मंगलवार, 28 जुलाई 2009

चारा घोटाला : लालू-जगन्नाथ के मामलों में तेजी आयी
-डॉ मिश्र को झारखंड हाईकोर्ट से नहीं मिली राहत
-डॉ आरके राणा समेत 14 पर फैसला 31 को
-चारा घोटाले में पहली बार किसी राजनेता पर

विष्णु राजगढ़िया
रांची : पशुपालन घोटाले में लालू यादव एवं डॉ जगन्नाथ मिश्र से जुड़े पांच में से तीन मामलों की सुनवाई तेज हो गयी है। दूसरी ओर झारखंड उच्च न्यायालय ने एक मामले में डॉ मिश्र को राहत देने से इंकार कर दिया है। पशुपालन घोटाले संबंधी एक अन्य मामले में लालू यादव के खास करीबी एवं राजद के पूर्व सांसद डॉ आरके राणा सहित 14 लोगों के संबंध में फैसला 31 जुलाई को सुनाया जायेगा। इस घोटाले में पहली बार किसी प्रमुख राजनीतिक के मामले में फैसला होने वाला है।

बिहार के दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों के खिलाफ रांची सीबीआइ की विशेष अदालत में चल रहे पांच मामलों में 410 अभियुक्त हैं। इन पर पशुपालन अधिकारियों एवं आपूर्तिकर्त्ताओं के साथ मिलीभगत करके दुमका, देवघर, चाइबासा एवं डोरंडा स्थित कोषागारों से लगभग 250 करोड़ रुपयों की अवैध निकासी का आरोप है। पशुपालन घोटाले की जांच कर रहे सीबीआइ के आरक्षी अधीक्षक आरसी चौधरी के अनुसार दो मामलों आरसी-20ए/96 तथा 68ए/96 की सुनवाई फिलहाल जज के अभाव में स्थगित है। श्री चौधरी के अनुसार शेष तीन मामलों आरसी 38ए/96, आरसी 47ए/96 तथा आरसी 64ए/96 में गवाही चल रही है


इन मामलों पर सुनवाई जल्द पूरी होने की उम्मीद है। कांड संख्या आरसी 47ए/96 को पशुपालन घोटाले का सबसे बड़ा मामला माना जाता है। इसमें रांची के डोरंडा स्थित कोषागार से 182 करोड़ रुपये अवैध निकासी का आरोप है। आरसी 38ए/96 दुमका कोषागार से 31.34 करोड़ की अवैध निवासी का मामला है। कांड संख्या आरसी 64ए/96 देवघर कोषागार से पांच करोड़ रुपयों की अवैध निकासी से संबंधित है।

इस बीच बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ जगन्नाथ मिश्र को झारखंड हाईकोर्ट से निराशा हाथ लगी है। उन्होंने चारा घोटाला कांड संख्या आरसी 20 ए/96 से अपना नाम हटाने का अनुरोध किया था। डॉ मिश्र के अधिवक्ता राणाप्रताप सिंह ने अनुसार इस कांड में सीबीआइ ने उनके खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति गलत ढंग से ली थी। अभियोजन के लिए कैबिनेट से सहमति मिलने के बाद राज्यपाल द्वारा इसकी स्वीकृति दी जानी चाहिए थी। अधिवक्ता के अनुसार इस प्रक्रिया का पालन नहीं किये जाने के कारण उनका नाम इस कांड से हटाया जाना चाहिए। श्री सिंह ने अदालत में अपना पक्ष रखा कि अभियोजन के वक्त डॉ मिश्र राज्यसभा सदस्य थे, इसलिए राज्यसभा के स्पीकर से इसकी स्वीकृति ली जानी चाहिए थी।

दूसरी ओर, सीबीआइ की ओर से अधिवक्ता राजेश कुमार ने अदालत में कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा-19 व सीआरपीसी की धारा 197 के तहत डॉ मिश्र के खिलाफ अभियोजन के लिए स्वीकृति लेने की आवश्यकता नहीं। साथ ही, डॉ मिश्र पर नेता विपक्ष के बतौर कार्यकाल से संबंधित आरोप होने के कारण राज्यसभा स्पीकर से अनुमति की भी आवश्यकता नहीं थी। झारखंड हाईकोर्ट में जस्टिस अमरेश्वर सहाय एवं जस्टिस आरआर प्रसाद की खंडपीठ ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद सोमवार को डॉ मिश्र की अपील याचिका खारिज कर दी। इससे पहले डॉ मिश्र ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके कहा था कि उन्हें इस मामले में अपना पक्ष रखने का अवसर नहीं दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड उच्च न्यायालय को दोनों पक्षों कर फिर से सुनने का निर्देश दिया था। लेकिन सुनवाई के बाद डॉ मिश्र को इसमें कोई राहत नहीं मिल सकी है। उक्त कांड संख्या आरसी 20 ए/96 में डॉ जगन्नाथ मिश्र के साथ लालू प्रसाद भी अभियुक्त हैं। सीबीआइ ने यह मामला 27 अप्रैल 1996 को दर्ज किया था। इसमें नकली सप्लायरों के जाली बिल बनाकर फरजी आपूर्ति के नाम से चाईबासा कोषागार से 37 करोड़ की अवैध निकासी का आरोप है। इस मामले में लालू प्रसाद और डॉ मिश्र जेल भी जा चुके हैं।

सीबीआइ के आरक्षी अधीक्षक आरसी चौधरी के अनुसार पशुपालन घोटाला कांड संख्या आरसी 22 ए/96 में सुनवाई पूरी हो चुकी है। सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश वीरेश्वर झा प्रवीर 31 जुलाई को फैसला सुनायेंगे। लगभग 28 लाख रुपयों की फरजी निकासी के इस मामले के 14 अभियुक्तों में राजद के पूर्व सांसद डॉ आर के राणा शामिल हैं। श्री राणा पर तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद से सांठगांठ करके पशुपालन अधिकारियों का पदस्थापन एवं तबादला कराने तथा घोटाला करने वालों को संरक्षण देने का आरोप है। इस मामले में सीबीआइ ने 20 अभियुक्तों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया था। उनमें से चार की मृत्यु हो चुकी है जबकि दो अभियुक्तों को सरकारी गवाह बना दिया गया।

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