य सरकार द्वारा बनाये गये इस प्राधिकार में बीसीसीएल के अधिकारी भी शामिल हैं । मास्टर प्लान के अनुसार, कोयले की आग बुझाने के प्रयास भी किये जायेंगे । बीसीसीएल पर अपने श्रमिकों के पुनर्वास तथा आग बुझाने संबंधी कार्यों का दायित्व है । गैर-बीसीसीएल कर्मियों के पुनर्वास का दायित्व राज्य सरकार पर है । बिहार विधान परिषद ने गौतम सागर राणा की अध्यक्षता में एक समिति बनाई थी । उस समिति ने झरिया को अन्यत्र बसाने की अनुशंसा की थी ।देश की सबसे पुरानी कोयला खदानों में झरिया कोयलांचल का नाम प्रमुख है । यहां 1894 ई में कोयला खनन शुरू हुआ जिसने 1925 तक व्यापक रूप ग्रहण कर लिया । पहले कोयला खदानें निजी मालिकों के हाथों में थीं । 1971 में इंदिरा गांधी ने देश की सभी कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण कर लिया । झरिया कोयलांचल कोल इंडिया के बीसीसीएल यानी भारत कोकिंग कोल लिमिटेड के अंतर्गत आता है। यह धनबाद जिले के लगभग 280 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है । यहां का कोयला काफी उन्न्त श्रेणी का और कीमती माना जाता है । झरिया का बिटुमीनियस कोयला काफी गुणवत्तापूर्ण है, जो कोक और ब्लास्ट फर्नेस के लिए उपयोगी है । यहां 23 भूमिगत तथा नौ खुली खदानों के जरिये कोयला खनन का काम चल रहा है । अब भी झरिया कोयलांचल में 60 हजार करोड़ स्र्पयों का कोयला भंडार होने का अनुमान है । झरिया के कोयले में लगी आग का पता सबसे पहले 1916 में चला था । उस वक्त निजी मालिकों के पास इसे बुझाने की कोई न तो तकनीक थी और न ही उनके लिए प्राथमिकता थी । 1971 में राष्ट्रीयकरण के दौर में आधुनिक तकनीक से कोयला खनन शुरू हुआ । उस दौरान किये गये सर्वेक्षण से लगभग 17 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र की 70 जगहों पर आग लगी होने का पता चला । उनमें से 10 जगहों पर ब्लैंकेटिंग, नाइट्रोजन फ्लाशिंग और स्टोविंग के जरिये आग पर काबू पाने की कोशिश की गई थी । लेकिन आमतौर पर कोयला अधिकारियों ने आग को फैलने से रोकने तथा बुझाने संबंधी कार्यों में गंभीरता नहीं दिखायी । भूमिगत खदानों में कोयला निकाले जाने के बाद बालू भरना आवश्यक है ताकि आग और गैस का फैलाव न हो । लेकिन बालू भराई के दाम पर महज खानापूरी करके बड़ा घोटाला करने के आरोप लगते रहे । धनबाद में चर्चित कोयला माफिया के उदय में इस बालू घोटाले की भी भूमिका रही । आज भी लगभग 37 मिलियन टन कोकिंग कोल आग की चपेट में होने का अनुमान है ।इस आग में कार्बन मनोक्साइड, कार्बन डाई ऑक्साइड, सल्फर डाई आक्साइड और मिथेन गैस होती है । इस आग और गैस के कारण वायू प्रदूषण होता है और स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याएं उत्पन्न् होती हैं । यही कारण है कि यहां के निवासियों में टीबी, ब्राउनकाइल अस्थमा, निमोकोनिसिस, श्वांस संबंधी कई जटिलताएं, चर्म रोग जैसी बीमारियां आम हैं ।अप्रैल 2008 में सीपीएम सांसद वृंदा करात ने राज्यसभा में यह मामला उठाया था। केंद्रीय कोयलामंत्री संतोष बागरोड़िया ने लिखित जवाब में बताया कि 2006 के सर्वेक्षण के अनुसार झरिया में अग्नि-प्रभावित परिवारों की संख्या 98314 है । इनमें 44155 घर बीसीसीएल कर्मियों के हैं । गैर-बीसीसीएल कर्मी परिवारों की संख्या 54159 है । झरिया और राजगंज के पुनर्वास के लिए 2659 करोड़ की योजना बनायी गयी है । श्रीमती करात के पूरक प्रश्न के जवाब में कोयला मंत्री ने यह भी बताया था कि फिलहाल झरिया शहर आग से सुरक्षित है तथा मुख्य शहर को हटाने का कोई प्रस्ताव भी नहीं है ।झरिया बचाओ समिति ने पुनर्वास के नाम पर झरिया को उजाड़ने का आरोप लगाया है । अशोक अग्रवाल के अनुसार झरिया को उजाड़ने के बजाए नीचे लगी आग को बुझाने की ईमानदार कोशिश की जाये, तो समस्या सुलझ सकती है । श्री अग्रवाल के अनुसार केंद्रीय कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल और राज्यपाल के सलाहकार टीपी सिन्हा ने झरिया दौरे के क्रम में झरिया के नागरिकों से बातचीत की जरूरत नहीं समझी । यह केंद्र और राज्य सरकार के संवेदनहीन रवैये का परिचायक है । श्री अग्रवाल के अनुसार झरिया बचाओ समिति ने पिछले दिनों धनबाद के उपायुक्त को आवेदन दिया था । इसमें बताया गया था कि इंदिरा चौक से भूमिगत आग झरिया शहर की ओर बढ़ रही है । इसे तत्काल नियंत्रित करने का प्रयास बीसीसीएल को करना चाहिए । श्री अग्रवाल कहते हैं कि भूमिगत खनन के दौरान झरिया को उजाड़ने की कोई जरूरत नहीं थी । बाद में खुली खदानों के जरिये कम खर्च में तत्काल उत्पादन के चक्कर में झरिया को उजाड़ने की साजिश रची गयी । भूमिगत खनन के लिए जमीन की जरूरत नहीं होती जबकि खुली खदान के लिए शहरों और गांवों को उजाड़ा जाता है । झरिया को उजाड़ने के लिए बीसीसीएल ने कोयले की आग पर काबू पाने की कोशिश नहीं की ।समिति की ओर से मदन खन्न्ा कहते हैं कि पुनर्वास के संबंध में राज्य सरकार, केंद्र सरकार और कोल इंडिया तीनों के प्रावधान अलग-अलग हैं। झरियावासियों को कोल इंडिया के प्रावधानों के अनुरूप पुनर्वास करने के बजाय इसके कई लाभों से वंचित करने की कोशिश हो रही है।कोल माइंस रिसर्च इंस्टीच्यूट के तत्कालीन निदेशक डॉ टीएन सिंह ने झरिया की आग बुझाने के लिए लक्ष्मण रेखा परियोजना बनाई थी । इसे काफी कम लागत वाली प्रभावी योजना माना गया था । लेकिन इस परियोजना को स्वीकृति नहीं मिल सकी और आग बढ़ती चली गयी ।झरिया मामले का राजनीतिकरण भी खूब होता रहा है । हर चुनाव झरिया बचाने के नाम पर ही लड़ा जाता है । 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी चंद्रशेखर दूबे ने झरिया बचाने का वादा करके विजय हासिल की थी । लेकिन केंद्र में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद झरिया को अन्यत्र बसाने की योजना पर ही काम चलता रहा । नतीजा यह है कि इस बार मतदाताओं ने भाजपा के पशुपतिनाथ सिंह को सांसद चुना है । श्री सिंह ने झरिया को बचाने का वादा किया था । केंद्रीय कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने पिछले दिनों झारखंड दौरे के क्रम में झरिया को खाली कराने का निर्देश देकर मानो आग में घी डाल दिया हो । झारखंड सरकार की ओर से राज्यपाल के सलाहकार टीपी सिन्हा ने भी यही बात दोहरा दी । जबकि मामले की संवेदनशीलता को भांपते हुए कांग्रेस के पूर्व सांसद चंद्रशेखर दूबे ने भरोसा दिलाया कि झरिया नहीं उजड़ेगा । उन्होंने यह भी दावा किया कि केंद्रीय कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल से उनकी इस संबंध में बातचीत हो चुकी है । झरिया शहर का इस तरह उजड़ते जाना आधुनिक विकास की एक त्रासदी है । कोयला निकालने के साथ आग पर नियंत्रण के उचित उपाय किये गये होते और बालू भराई जैसे जरूर दायित्व को लूट का शिकार नहीं बनाया गया होता तो आज विकास के बदले विनाश का यह मंजर नहीं होता । अब भी पुनर्वास के नाम पर हो रही कोशिशें बेहद अपर्याप्त नजर आ रही हैं । यही कारण है कि नीचे की आग की तपन झरियावासियों के दिलों में धधकने लगी है ।

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