मंगलवार, 7 जुलाई 2009

इंटरनेट का रंग लाल
विष्णु राजगढ़िया
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केंद्र सरकार ने देश के प्रमुख नक्सली संगठन भाकपा (माओवादी) पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसका नक्सलियों की गतिविधियों पर कोई असर नहीं आया है क्योंकि यह पहले से ही एक भूमिगत संगठन है। दिलचस्प यह कि हाल के वर्षों में माओवादियों ने अपने विचारों एवं सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए आधुनिक संचार माध्यमों खासकर इंटरनेट का भरपूर उपयोग किया है। तथ्य बताते हैं कि अन्य राजनीतिक संगठनों की तुलना में नक्सलियों के लिए इंटरनेट काफी महत्वपूर्ण संचार माध्यम साबित हुआ है। अब बेबसाइट्स और बड़ी संख्या में ब्लॉग्स के जरिये नक्सली अपनी खबरों को तत्काल दुनिया भर में पहुंचा रहे हैं।
पहले नक्सली संगठनों के लिए सूचनाओं और विचारों के प्रसार के लिए मुखपत्र और न्यूज बुलेटिन पर निर्भर रहना पड़ता था। यह काफी खर्चीला और श्रमसाध्य होने के साथ ही काफी समय लगने वाला काम था। ऐसे मुखपत्रों के वितरण में काफी जटिलता होती थी। इन्हें रखना भी काफी खतरनाक माना जाता था। अगर किसी व्यक्ति के पास ऐसी कोई प्रकाशन सामग्री पकड़ी जाती थी तो उसे नक्सली कार्यकर्ता या समर्थक मान लिया जाता था। अनगिनत नेताओं की गिरफ्तारी सिर्फ इस वजह से हुई कि सफर के दौरान सामान्य सुरक्षा जांच में उनके बैग से नक्सली साहित्य मिला। फिर, नक्सलियों की जीवनशैली मुख्यत: भूमिगत और जल्दी-जल्दी ठिकाना बदलने की है। लिहाजा, मुखपत्रों के नये अंक उन तक पहुंचाना भी एक जटिल काम होता है। ऐसे प्रकाशनों के दौरान प्रिंटिंग प्रेस में पकड़े जाने का भय भी नक्सलियों को सताता है। अब नक्सली नेता दूरदराज के गांवों, पहाड़ों में या फिर किसी शहर में, कहीं भी एक कंप्यूटर पर अपनी सामग्री तैयार कर सकते हैं और इंटरनेट के जरिये दुनिया भर के लिए उपलब्ध करा सकते हैं।
इंटरनेट ने इन सारी समस्याओं का एक झटके में समाधान कर दिया है। अब मुखपत्र या न्यूज बुलेटिन निकालने के बजाय इंटरनेट पर किसी बलॉग के माध्यम से मिनटों में पूरी दुनिया में अपनी खबरों और विचारों को पहुंचाया जा रहा है। इंटरनेट पर नजर रखनेवाली एजेंसियां ऐसे ब्लॉग्स की तलाश कर इन्हें निष्क्रिय करती रहती हैं। इससे माओवादियों पर खास फर्क नहीं पड़ता। उनके पास देश और विदेश के माओवादी समर्थक सैकड़ों ब्लॉग्स और वेबसाइट्स हैं। इनके जरिये अपने नये ब्लॉग ठिकाने की सूचना अपने समथकों एवं कार्यकर्त्ताओं तक पहुंचा दी जाती है।
पश्चिम बंगाल के लालगढ़ में नक्सल विरोधी कार्रवाई के दौरान इंटरनेट का लाल रंग ताजा उदाहरण है। इस दौरान माओवादियों ने विभिन्न् मीडिया में आयी खबरों, अपने विचारों एवं सूचनाओं के प्रसार में इंटरनेट का जबरदस्त उपयोग किया। 'पिपुल्स ट्रूथ नामक ब्लॉग ने पांच जून 2009 को अपने बुलेटिन संख्या पांच में लालगढ़ पर लंबी रिपोर्ट प्रकाशित की। 'मास अपराइजिंग इन लालगढ़ शीर्षक यह रिपोर्ट बताती है कि किस तरह लालगढ़ में जनउभार की स्थिति आ गयी है। इस ब्लॉग के संपादक पी गोविंदन कुट्टी हैं। ब्लॉग का ध्येयवाक्य है- 'जहां अन्याय हो, वहां विद्रोह ही न्याय है। मानवता के अपमान का एकमात्र जवाब है- क्रांति।
'पिपुल्स मार्च नामक ब्लॉग पर 23 जून को माओवादियों का यह बयान जारी किया गया है कि केंद्र सरकार द्वारा लगाये गये प्रतिबंध का उन पर कोई असर नहीं होगा। इसी ब्लॉग पर इसी दिन एक प्रमुख अंग्रेजी दैनिक की एक लंबी रिपोर्ट प्रसारित की गयी जिसमें माओवादियों ने लालगढ़ की आग को पूरे देश में फैला देने की घोषणा की। जेएनयू के विद्यार्थियों की एक टीम द्वारा लालगढ़ दौरे पर आधारित रिपोर्ट भी इस ब्लॉग पर पढ़ने को मिली। लालगढ़ प्रकरण पर मीडिया में आयी प्रमुख खबरों, तसवीरों एवं आडियो-विजुअल क्लिप्स को इस वेबसाइट पर संकलित किया गया है।
एक अन्य ब्लॉग 'रिवोल्यूशन इन साउथ एशिया में 13 जून 2009 को लालगढ़ प्रकरण से जुड़ी विभिन्न् खबरों एवं इसकी पृष्ठभूमि की जानकारी देने वाली सामग्रियों का लिंक दिया गया है। किसी भी लिंक पर माउस क्लिक करने से इंटरनेट पर इससे जुड़े पेज खुल जायेंगे। इसी ब्लॉग पर 16 जून को बीबीसी द्वारा प्रसारित एक खबर के आडियो-वीडियो क्लिप का लिंक दिया गया है। यह खबर लालगढ़ में माओवादियों द्वारा सीपीएम कार्यालय पर कब्जा और घरों में आग लगाये जाने संबंधी है।
इसी ब्लॉग पर सीपीएसए नामक पाठक ने सन्हाती डॉट कॉम पर लालगढ़ के संदर्भ में सरोज गिरि के एक लंबे लेख के प्रकाशन की सूचना दी है। इसमें उक्त पाठक की सलाह है कि माओवादियों तथा लालगढ़ में दिलचस्पी रखने वालों को उक्त वेबसाइट लगातार देखनी चाहिए। अन्य ब्लॉग्स की तरह इस ब्लॉग पर भी देश-विदेश के प्रमुख माओवादी लिंक दिये गये हैं। जाहिर है कि अगर कोई व्यक्ति ऐसे किसी एक वेबसाइट या ब्लॉग पर पहुंच जाये तो अन्य तमाम रास्ते खुलते चले जायेंगे। ऐसे में किसी साइट पर सरकार ने रोक भी लगा दी तो कोई परेशानी नहीं।
सन्हाती डॉट कॉम को खोलते ही लालगढ़ प्रकरण पर 60 से भी अधिक खबरों एवं लेखों का संकलन नजर आता है। इससे संबंधित दर्जनों तसवीरें भी दी गयी हैं। इस वेबसाइट का उद्देश्य खास तौर पर बंगाल के संदर्भ में भारत और विश्व के राजनीतिक अर्थशास्त्र पर समाचारों, विश्लेषण और बहस का मंच मुहैया कराना बताया गया है। इस वेबसाइट पर देश-विदेश के महत्वपूर्ण माओवादी दस्तावेजों का संकलन है। नक्सलबाड़ी आंदोलन की शुरूआत के दौर में 1967-68 में सीपीआइ-एमएल का मुखपत्र 'लिबरेशन प्रकाशित होता था। इसे सिर्फ हार्डकोर कार्यकर्त्ताओं को उपलब्ध कराया जाता था। लेकिन इस वेबसाइट ने इस मुखपत्र के प्रारंभिक 13 अंकों को पीडीएफ फाइल के रूप में अपने अभिलेखागार में डाल दिया है। इस तरह जहां पहले नक्सली विचारों की सामग्री सिर्फ हार्डकोर कार्यकर्त्ताओं को बमुश्किल उपलब्ध हो पाती थी, वहीं अब कोई भी व्यक्ति किसी भी वक्त इंटरनेट पर पुराने व नये दस्तावेज हासिल कर सकता है।
एक वेबसाइट है- 'बैन्ड-थाउट डॉट नेट। इसका मकसद दुनिया भर के उन प्रगतिशील विचारों को सामने लाना है जिन्हें प्रतिबंधित कर दिया गया हो। इसमें भाकपा (माओवादी) के अलावा नेपाल से जुड़े दस्तावेजों, बयानों को प्रस्तुत किया जाता है। इसमें 'पिपुल्स मार्च पत्रिका तथा 'पिपुल्स ट्रूथ बुलेटिन का भी लिंक दिया गया है।
'पिपुल्स मार्च वेबसाइट पर वर्ष 2007 में केंद्र सरकार ने रोक लगा दी थी। इसके संपादक पी गोविंदन कुट्टी को दिसंबर 2007 में गिरफ्तार कर लिया गया था। उन्हें फरवरी 2008 में रिहा किया गया। इसके जवाब में माओवादियों का एक नया ब्लॉग बना लिया-'आजाद हिंद। इसमें बताया गया है कि सरकार द्वारा 'पिपुल्स मार्च वेबसाइट को रोक दिये जाने के कारण यह ब्लॉग शुरू किया गया है। ब्लॉग कहता है कि सरकार यह समझने में पूरी तरह विफल रही है कि नक्सलवाद क्यों बढ़ रहा है। इसे महज कुछ बेरोजगारों की करतूत समझा जा रहा है जबकि इस लोकतंत्र से हताश होकर बड़ी संख्या में शिक्षित लोग नक्सल आंदोलन से जुड़ रहे हैं। इसी टिप्पणी में यह भी कहा गया है कि एक वेबसाइट को प्रतिबंधित करने के जवाब में बड़ी संख्या में नक्सल समर्थक ब्लॉग सामने आ गये हैं तथा इनके पाठकों की तादाद बढ़ती जा रही है।
'नक्सल रिवोल्यूशन नामक एक चर्चित ब्लॉग को बनाने का उद्देश्य यह बताया गया है कि परंपरागत मीडिया द्वारा प्रगतिशील विचारों एवं खबरों को सामने नहीं लाया जाता तथा क्रांतिकारी माओवादियों को उग्रवादी और ठग के बतौर पेश किया जाता है। इस ब्लॉग में माओवादियों के बारे में कुछ प्रसिद्ध हस्तियों के चौंकाने वाले बयान संकलित किये गये हैं। इस ब्लॉग में पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय वीपी सिंह का कथन है- 'अगर विकास का यही मॉडल है तो मैं भी नक्सली बनना चाहता हूं हालांकि अब इस उम्र में ऐसा नहीं कर सकता। इसमें पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस कहते हैं- 'जल्द ही दिल्ली में नक्सली झंडे लहरायेंगे। इसी तरह, योग गुरू पंडित रविशंकर कहते हैं- 'नक्सली अच्छे इंसान हैं जिनमें देश के लिए काफी त्याग और संकल्प की भावना है। वे ऐसे काम कर सकते हैं जो दूसरे नहीं कर सकते।
दिलचस्प यह कि कुछ ब्लॉग ऐसे भी हैं जो माओवादियों के खिलाफ खबरों एवं विचारों का संकलन करते हैं। इनमें प्रमुख है- 'नक्सल टेरर वॉच। इसमें नक्सली हिंसा से जुड़ी खबरों, नक्सलियों के खिलाफ पुलिस व अर्द्धसैनिक बलों के अभियान तथा नक्सल विरोधी बयान प्रस्तुत किये जाते हैं।

8 टिप्‍पणियां:

  1. वह क्या बात है| इतनी सुन्दर और आलेख में जान डाल देने वाली लेख बहुत दिनों बाद पढ़ी है.
    मैं वेबदुनिया का पुराना पाठक हूँ | लेकिन नई दुनिया को मैंने छत्तीसगढ़ में पढ़ा था | कई दिनों से आशा कर रहा हूँ की ये अख़बार कब जमशेदपुर पहुचेगा | फ़िलहाल बहुत है अच्छा लिखते है आप मैं तो अब आप के एक भी लेख नहीं छोड़ने वाला हूँ. क्या करू मैं भी ब्लोगरिया जो हूँ .विष्णु राजगढ़िया जी एक बात मैं आप से पूछना चाहता हूँ. क्या आप के भी मेरे ब्लॉग में लिखेंगे क्यों की जो लेख मुझे पसंद आ जाती है मैं उसे अपने ब्लॉग में डाल देता हूँ. हाँ लेकिन लेखक की अनुमति से अगर आप भी मेरे ब्लॉग में लिखे तो बहुत ही अच्छा होगा.
    मैं तो अपने बारे में बताना ही भूल गया.मेरा नाम चन्दन कुमार है. वर्तमान में मैं एक हिंदी दैनिक उदितवाणी में डीटीपी ओपेरटर के रूप में काम कर रहा हूँ. और खेल पेज बनता हूँ. कभी कभी समय मिलने पर ब्लॉग भी लिख लेता हूँ. आपके इस आलेख के लिए धन्यवाद ! www.sanghsadhna.blogspot.com

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  2. सर, आपने ब्लॉग बनाया और लिंक भी नहीं भेजा, ये ठीक नहीं हुआ। खैर, आपको नई दुनिया की नई पारी के लिए तो बधाई, लेकिन मुझे ये समझ में नहीं आया कि 'नई' लिखना सही है या फिर 'नयी' क्योंकि प्रभात खबर के स्टाइल शीट में जो था उसके अनुसार 'नयी' होना चाहिए, क्योंकि यह 'नया' शब्द से ही उत्पादित है। खैर, आप ज्यादा जानेंगे, हम तो अभी भी प्रभात खबर के स्टाइल फोबिया से निकल नहीं पाये हैं, इसलिए अक्सर कन्फ्यूज़न हो जाता है।

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  3. नक्सली अपनी जगह कभी कभी सहीं नजर आते हैं पर कभी कभी गलत..खैर आधुनिकता हर जगह आ रही है

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  4. नक्सल समस्या पर और चिंतन की आवश्यता है..

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  5. आपने मुझे पहचाना विष्णु जी ...
    मैं रांची में सिटी एस पी था ...

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  6. सभी पाठकों को धन्यवाद। चंदन जी, इस ब्लाॅग या अन्यत्र कहीं भी प्रस्तुत मेरी किसी भी सामग्री का आप उपयोग यथोचित तरीके से कर सकते हैं। नदीम भाई की शिकायत जायज है। बस कल ही मैंने इसे सार्वजनिक किया और मैं आपसे इस पर चर्चा करने ही वाला था। ब्लाॅग में हिंदी के उपयोग की जानकारी मुझे आपसे ही मिली। भाई अरविंद पांडेय का जी शुक्रिया जिन्होंने पुलिस विभाग की व्यस्त एवं भिन्न कार्यस्थितियों के बावजूद संगीत, साहित्य और ब्लाॅग की दुनिया में लगातार योगदान किया। रांची में आप काफी चर्चित रहे हैं और आज भी लोगों की जुबान पर आपका नाम सहसा आ जाता है।
    एक बार फिर सबका शुक्रिया
    विष्णु राजगढ़िया

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