रविवार, 19 जुलाई 2009

नेताओं पर कसा शिकंजा


विष्णु राजगढ़िया
लोकतंत्र का यह दिलचस्प रंग है । कल तक राज्य में कानून बनाने की हैसियत रखने वाले लोग आज खुद कानून के शिकंजे में हैं । कल तक कानून का पालन करने का जिन पर दायित्व था, आज वे कानून से बचकर फरार हैं । झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा तथा पांच निर्दलीय पूर्व मंत्रियों के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति मामले में हुए मुकदमों ने राजनीतिकों के होश गुम कर दिये हैं । दो पूर्व मंत्रियों एनोस एक्का और हरिनारायण राय की गिरफ्तारी के वारंट लेकर पुलिस उनके ठिकानों पर छापेमारी कर रही है । हैरानी की बात तो यह है कि दोनों पूर्व मंत्री दर्जन भर सरकारी सुरक्षा गार्डों के साथ फरार हैं ।
शीर्ष राजनेताओं का यह हश्र बिहार के पूर्व मुख्यमंत्रियों डॉ जगन्न्ाथ मिश्र और लालू प्रसाद पर हुए ऐसे ही मुकदमों के दौर की याद दिलाता है । हाल के वर्षों में केंद्रीय कोयला मंत्री पद पर रहते हुए झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन ने भी सुरक्षाकर्मियों के साथ फरार होने का रिकॉर्ड बनाया था । झारखंड विधानसभा के लिए वर्ष 2005 में हुए चुनाव में किसी दल को बहुमत नहीं मिला था । इससे लगभग एक दर्जन निर्दलीय या छोटे दलों के विधायकों की चांदी हो गयी । इनकी मर्जी के बगैर कोई सरकार नहीं बन सकती थी । लिहाजा हर सरकार में इनकी ही चली । चार साल में चार सरकारें बनीं और हर सरकार में निर्दलीय हावी रहे । यहां तक कि इसी दौर में एक निर्दलीय मधु कोड़ा ने कांग्रेस, झामुमो और राजद के समर्थन से लगभग दो साल तक सरकार चलाने का विश्व रिकॉर्ड बनाया । महत्वपूर्ण और मलाईदार विभागों के मंत्री पद पर बैठे निर्दलीयों की मनमानी और खुलेआम भ्रष्टाचार के किस्से सामने आते रहे । इन पर अंकुश लगाने वाला कोई नहीं था ।
इन निर्दलीय पूर्व मंत्रियों ने दलबदल कानून की भी धज्जियां उड़ायी है । लेकिन सवा चार साल में झारखंड विधानसभा के स्पीकर दलबदल संबंधी एक भी मुकदमे का फैसला नहीं कर सके । कारण यह कि हर सरकार के लिए निर्दलीय ही जीवनशक्ति रहे हैं ।पाप का घड़ा फूटता ही है । इसका श्रेय न्यायपालिका को मिला । कुमार विनोद नामक एक सामाजिक कार्यकर्ता की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान निगरानी की विशेष अदालत ने दो पूर्व मंत्रियों एनोस एक्का व हरिनारायण राय की गिरफ्तारी के वारंट निर्गत किये । इसके एक सप्ताह के भीतर पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा तथा तीन पूर्व मंत्रियों कमलेश सिंह, बंधु तिर्की और भानु प्रताप शाही के खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज कर ली गयी । राजीव शर्मा नामक एक नागरिक की याचिका पर निगरानी अदालत ने यह आदेश दिया । राज्य के कई अन्य मंत्रियों के खिलाफ गंभीर आरोपों से संबंधित याचिकाएं भी अदालतों में लंबित हैंं । देर-सबेर ऐसे अन्य राजनेताओं को भी कानून की गिरफ्त में आना होगा । पूर्व मुख्यमंत्री एवं सिंहभूम क्षेत्र के निर्दलीय सांसद मधु कोड़ा पर आय से अधिक संपत्ति रखने के गंभीर आरोप हैं । उन पर 16 कपंनियां बनाने, करोड़ों की जमीन खरीदने का आरोप है । श्री कोड़ा के मुख्यमंत्रित्वकाल में ही ऐसे आरोपों पर कोहराम मचा था । श्री कोड़ा के दो व्यावसायिक पार्टनर विनोद सिन्हा और संजय चौधरी का नाम खूब उछला था । इन दोनों के साथ मिलकर श्री कोड़ा द्वारा अपने पद का दुरूपयोग करके व्यावसायिक हित पूरे करने और अकूत संपत्ति इकट्ठा करने के गंभीर आरोप लगे । श्री कोड़ा मुख्यमंत्री होने के साथ ही खान एवं भूतत्व विभाग के भी प्रभारी थे । लौह-अयस्क तथा अन्य खनिजों की खदान आवंटित करने की प्रक्रिया पर सवाल उठते रहे । कुछ स्टील कंपनियों को खरीद लेने या लौह अयस्क देने के बदले कंपनी में पार्टनर बना लेने जैसे प्रस्ताव भी चर्चा में रहे । इन आरोपों की जांच कभी नहीं हुई । अब निगरानी विभाग द्वारा मामला दर्ज किये जाने के बाद कई कारनामों से पर्दा हटने की संभावना जतायी जा रही है । पूर्व जल संसाधन मंत्री कमलेश कुमार सिंह पर रांची में कई जगहों पर अपने रिश्तेदारों के नाम पर करोड़ों के प्लॉट खरीदने तथा दोनों पुत्रियों की शादी में करोड़ों रुपये खर्च करने का आरोप है । पूर्व स्वास्थ्य मंत्री भानु प्रताप शाही पर नामकुम के खिजरी ब्लॉक में 20 एकड़ जमीन खरीदने का आरोप है । पूर्व शिक्षा मंत्री बंधु तिर्की पर दिल्ली में नागार्जुना कंस्ट्रक्शन द्वारा निर्मित आठ करोड़ का फ्लैट और बनहौरा में 100 एकड़ जमीन सहित राजधानी में करोड़ों की बेनामी संपत्ति खड़ी करने का आरोप है ।निगरानी विभाग कई महीनों से दो पूर्व मंत्रियों एनोस एक्का और हरिनारायण राय के पास आय से अधिक संपत्ति की छानबीन में जुटा था । विभाग को मिले प्रमाणों के अनुसार हरिनारायण राय के पास आय से 1.16 करोड़ रुपये तथा एनोस एक्का के पास आय से 3.73 करोड़ अधिक संपत्ति है । दोनों पूर्व मंत्रियों के बैंक एकाउंट में करोड़ोें रुपये के लेन-देन की प्रविष्टियां दर्ज हैं । दोनों मंत्रियों ने धन कमाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी । जिस विभाग में मंत्री रहे, उसी विभाग में काम करने के लिए अपनी पत्नियांे के नाम से ठेका व कंस्ट्रक्शन कपंनियां बना लीं । निगरानी के शिकंजे में आने के बाद एनोस एक्का ने अपनी पत्नी की आय 1.32 करोड़ रुपये बताई । इसके लिए उन्होंने आयकर विभाग को 50 लाख रुपये टैक्स का भी भुगतान किया । जब निगरानी विभाग ने इतनी भारी कमाई और इतना टैक्स भुगतान के संबंध में विवरण मांगा, तो पूर्व मंत्री संतोषप्रद जवाब नहीं दे सके । दोनों पूर्व मंत्रियों द्वारा कई भूखंड खरीदने और आलीशान मकान बनाने के भी सबूत मिले । इनकी कीमत और लागत वास्तविक राशि की अपेक्षा कोड़ियों में बताई गई । लाखों रुपये का लेन-देन नकद में किया गया । पूर्व मंत्री हरिनारायण राय द्वारा रांची के हरमू रोड में बनाये जा रहे आलीशान मकान की भी लागत बेहद कम बताई गई । यहां तक कि इस मकान के निर्माण में दूसरों का पैसा लगा होने की बात कह कर पूर्व मंत्री ने बचाव का प्रयास किया ।पूर्व मंत्री बंधु तिर्की ने याचिकाकर्ता कुमार विनोद के खिलाफ एससी-एसटी थाने में प्राथमिकी दर्ज कराकर मामले को नया मोड़ देने की कोशिश की । उनका आरोप है कि कुमार विनोद ने उन्हें आदिवासी क्षेत्र में काम करना छोड़ देने की धमकी दी है । इस आरोप को कुमार विनोद ने आधारहीन बताते हुए कहा है कि पूर्व मंत्री एससी-एसटी एक्ट का दुरूपयोग कर रहे हैं । झारखंड के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री भानु प्रताप शाही के खिलाफ निगरानी की विशेष अदालत में एक और मामला दर्ज हुआ है । बोकारो निवासी डॉ राजकुमार शर्मा के शिकायतवाद में मंत्री तथा कई अधिकारियों पर आयुष चिकित्सकों की नियुक्ति में 10 करोड़ की संपत्ति अर्जित करने का आरोप लगाया गया है । डॉ श्ार्मा के अनुसार निगरानी विभाग को इस घपले के बारे में पहले से ही पर्याप्त जानकारी होने के बावजूद अब तक कार्रवाई नहीं की गयी है । वर्ष 2000 में अलग राज्य बनने के बाद से ही झारखंड मंे शीर्ष पदों पर बैठे राजनेताओं तथा अधिकारियों द्वारा खुलेआम भ्रष्टाचार के किस्से सामने आते रहे । सरकारी खर्चों का लेखा-जोखा देखनेवाले महालेखाकार ने भी अंकेक्षण के दौरान गंभीर सवाल उठाये । ज्यादातर सवाल अनसुने रह गये । विधानसभा में भी इन अनियमितताओं पर चिंता सामने आयी । लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकला । निगरानी विभाग के पास अकाट्य प्रमाण होने के बावजूद राजनीतिक कारणों से फाइलें दबी रहीं । अब नागरिकों की याचिका पर अदालतों के हस्तक्षेप ने कुछ सत्ताधारियों को कानून के शिकंजे में ले लिया है । इससे नागरिक समाज को एक नयी उम्मीद जगी है । हालांकि यह सवाल भी उठ रहे हैं कि हर मामले में अदालत के हस्तक्षेप की जरूरत क्यों पड़ रही है? हमारी कार्यपालिका और विधायिका ऐसे मामलों पर स्वयं गतिशील नहीं रहे और हर मामले में अदालत के हस्तक्षेप की जरूरत पड़े तो लोकतांत्रिक प्रणाली बेमानी हो जायेगी। झारखंड के लिए ऐसे सवाल फिलहाल खास महत्व नहीं रखते क्योंकि यहां फिलहाल खेत को बाड़ से ही खतरा है ।

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